History, asked by mathek, 10 months ago

अनुच्छेद
बेरोजगारी
संकेत बिंदु-
० बेरोजगारी के प्रकार
० युवाओं में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति(अर्थात अपराध करने की क्षमता)
० बेरोजगारी रोकने के उपाय








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Answers

Answered by Anonymous
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Answer:

भारत एक विकासशील देश है । इस समय इसके सम्मुख लगभग वे सभी समस्याएँ विद्यमान हैं जो प्राय: विकासशील देशों के सम्मुख होती हैं । उन समस्याओं में सर्वप्रमुख समस्या बेरोजगारी है । भारत में तीन प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है: पूर्ण बेरोजगारी, अर्द्ध बेरोजगारी तथा मौसमी बेरोजगारी ।

बेरोजगारी किसी भी प्रकार की क्यों न हो, किसी भी देश के लिए इसका सीमा से अधिक बढ़ना बहुत ही भयानक और विस्फोटक होता है । ग्रामीण और शहरी इलाकों के आधार पर बेरोजगारी का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि शहरों में अधिक संख्या शिक्षित बेरोजगारों की होती है । गाँवों में तथा गाँवों से शहरों में आए बेरोजगारों में अशिक्षित बेरोजगारों की संख्या ही अधिक होती है ।

देहातों में रहने वाले किसानों को अर्द्ध-बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है क्योंकि कृषि कार्य एक मौसमी उद्यम है । इसी कारण खेतिहर मजदूर वर्ष भर काम न मिलने के कारण अर्द्ध-बेरोजगार के रूप में समय गुजारते हैं । ग्रामीण इलाकों में आय का मुख्य साधन कृषि ही होता है । यद्यपि वहाँ हथकरघा या दस्तकारी से जुड़े कार्य भी किए जाते हैं, लेकिन उनमें रोजगार के अवसर सीमित होते हैं ।

शहरी इलाकों में व्यापार सरकारी तथा प्राइवेट नौकरियाँ, निजी व्यवसाय, विभिन्न प्रकार के अन्य काम-धंधे तथा दुकानदारी आदि रोजगार के प्रमुख साधन होते हैं परंतु इनमें भी धीरे-धीरे रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं । आज प्रमुख और विचारणीय प्रश्न यह है कि देश में बेरोजगारी की समस्या इतनी भयंकर क्यों हो गई है ?

इसका मुख्य कारण यह है कि देश में जितनी तेजी से आर्थिक विकास होना चाहिए था वह नहीं हुआ है । दूसरा प्रमुख कारण देश की जनसंख्या का बहुत तेजी से बढ़ना है जिसके फलस्वरूप बेरोजगारी की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है । देश को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए सही दिशा में प्रयास करने की जरूरत है ।

देश के नीति-निर्माताओं को नीतियाँ बनाते समय यह देखना चाहिए कि देश में बेरोजगारी की प्रकृति, स्वरूप और स्थिति कैसी है बेरोजगारों की संख्या कितनी है तथा उन सभी के लिए किस प्रकार रोजगार की समुचित व्यवस्था की जाए । नीति-निर्माताओं को यह भी देखना चाहिए कि नई बनी नीतियों से रोजगार के अवसर किस हद तक पैदा होंगे तथा लोगों को किस प्रकार की तथा कितनी शिक्षा या प्रशिक्षण की व्यवस्था करानी होगी ।

परंतु दुर्भाग्यवश हमारे नीति-निर्माता योजनाएँ बनाते समय इन बातों को महत्व नहीं देते, आजादी के बाद से अब तक विभिन्न पंचवर्षीय योजनाएँ बनती रहीं लेकिन बेरोजगारी की निरंतर बढ़ती समस्या के समाधान के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की गई । यदि हमारे योजनाकारों ने जनसंख्या की वृद्धि पर आरंभ से ही अंकुश लगाने की दिशा में प्रयास किए होते तो आज स्थिति इतनी खराब नहीं होती ।

देश में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ बेरोजगारों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि होती रही है । यद्यपि सरकार ने नए उद्योग-धंधों की स्थापना की, परंतु उससे रोजगार के अधिक अवसरों का सृजन न हो सका । शिक्षा का विस्तार हुआ, परंतु योजनाएँ आवश्यकतानुरूप नहीं बनीं और शिक्षित बेरोजगारों की कतार लंबी होती चली गई ।

यद्यपि सरकार ने विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत विकास के कार्यक्रम लागू किए, लेकिन उनका लाभ ग्रामीण क्षेत्रों को नहीं मिला । इन क्षेत्रों में सरकार ने उद्योग-धंधों के विकास के लिए कोई प्रयास नहीं किया । फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्र पिछड़ते चले गए । बेरोजगारों की भीड़ ने रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख किया, जिससे शहरों में भी बेरोजगारी की समस्या बढ़ती चली गई ।

इस संदर्भ में जहाँ तक शिक्षा का प्रश्न है, यह देखने में आ रहा है कि शिक्षा व्यवस्था हमारी योजनाओं का अंग तो बन चुकी है लेकिन इस शिक्षा व्यवस्था का देश की जनशक्ति की विविध आवश्यताओं के साथ कोई तालमेल नहीं है । शिक्षा के विकास का सीधा संबंध रोजगार से होना चाहिए, परंतु ऐसा न होने के कारण शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में अतिशय वृद्धि होती रही है ।

आज के शिक्षित बेरोजगारों की मनोवृत्ति का भी इसमें कम योगदान नहीं है । आज सामान्य शिक्षा प्राप्त युवक भी सिर्फ कार्यालयी कार्य ही करना चाहता है, वह दस्तकारी या हाथ व कपड़े गंदे करने वाला काम नहीं करना चाहता । दूसरी ओर जिन नवयुवकों ने तकनीकी या व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की होती है वे भी रोजगार के अवसरों की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण बेरोजगार बने रहते हैं ।

आर्थिक कारणों से वे अपना व्यवसाय करने का साहस भी नहीं जुटा पाते और क्लर्क और अफसर की नौकरी के इच्छुक युवकों की कतार में खड़े हो जाते हैं । यद्यपि सरकार ने बेरोजगारों को नौकरी दिलाने हेतु लगभग हर शहर में रोजगार कार्यालय खोले हैं । ये कार्यालय बेरोजगारी की समस्या के समाधान में पूरी तरह असफल और उद्‌देश्यहीन ही साबित हुए हैं ।

इस समस्या के समाधान हेतु कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:

(1) जनसंख्या की वृद्धि दर को नियंत्रित करने की आवश्यकता है । सरकार को परिवार नियोजन के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना चाहिए ।

(2) सरकारी स्तर पर विशेष कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, जिनमें युवकों को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण और आर्थिक सहायता भी दी जानी चाहिए ।

(3) ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय कृषि की उपज पर आधारित लघु उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए ।

(4) प्रारम्भिक शिक्षा से इतर शिक्षा को रोजगारोम्मुख बनाया जाना अति आवश्यक है । उच्च शिक्षा को रोजगार से अवश्य ही जोड़ा जाना चाहिए ।

(5) सरकार को न केवल अपने कारखाने और उपक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में खोलने चाहिए, बल्कि पूंजीपतियों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वे अपने उद्योग वहाँ स्थापित करें । बेरोजगारी की समस्या एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या है, जिसके समाधान हेतु पूरे संकल्प के साथ सही दिशा में प्रयास किए जाने की आवश्यकता है ।

इसके हिसाब से पॉइंट्स बनले

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