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इक्कसवीं सदी का भारत-
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हमारे भूतपूर्व युवा प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने एक बड़ा ही मोहक और आकर्षक नारा दिया था- ‘इक्कीसवीं सदी का भारत’। इस नारे का अर्थ यह हुआ कि हम यथाशीघ्र ही इक्कीसवीं सदी में पहुँच रहे हैं, अर्थात् आज के दस वर्षों बाद हम इक्कीसवीं सदी में होंगे तो, क्या होंगे, यह एक विचारणीय प्रश्न है। इस पर जब हम विचार करते हैं तो हम यह देखते हैं कि आज भारत की जो स्थिति और स्वरूप है, उससे कुछ ही भिन्न उसका स्वरूप है। यह आज से कुछ वर्षों बाद होगा अर्थात् इक्कीसवीं सदी का भारत आज से कुछ अवश्य मिलता जुलता भारत होगा।
हम देखते हैं कि आज भारत वर्ष की जनसंख्या बेतहासा बढ़ती जा रही है। इस पर नियंत्रण पाना किसी के बस की बात नहीं हो रही है। यद्यपि सरकार से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों और उपाय को किया है, फिर भी जनसंख्या की बाढ़ थमने का नाम नहीं ले रही है। इसलिए आज से कुछ वर्षों बाद भी भारत विश्व का एक बहुत बड़ा जनसंख्या वाला देश होगा।
बेरोजगारी हमारे देश की एक भयंकर समस्या है। इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार के कमर कस लेने पर भी समाधान नहीं हो रहा है, बल्कि यह और भी अधिक बढ़ती जा रही है। इसलिए यह निश्चित है कि आज से दस वर्षों बाद बेरोजगारी की समस्या किसी न किसी प्रकार से अवश्य बनी रहेगी, जो तत्कालीन सरकार के लिए चुनौती के रूप में सिर उठाती रहेगी।
जनसंख्या वृद्धि और बेरोजगारी की तरह हमारे देश की दूसरी कष्टदायक समस्या भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार के अन्तर्गत आने वाले सभी प्रकार के अत्याचारों का विस्तार हमारे देश में दिन दूनी रात चौगुनी गति से हो रहा है। भ्रष्टाचार के अन्तर्गत आने वाले अनैतिक आचारों में अनाचार, अत्याचार, दुराचार, व्यभिचार, बलात्कार आदि अनैतिक आचारों की बढ़ोतरी हमारे देश में बेरोकटोक हो रही है। जब सरकार ही पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है जो फिर दूसरा कौन इससे मुक्ति दिला सकता है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार हमारे देश में खूब पनप रहा है। पल्लवित पुष्पित होकर हमारे देश के विकास में रोड़े डाल रहा है। इस दृष्टि से इक्कीसवीं सदी के भारत में भ्रष्टाचार की पैठ अवश्य रहेगी। इस प्रकार भारत एक भ्रष्टाचार प्रधान राष्ट्र के नाम से तब भी जाना जाएगा।
आज जो भारत में प्रान्तीयता, जातियता, साम्प्रदायिकता और धार्मिकता का विष बीज अंकुरित हो चुका है, वह निश्चय ही इक्कीसवीं सदी में पल्लवित और पुष्पित होकर फलित होगा। इक्कीसवीं सदी के भारत में अत्यन्त जातियता, क्षेत्रीयता, साम्प्रदायिकता और धार्मिकता का ज्वर भयानक होगा, क्योंकि आज जो इसका रूप है, जो निश्चय ही आने वाले कुछ वर्षों के इतिहास में एक महान विघटनकारी तत्व के रूप में दिखाई देगा। इसलिए इस दृष्टिकोण से भी इक्कीसवीं सदी का भारत दुखद और विपत्तिमय भारत होगा। इसके विषय में आज इस देश के सभी कर्णधार और राष्ट्रनिर्माता चिन्तित होकर प्रयन्तशील है।
अशिक्षा और विदेशी अंधानुकरण भी हमारे देश की एक बहुत बड़ी आदत है। इस दुष्प्रवृत्ति के कम होने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं। इस दुष्प्रवृत्ति को रोकने के लिए भी कोई ठोस और कारगर कदम हम अभी तक नहीं बढ़ा पाए हैं। इसलिए इस दुष्प्रवृत्ति का प्रवेश इक्कीसवीं सदी में अवश्य होगा। इसे नकारा नहीं जा सकता है। हाँ, इतना अवश्य हो सकता है कि इसका रूप छोटा बड़ा कुछ अवश्य बदलता हुआ हो सकता है, लेकिन यह अवश्य इक्कीसवीं सदी के भारत में प्रवेश कर जायेगा। इसी तरह महँगाई की जो आज समस्या है, वह शायद कल और बढ़कर होती हुई इक्कीसवीं सदी में सिर दर्द के रूप में होगी।
