Hindi, asked by reshamkachura1971, 8 months ago

अनुच्छेद भारत के गांव​

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Answered by kaushikrajesh1985
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Answer:

हमारा देश गाँवों के देश के रूप में जाना जाता हैं. देश की 70 फीसदी आबादी गाँवों में बस्ती हैं इसी कारण गाँवों को भारत का ह्रदय कहा गया हैं. अगर आप भारत के स्वरूप को देखना चाहते व इसकी आत्मा को समझना चाहते हैं तो गाँवों की ओर जाना ही होगा. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत में तकरीबन 7 लाख छोटे बड़े गाँव हैं. जिनकी आबादी 3 से 7 हजार प्रति गाँव औसतन हैं. गाँवों का मुख्य रोजगार के साधन कृषि, पशुपालन और छोटे बड़े उद्योग धंधे होते हैं.

भागदौड़ की जिन्दगी से बहुत दूर शांत माहौल में भोले भाले चरित्र वाले लोग जिनके देशीपन मानवता की कद्र केवल अब गाँवों में ही बसकर रह गयी हैं. हरे भरे खेत, फलों के बगीचे और सुंदर प्राकृतिक दृश्य भारतीय गाँवों की विशेषताएं हैं. कही पहाड़ो की गोदी में अथवा नदियों के किनारे बसे गाँवों का मनोरम नजारा दिल को सुकून देने वाला होता हैं.

भारत की संस्कृति, त्यौहार एवं मान्यताओं को गाँवों में आज भी बड़ा महत्व दिया जाता है. हमारे परम्परागत त्योहारों का मूल स्वरूप केवल गाँवों में ही देखा जा सकता हैं. तेजी से हो रहे नगरीकरण और औद्योगिकीकरण ने गाँव की संस्कृति पर भी प्रभाव छोड़ा हैं किन्तु फिर भी शहरों की तुलना में गाँवों ने अपनेपन को बचाए रखने में कामयाबी पाई हैं. यही वजह है कि कहते है भारत को देखना हैं तो गाँवों की तरफ जाओं.

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि नगरीय जीवन की बजाय ग्रामीण जीवन हर पहलु से उच्च हैं. मगर इसका दूसरा पक्ष यह भी हैं कि आजादी के 75 सालों के बाद भी हमारे गाँव में बसने में किसान, कर्मकार मूलभूत भौतिक सुविधाओं से वचित रहे हैं. गाँवों में शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, शिक्षा के क्षेत्र की तरफ जो ध्यान दिया जाना चाहिए था वह नहीं दिया गया. जिसका परिणाम यह हुआ कि आज आजीविका, शिक्षा स्वास्थ्य और उच्च जीवन स्तर की सुविधाओं के लिए करोड़ो लोग शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं.

गाँवों की समस्याओं को समाप्त करने की दिशा में सरकारे गम्भीरता से नहीं सोच रही हैं. हालांकि 2022 तक सभी गाँवों को बिजली से जोड़ने की योजना से ग्रामीण क्षेत्र में लोग कृषि व अन्य कार्य आसानी से कर पाएगे. वही शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार के लिए गाँवों में प्रबंध की निहायत कमी हैं. अशिक्षा, रूढ़िवादिता, अनियंत्रित जनसंख्या, बेरोजगारी आदि से निपटने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को गाँवों के विकास के लिए पहल करनी चाहिए.

भारत की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से गाँवों पर टिकी हैं. कृषि प्रधान भारत देश की 60 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में बसती हैं उनका मुख्य कार्य कृषि और पशुपालन ही हैं. अतः आधे भारत की अनदेखी करके भारत प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता हैं. समय समय पर केंद्र सरकार की ओर से गाँवों के चहुमुखी विकास के लिए कदम उठाएं गये हैं जिनमें ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्थापना करना एक अहम निर्णय था.

बेरोजगारी व गरीबी निवारण, जवाहर ग्राम सम्रद्धि, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, अटल आवास योजना, स्वच्छता कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, जननी सुरक्षा योजना, विद्युत् कनेक्शन योजना आदि सरकारी योजनाओं से गाँवों के स्तर को सुधारने में बड़ा लाभ हुआ हैं.

भारत के गाँवों की दशा सुधारने में किसान का अहम योगदान हैं. मगर विगत एक दशक से शहरीकरण में हुई वृद्धि ने गाँवों के विकास की यात्रा को बाधित करने का कार्य किया हैं. रोजगार गाँवों की सबसे बड़ी समस्या हैं जिसके चलते नवयुवक काम की तलाश में शहरों की ओर आते हैं. युवाओं के पलायन को रोकने तथा गाँवों की स्थिति में सुधार के लिए स्थानीय स्तर पर छोटे एवं लघु उद्योगों को स्थापित किये जाने की आवश्यकता हैं.

गाँवों के विकास के लिए गांधीजी के विचारों को अपनाने की आवश्यकता हैं. उन्होंने कहा था भारत की आत्मा गाँव में बसती हैं. गाँवों की समस्याओं को हल कर उन्हें खुशहाल करने की महत्ती आवश्यकता हैं. मनुष्यता व भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए गाँव में अधिक से अधिक आधुनिक सुख सुविधाएँ एवं उद्योगों की स्थापना करके भारत को विकास के पथ पर तेजी से बढाया जा सकता हैं.

Answered by akanshaagrwal23
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भारत गाँवों का देश है। भारत की अधिकतम जनता गाँवों में निवास करती हैं। महात्मा गाँधी कहते थे कि वास्तविक भारत का दर्शन गाँवों में ही सम्भव है जहाँ भारत की आत्मा बसी हुई है।

Explanation:

आज हममें से कितने लोगों ने गाँव देखे हैं? गाँव जिन्हें भगवान ने बनाया, जहाँ प्रकृति का सौन्दर्य बिखरा पड़ा है- हरे भरे खेत, कल कल करती नदियाँ, कुँयें की रहट पर सजी धजी औरतों की खिलखिलाहट, हुक्का पीते किसान, गाय के पीछे दौड़ते बच्चे, पेड़ों से आम तोड़कर खट्टे आम खाती किशोरियाँ, तितलियाँ पकड़ते किशोरन बाजरा और मक्की की रोटी, दूध दही, मक्खन और घी की बहुलता यह सब कल्पना में आता है जब हम गाँव की बात करते हैं।

भारत के गाँव उन्नत और समृद्ध थे। ग्रामीण कृषक कृषि पर गर्व अनुभव करते थे, संतुष्ट थे। गाँवों में कुटीर उद्योग फलते फूलते थे। लोग सुखी थे। भारत के गाँवों में स्वर्ग बसता था। किन्तु समय बीतने के साथ नगरों का विकास होता गया और गाँव पिछड़ते गये।भारत के गाँवों की दशा अब दयनीय है। इसका मुख्य कारण अशिक्षा है। अशिक्षित होने के कारण ग्रामीण अत्यधिक आस्तिक, रूढ़िवादी और पौराणिक विचारधारा के हैं। गाँवों में साहूकारों, जमींदारों और व्यापारियों का अनावश्यक दबदबा है। किसान प्रकृति पर निर्भर करते हैं और सदैव सूखा तथा बाढ़ की चपेट में आकर नुकसान उठाते हैं। कर्जों में फंसे, तंगी में जीते, छोटे छोटे झगड़ों को निपटाने के लिए कचहरी के चक्कर लगाते हुए ये अपना जीवन बिता देते हैं।

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