Hindi, asked by charansingh99163, 4 months ago

अनुच्छेद लिखिए:
(क) जल समस्या का निदान​

Answers

Answered by aarusharma094
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Answer:

“जल है तो कल है”, बावजूद इसके जल बेवजह बर्बाद किया जाता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल-संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही है। हम हमेशा से सुनते आये हैं “जल ही जीवन है”। जल के बिना सुनहरे कल की कल्पना नहीं की जा सकती, जीवन के सभी कार्यों का निष्पादन करने के लिये जल की आवश्यकता होती है।

Explanation:

. पानी का अत्यधिक दुरुपयोग

पानी का दोहन एक ऐसा कारण है जो कि पानी की कमी के प्रमुख कारणों में माना जाता है यह सिर्फ लोगों के नहाते-धोने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कृषि, जानवरों फैक्ट्रियों आदि के द्वारा भी पानी का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है। इसके अलावा भी बहुत सारे क्षेत्रों में पानी का आना बनाया सदुपयोग होना भविष्य के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।

2. जल प्रदूषण

जल प्रदूषण एक बड़ी समस्या है खासकर अगर हम विश्व के उन हिस्सों की बात करें, जहां पर कचरा निकासी का कोई मजबूत ढाँचा नहीं है। ये कचरे कुछ भी हो सकते हैं, जैसे कि किसी तेल फैक्ट्री के कचरा, रासायनिक फैक्ट्री का कचरा, आम आदमी के जीवन शैली से उत्पन्न कचरा, तथा पशुओं के मृत शरीरों से उत्पन्न कचरा आदि।

इससे कोई फर्क नही पड़ता कि ये कचरे क्या हैं, किस रूप में हैं, लेकिन ये जरूर समझा जाना चाहिए कि इन सभी से पानी बुरी तरह से प्रदूषित होता है।

3. सूखा

पानी की कमी की बात कर रहे हो तो सूखे का नाम आना लाजमी है। भारत ही नहीं विश्व के कई क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बराबर बनी रहती है। जब पानी बरसेगा नहीं, तो भू जल का स्तर इतना नीचे हो जाएगा कि लोगों के लिए पानी निकालना लगभग असंभव हो जाएगा। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि इस स्थिति से निपटने के लिए हमारे पास ज्यादा कुछ खास होता भी नहीं है।

4. पानी के स्त्रोत की कमी

भौगोलिक तौर पर देखा जाए तो दुनिया के बहुत सारे क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर पानी के स्रोत ही नहीं है अगर है भी तो कई किलोमीटर दूर पर है इन परिस्थितियों में भी लोगों को जीवन जीने के लिए पानी तो चाहिए ही होता है।

पानी की कमी के प्रभाव (effects of water scarcity in hindi)

1. पीने के पानी की भारी कमी

अगर आदमी दो-चार दिन में एक बार ही नहायेगा तो चल जाएगा, अगर आदमी अपने कपड़ों को बार-बार नहीं धोएगा तभी भी चल जाएगा लेकिन अगर आदमी पानी नहीं पी पाएगा तो बिल्कुल नहीं चल पाएगा। सबसे बड़ा प्रभाव यही पड़ता है कि लोगों को पीने तक कि पानी के लिए दर-ब-दर भटकना पड़ता है।

स्वच्छ और साफ पानी की तो बात छोड़िए, बहुत सारे क्षेत्र तो ऐसे भी हैं जहाँ नदियों, जलाशयों तक के पानी के लिए लोगों को कई किलोमीटर तक भटकना पड़ता है।

2. अशिक्षा

पानी की कमी से अशिक्षा जैसी बड़ी समस्या भी भयंकर रुप ले लेती है। दरासल वो बच्चे जिन्हें स्कूल जाकर अपनी पढ़ाई करनी चाहिए थी, वह अपने माता पिता या बड़ो के साथ पानी खोजने में और उसके घर तक लाने में ही रह जाते हैं। स्कूल जाने तक का उन्हें मौका नहीं मिल पाता है।

Answered by riyabksc737
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Answer:

“जल है तो कल है”, बावजूद इसके जल बेवजह बर्बाद किया जाता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल-संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही है। हम हमेशा से सुनते आये हैं “जल ही जीवन है”। जल के बिना सुनहरे कल की कल्पना नहीं की जा सकती, जीवन के सभी कार्यों का निष्पादन करने के लिये जल की आवश्यकता होती है

Explanation:

