Hindi, asked by adam9861, 1 year ago

An essay on rashtra ki samaan , to hamari pahchan in hindi

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Answered by babusinghrathore7
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                   राष्ट का सम्मान हमारी पहचान हिन्दी  

भाषा मनुष्य को ईश्वर का दिया गया वरदान है। पहले मनुष्य संकेतो से कुछ ध्वनियों से अपना मन्तव्य प्रकट करता था। धीरे धीरे ध्वनि चित्र बने तथा लिपि का निर्माण होने से बोली को भाषा का गौरव प्राप्त हुआ। भाषा के कारण ही साहित्य, कला, धर्म, संस्कृति और विज्ञान आदि क्षैत्रों की मानवीय उपलब्धियां आज सुरक्षित रह सकी है।

हमारे विशाल देश में अनेक भाषायें प्रयोग की जाती है। इनमें हिन्दी को संविधान द्वारा राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त है।

राष्ट्र भाषा बनने के लिये किसी भी भाषा में कुछ विशेषताओं का होना आवश्यक है। जैसे वह सरल हो ताकि अन्य भाषा भाषी उसे सरलता से सीख सके। वह देश की संभ्यता और संस्कृति को व्यंजित करने वाली हो। उसका विस्तार देश के दूरस्थ विभिन्न स्थानों तक हो। उसका साहित्य समृद्ध हो। देश के राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, वैज्ञानिक तथा शैक्षिक कार्यो के संचालन में उसका उपयोग सफलता के साथ हो सके। निस्संदेह हिन्दी इन सभी विशेषताओं से युक्त है और भारत की राष्ट्रभाषा होने की अधिकारी है।

राष्ट्रभाषा की मान्यता प्राप्त होने पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार और विभिन्न हिन्दी सेवी संस्थाओं ने इसके विकास का पूरा प्रयास किया है। केन्द्र में हिन्दी निदेशालय खोला गया है। उतर भारतीय अधिकतर राज्यों में इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है। हिन्दी में टंकण तथा आशुलिपि का भी विकास हुआ है। सिनमा तथा दूरदर्शन का योगदान हिन्दी के प्रसार प्रचार में अधिक महत्वपूर्ण रहा है। हिन्दी फिल्मों और दूरदर्शन कार्यक्रमों ने हिन्दी को विदेशों में भी लोकप्रिय बनाया है। विदेशो में विश्व हिन्दी सम्मेलन और हिन्दी के विकास का यह मुख्य मंच है।  

राष्ट्रभाषा घोषित होने के साथ ही हिन्दी का विरोध भी होने लगा चक्रवर्ती राजगोपालचारी तथा सुनीत कुमार चटर्जी ने इसका यह कहकर विरोध किया है कि इसमें अंग्रेजी का स्थान लेने की क्षमता नहीं है। हिन्दी में तकनीकि और वैज्ञानिक शिक्षा देने की शब्दावली नहीं है और यह समस्त देश का प्रतिनिधित्व भी नहीं कर पाती है। न्यायालयों और कार्यालयों में आज भी हिन्दी उपेक्षित है और हम बोलचाल में भी अंग्रेजी का प्रयोग कर अपने आपकों सम्मान की दृष्टि से देखते है। यही मानसिकता ही हमारी हेयता की जड़ है।  

हिन्दी के विरोध में चाहे जो कहा गया हो लेकिन यह हिन्दी के साथ न्याय नहीं है। देश का गौरव उसकी मूल भाषा होती है। वही उसकी संस्कृति का दर्पण होती है। अपनी भाषा का अनादर करना अपने आपको हेय दृष्टि से देखने के समान है। हम आज भी अंग्रेजो की गुलामी वाली मानसिकता से बाहर नहीं आ पाये है। हम किसी भाषा का विरोध नहीं कर रहे है पर हमें अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिये।

हिन्दी हमारी पहचान हैं। इसलिये कहा भी है  

हिन्दी हैं हम वतन है  

हिन्दोस्ता हमारा

इसलिये यह आवश्यक है कि हिन्दी को अपने नैसर्गिक प्रवाह के साथ आगे बढने दिया जाये। हिन्दी को नवीन ज्ञान विज्ञान के अनुरुप विकसित किया जाये। क्यों कि जो नई शब्दावली आती है वह हर भाषा के लिये नई होती है उसे हिन्दी में भी विकसित किया जाये। उसे नवीन ज्ञान विज्ञान और तकनीकि से सम्बन्धित किया जाये। विश्वविद्यालय और प्रतियोगी परीक्षाओं में इस बढावा दिया जाये। कार्यालयों और न्यायालय की कार्यकारी भाषा बनाया जाये। तभी हम सच्चे अर्थो में देशप्रेमी कहलायेगे।

अपनी भाषा की उन्नति देश की सच्ची उन्नति है भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लिखा है कि  

निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति का मूल।

बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिये को शूल।।

हमारी संस्कृति की पहचान होने के कारण कहा गया हैं

हिन्दी है देवो की वाणी,

परम पुरातन सुखद सुहानी।

हिन्दी उतनी ही पावन है,

जितना मां गंगा का पानी।।

Answered by mohdsamihome
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