अब तक देश की जिन दुर्व्यवस्थाओं, कमजोरियों और दुष्प्रवृत्तियों की चर्चा की गई है, वे निश्चित रूप से इक्कीसवीं सदी के भारत में होगी। अब भारत की सद्प्रवत्तियों का उल्लेख भी आवश्यक रूप से किया जा रहा है। जिनका प्रवेश इक्कीसवीं सदी में अवश्य होगा।
इक्कीसवीं सदी का भारत कुछ विशेष अर्थों और दृष्टिकोणों से महानतर राष्ट्र होगा। भारत में इलैक्ट्रानिकस की धूम इतनी मच जायेगी कि इसे देख करके आज इलैक्ट्रानिकस में विकसित राष्ट्र दाँतों तले अंगुलियाँ दबाने लगेंगे। भारत की आज जो इलैक्ट्रानिकस में पहुँचा है, वह इक्कीसवीं सदी में अवश्य होगी। इसी तरह से इक्कीसवीं सदी के भारत में कम्प्यूटर का अत्यधिक विस्तार हो जायेगा।
भारत और राष्ट्रों के समान विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगतिगामी होगा। वह अंतरिक्ष के कठिन रहस्यों को खोज करते हुए अंतरिक्ष में अपनी अलग खोज प्रस्तुत करेगा। इलैक्ट्रानिकस की तरह मेकैनिकल क्षेत्र में भारत की अद्भुत पहुँच होगी। इक्कीसवीं सदी के भारत में परराष्ट्रीय सम्बन्ध बहुत गहरा होगा। यों कह सकते हैं कि भारत परराष्ट्रों का नेता होगा, क्योंकि वर्तमान दशा में उसकी यह स्थिति अत्यन्त पुष्ट और शक्तिशाली है। इस प्रकार से परराष्ट्र सम्बन्धों को मजबूत करता हुआ भारत विश्व का एक शक्तिशाली और महान राष्ट्र होगा। आजादी के बाद इतने से थोड़े समय में भारत ने जो प्रगृति और उन्नति की है, उसे देखते हुए हम कह सकते हैं इक्कीसवीं सदी में भारत विकासशील राष्ट्र न होकर विश्व का एक विकसित राष्ट्र होगा।
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इक्कीसवीं सदी का भारत ’’ शब्द जुबान में आते ही दिमाग में एक छवि उभर आती है, जिसमें भारत तरक्की करता हुआ एक विकासशील देश है,जिसकी अर्थ व्यवस्था दुनिया की सबसे मजबूत अर्थ व्यवस्थाओं में से एक है। और एक आदर्श लोकतांत्रिक देश है, विश्व में सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में दूसरे स्थान पर है। दुनिया के बेशुमार दौलतमंद भी बसतें हैं यहां पर, और हाल ही में आयोजित हुई F-1 रेस यहां की तरक्की में चार चांद लगा जाती है। कुछ इस तरह की छवि बनती है हमारे दिमाग में इक्कीसवीं सदी के भारत की।
क्या ये 21वीं सदी का वही भारत है जो मौजूदा दौर में देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार से जूझ रहा है, जहां पर रोज चोरी, डकैती, मर्डर, रेप, ठगी आम बात हो गई है ? क्या ये वही भारत है जहां स्त्री को देवी का अवतार माना जाता रहा है पर आज जहां घर पर भी बहू-बेटियां सुरक्षित नहीें हैं ? जहां अपने अपनों को ही काट मार रहे हैं ? क्या ये वही भारत है जहां एक जमानें में घरों में ताले नहीं लगते थे और आज आधुनिक तकनीकि से निर्मित तालों से भी घर सुरक्षित नही हैं। एक जमाने में भारत सोने की चिडि़या कहलाता था, जहां दूध-दही की नदियां बहती थीं, और अब क्या कहलाता है हमारा भारत, और अब यहां किस चीज की बहतीं हैं नदियां ? कुछ इस तरह का हो गया है हमारा 21वीं सदी का भारत जहां तरक्की से दो गुनी तेजी से बढ़ रही हैं बुराइयां। क्या बापू ने इसी भारत की कल्पना कर के अंग्रेजों से लोहा लिया था ? क्या बाबा साहेब ने इसी भारत की कल्पना कर के संविधान लिखा था ?
ISHANT