पिछले कुछ दशकों से जल संकट भारत के लिये बहुत बड़ी समस्या है। इन दिनों जल संरक्षण शोधकर्ताओं के लिये मुख्य विषय है। जल संरक्षण की बहुत सी विधियाँ सफल हो रही हैं। जल संकट और जल संरक्षण से सम्बन्धित अनेक विषयों पर इस लेख में विचार किया गया है।आधारभूत पंचतत्वों में से एक जल हमारे जीवन का आधार है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिये कवि रहीम ने कहा है- ‘‘रहिमन पानी राखिये बिना पानी सब सून। पानी गये न उबरै मोती मानुष चून।’’ यदि जल न होता तो सृष्टि का निर्माण सम्भव न होता। यही कारण है कि यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसका कोई मोल नहीं है जीवन के लिये जल की महत्ता को इसी से समझा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ नदियों के तट पर ही विकसित हुई और अधिकांश प्राचीन नगर नदियों के तट पर ही बसे। जल की उपादेयता को ध्यान में रखकर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम न सिर्फ जल का संरक्षण करें बल्कि उसे प्रदूषित होने से भी बचायें। इस सम्बन्ध में भारत के जल संरक्षण की एक समृद्ध परम्परा रही है और जीवन के बनाये रखने वाले कारक के रूप में हमारे वेद-शास्त्र जल की महिमा से भरे पड़े हैं। ऋग्वेद में जल को अमृत के समतुल्य बताते हुए कहा गया है- अप्सु अन्तः अमतं अप्सु भेषनं।

जल की संरचना - पूर्णतः शुद्ध जल रंगहीन, गंधहीन व स्वादहीन होता है इसका रासायनिक सूत्र H2O है। ऑक्सीजन के एक परमाणु तथा हाइड्रोजन के दो परमाणु बनने से H2O अर्थात जल का एक अणु बनता है। जल एक अणु में जहाँ एक ओर धनावेश होता है वहीं दूसरी ओर ऋणावेश होता है। जल की ध्रुवीय संरचना के कारण इसके अणु कड़ी के रूप में जुड़े रहते हैं। वायुमण्डल में जल तरल, ठोस तथा वाष्प तीन स्वरूपों में पाया जाता है। पदार्थों को घोलने की विशिष्ट क्षमता के कारण जल को सार्वभौमिक विलायक कहा जाता है। मानव शरीर का लगभग 66 प्रतिशत भाग पानी से बना है तथा एक औसत वयस्क के शरीर में पानी की कुल मात्रा 37 लीटर होती है। मानव मस्तिष्क का 75 प्रतिशत हिस्सा जल होता है। इसी प्रकार मनुष्य के रक्त में 83 प्रतिशत मात्रा जल की होती है। शरीर में जल की मात्रा शरीर के तापमान को सामान्य बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जल संकट और भारत - आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत भी जल संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है। न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी जल संकट बढ़ा है। वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जहाँ पानी की कमी बढ़ी है, वहीं राज्यों के मध्य पानी से जुड़े विवाद भी गहराए हैं। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। जहाँ मीठे पानी का प्रतिशत कम हुआ है वहीं जल की लवणीयता बढ़ने से भी समस्या विकट हुई है। भूगर्भीय जल का अनियंत्रित दोहन तथा इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता पारम्परिक जलस्रोतों व जल तकनीकों की उपेक्षा तथा जल संरक्षण और प्रबन्ध की उन्नत व उपयोगी तकनीकों का अभाव, जल शिक्षा का अभाव, भारतीय संविधान में जल के मुद्दे का राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना, निवेश की कमी तथा सुचिंतित योजनाओं का अभाव आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिसकी वजह से भारत में जल संकट बढ़ा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट ने जहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं, वहीं पानी की कमी को भी बढ़ाया है। वर्तमान समय में देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ प्रतिशत बढ़ रही है। ऐसे में वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 150 से 180 करोड़ के बीच पहुँचने की सम्भावना है। ऐसे में जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना कितना दुरुह होगा, समझा जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 60 प्रतिशत की कमी आयी है।

जल संरक्षण एवं संचय के उपाय - जल जीवन का आधार है और यदि हमें जीवन को बचाना है तो जल संरक्षण और संचय के उपाय करने ही होंगे। जल की उपलब्धता घट रही है और मारामारी बढ़ रही है। ऐसे में संकट का सही समाधान खोजना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बनता है। यही हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी बनती है और हम अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से भी ऐसी ही जिम्मेदारी की अपेक्षा करते हैं। जल के स्रोत सीमित हैं। नये स्रोत हैं नहीं, ऐसे में जलस्रोतों को संरक्षित रखकर एवं जल का संचय कर हम जल संकट का मुकाबला कर सकते हैं। इसके लिये हमें अपनी भोगवादी प्रवित्तियों पर अंकुश लगाना पड़ेगा और जल के उपयोग में मितव्ययी बनना पड़ेगा। जलीय कुप्रबंधन को दूर कर भी हम इस समस्या से निपट सकते हैं। यदि वर्षाजल का समुचित संग्रह हो सके और जल के प्रत्येक बूँद को अनमोल मानकर उसका संरक्षण किया जाये तो कोई कारण नहीं है कि वैश्विक जल संकट का समाधान न प्राप्त किया जा सके। जल के संकट से निपटने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव यहाँ बिन्दुवार दिये जा रहे हैं-

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