An essay on working of co-operative banks in india. In hindi
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सहकारी बैंक वे बैंक हैं जिनका गठन एवं कार्यकलाप सहकारिता के आधार पर होता है। विश्व के अधिकांश भागों में सहकारी बैंक हैं जो लोगों की पूँजी जमा करते हैं तथा लोगों को धन उधार देते हैं।
उद्देश्य:- इन बैंकों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के लिए अधिक साख़-सुविधाएं उपलब्ध कराना है अतः ये संस्थाएं भी वित्तीय समावेशन में सहायक है।
मुख्य बिंदु:- इनकी स्थापना “राज्य सहकारी समिति अधिनियम" के अनुसार की गई। इनका पंजीकरण “रजिस्ट्रार ऑफ को-ऑपरेटिव सोसाइटी" के पास किया जाता है। इनका नियमन राज्य सरकार तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आंशिक रूप से किया जाता है। सामान्यतः इनकी शाखाएं एक राज्य तक सीमित होती है।
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारिता का महत्वपूर्ण योगदान है । यही सहकारिता का विकास मुख्य रूप में कृषकों को सस्ती दर से ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से हुआ है । इस उद्देश्य मई पूर्ति के लिये सन् 1904 में “सहकारी ऋण समिति अधिनियम” (Co-Operative Credit Societies Act) पारित किया गया । फलतः देश के अनेक भागों में साख समितियों की स्थापना हुई ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सहकारिता आन्दोलन अधिक तेजी से विभिन्न दिशाओं में फैला । सरकर द्वार नियुक्त ”अखिल भारतीय ग्राम-ऋण समिति – 1954” एवं ”बैकुण्ठलाल मेहता समिति – 1960” के सुझावों ने सहकारिता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया । भारतीय पंचवर्षीय योजनाओं में भी सहकारिता को बहुत ऊँचा स्थान दिया गया ।
वास्तव में, सहकारिता के देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास का आधार बनाय गया । योजनाओं में इस बात को बल दिया गया है कि कृषि, कुटीर व लघु उद्योग, थोक व खुदा व्यापार, गृह निर्माण आदि क्षेत्रों में सहकारिता को अधिकाधिक अपनाया जाए ।