an essay on bhrashtachaar
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भ्रष्टाचार विभिन्न विद्वानों द्वारा परिभाषित किया गया है। लेकिन सरल अर्थ यह है कि भ्रष्टाचार नैतिकता, ईमानदारी, चरित्र या भाड़े प्रेरणाएँ, यानी रिश्वत, सम्मान, सही करने के लिए किसी भी संबंध के बिना और न्याय से बाहर ड्यूटी की विकृति का तात्पर्य। दूसरे शब्दों में, अनुचित पक्ष के लिए कुछ मौद्रिक या अन्य लाभ के लिए किसी भी एक भ्रष्टाचार है। इसके साथ ही, जो वास्तव में सुपात्र उनके अधिकार या विशेषाधिकार से वंचित भी एक भ्रष्ट व्यवहार है। एक कर्तव्य या कर्तव्य की लापरवाही करने से सिकुड़ भी भ्रष्टाचार के रूपों रहे हैं। इसके अलावा, चोरी, सार्वजनिक संपत्ति का अपव्यय का गठन भ्रष्टाचार की किस्मों। बेईमानी, शोषण, महर्षि व्यास, घोटालों और घोटालों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के भ्रष्टाचार कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार एक विशिष्ट भारतीय घटना नहीं है। यह सब विकास के रूप में अच्छी तरह से विकसित देशों में दुनिया भर में देखा है। यह अपना जाल अर्थात् व्यवसाय प्रशासन, राजनीति, अधिकारी, और सेवाओं, जीवन के हर क्षेत्र में फैल गया है! भ्रष्टाचार हर सेगमेंट और समाज से जुड़ी सामाजिक स्थिति को छोड़कर, के हर खंड में बड़े पैमाने पर है। कोई भी एक उच्च रैंकिंग अधिकारी से भ्रष्टाचार से मुक्त माना जा सकता है।
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