An essay on child labour in hindi language
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भारत में बलोको को आबादी बोहोत ज्यादा हे और साथ में गरिबोकी भी ज्यादा हे हम सब
जानते हे की बचपन इन्सान के जीवन का सबसे हसीं पल होता हे , जहा न किसी बात की चिंता , न कोई समस्या और न कोई जिम्मेदारी . बस हर समय साथियों के साथ खेलना कूदना मस्ती करना , इसे ही बचपन कहते हे लेकिन ये सिर्फ अच्छे घरो के बच्चो के लिए हे गरीबो के बच्चो के किस्मत में कम के आलावा कुछ नहीं होता .
आज दुनिया में जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। और इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पोंछे और औजारों के बीच बीतता है।
जबकि सर्कार ने नियम बनाया हे की 14 वर्ष से कम की उम्र के बचो को कम करवाना कानून के खिलाफ हे
बड़ी-बड़ी बातें, बड़े-बड़े नारे लगाने के बाद भी बाल श्रमिकों की हालत आज भी वैसी ही है जैसे पहले थी. भारत समेत लगभग सभी विकासशील देश और यहां तक की विकसित देशों में भी आपको बाल श्रम देखने को मिलेगा. चाय वाले की दुकान हो या कोई होटल और तो और भारत में तो बाल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा चूड़ी बनाने, पटाखा बनाने और अन्य खतरनाक कामों में भी लिप्त है. इन बच्चों को चंद पैसा देकर इनके मालिक इनसे जरूरत से ज्यादा काम कराते हैं. कम पैसे में यह बच्चे अच्छी मजदूरी देते हैं और ज्यादा आवाज भी नहीं उठाते, यही वजह है कि ऐसे कारखानों के मालिक बच्चों को शोषित करने का कोई भी मौका नहीं गंवाते.
the #RIHAAN
hope this will help you..
जानते हे की बचपन इन्सान के जीवन का सबसे हसीं पल होता हे , जहा न किसी बात की चिंता , न कोई समस्या और न कोई जिम्मेदारी . बस हर समय साथियों के साथ खेलना कूदना मस्ती करना , इसे ही बचपन कहते हे लेकिन ये सिर्फ अच्छे घरो के बच्चो के लिए हे गरीबो के बच्चो के किस्मत में कम के आलावा कुछ नहीं होता .
आज दुनिया में जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। और इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पोंछे और औजारों के बीच बीतता है।
जबकि सर्कार ने नियम बनाया हे की 14 वर्ष से कम की उम्र के बचो को कम करवाना कानून के खिलाफ हे
बड़ी-बड़ी बातें, बड़े-बड़े नारे लगाने के बाद भी बाल श्रमिकों की हालत आज भी वैसी ही है जैसे पहले थी. भारत समेत लगभग सभी विकासशील देश और यहां तक की विकसित देशों में भी आपको बाल श्रम देखने को मिलेगा. चाय वाले की दुकान हो या कोई होटल और तो और भारत में तो बाल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा चूड़ी बनाने, पटाखा बनाने और अन्य खतरनाक कामों में भी लिप्त है. इन बच्चों को चंद पैसा देकर इनके मालिक इनसे जरूरत से ज्यादा काम कराते हैं. कम पैसे में यह बच्चे अच्छी मजदूरी देते हैं और ज्यादा आवाज भी नहीं उठाते, यही वजह है कि ऐसे कारखानों के मालिक बच्चों को शोषित करने का कोई भी मौका नहीं गंवाते.
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किसी भी क्षेत्र में बच्चों द्वारा अपने बचपन में दी गई सेवा को बाल मजदूरी कहते है। इसे गैर-जिम्मेदार माता-पिता की वजह से, या कम लागत में निवेश पर अपने फायदे को बढ़ाने के लिये मालिकों द्वारा जबरजस्ती बनाए गए दबाव की वजह से जीवन जीने के लिये जरुरी संसाधनों की कमी के चलते ये बच्चों द्वारा स्वत: किया जाता है, इसका कारण मायने नहीं रखता क्योंकि सभी कारकों की वजह से बच्चे बिना बचपन के अपना जीवन जीने को मजबूर होते है। बचपन सभी के जीवन में विशेष और सबसे खुशी का पल होता है जिसमें बच्चे प्रकृति, प्रियजनों और अपने माता-पिता से जीवन जीने का तरीका सीखते है। सामाजिक, बौद्धिक, शारीरिक, और मानसिक सभी दृष्टीकोण से बाल मजदूरी बच्चों की वृद्धि और विकास में अवरोध का काम करता है।
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