अनुच्छेद लिखिए योजना का उद्देश्य
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भारत की दसवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 2002 से प्रारम्भ हुई है । 2002-07 की अवधि वाली इस योजना के प्रारूप को योजना आयोग की 5 अक्टूबर, 2002 की बैठक में मंजूरी प्रदान की गई थी ।
देश में गरीबी व बेरोजगारी को समाप्त करने तथा 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी करने के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 8 प्रतिशत की वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर का लक्ष्य 10वीं पंचवर्षीय योजना में निर्धारित किया गया है । विकास दर को 5.5 प्रतिशत के ‘स्थिर स्तर’ से निकालकर 8 प्रतिशत तक ले जाने के लिए अलग-अलग राज्यों के लिए विकास के अलग-अलग लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं ।
आन्ध्र प्रदेश के लिए यह 6.8 प्रतिशत प्रतिवर्ष (नौवीं योजना में प्राप्त वृद्धि 4.6 प्रतिशत), अरुणाचल प्रदेश के लिए 8.0 प्रतिशत प्रतिवर्ष (4.4 प्रतिशत) व असम के लिए 6.2 प्रतिशत (2.0 प्रतिशत) होगा । गुजरात व कर्नाटक की वृद्धि नौवीं योजना में प्राप्त की गई है जबकि दसवीं योजना के इनके लिए क्रमश: 10.2 प्रतिशत व 10.1 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं ।
दसवीं पंचवर्षीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का कुल परिव्यय 15,92,300 करोड़ रुपए (2001-02 के मूल्य स्तर पर) निर्धारित किया गया है । इसमें केन्द्र की योजना का परिव्यय 9,21291 करोड़ रुपए तथा राज्यों व केन्द्रशासित क्षेत्रों का परिव्यय 6,71009 करोड़ रुपए होगा । योजना के लिए बजटीय सहायता 7,06000 करोड़ रुपए निर्धारित कीं गई है ।
साथ ही विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का अन्तर्प्रवाह 7.5 अरब डॉलर प्रतिवर्ष किया जायेगा । योजना में विद्युत की कुल 41110 मेगावाट अतिरिक्त क्षमता के सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । इससे 25417 मेगावाट ताप विद्युत की 14393 मेगावाट क्षमता जल विद्युत की व शेष 1300 मेगावाट क्षमता परमाणु ऊर्जा से सृजित की जायेगी ।
योजना की पाँच वर्षों की अवधि में प्रतिवर्ष एक करोड़ की दर से रोजगार के पाँच करोड़ अवसर सृजित किए जायेंगे । योजना के अन्त तक कर-जीडीपी अनुपात को 8.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 10.3 प्रतिशत करने व गैर-योजना व्यय को जीडीपी के 11.3 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत करने का लक्ष्य है ।
योजना के अन्त (मार्च 2007) तक देश में साक्षरता दर को बढाकर 75 प्रतिशत करने, शिशु मृत्यु दर को घटाकर 45 प्रति हजार करने तथा वनाच्छादन को बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने, शिशु मृत्यु दर को घटाकर 45 प्रति हजार करने तथा वनाच्छादन को बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य है ।
सन् 2007 में देश में निर्धनों की कुल सुख्या 22 करोड़ होगी तथा निर्धनता का सर्वाधिक प्रकोप अविभाजित बिहार (वर्तमान में बिहार व झारखण्ड) व उड़ीसा में होगा । प्रस्तुत आँकडों के अनुसार इन राज्यों में ही निर्धनों की कुल सज्जा 10 करोड़ होगी । जो देश में निर्धनों की कुल संख्या का 50 प्रतिशत होगी ।
दसवीं पंचवर्षीय योजना के दस्ताबेज में प्रस्तुत योजना आयोग के इन आँकडों में बताया गया है कि इस योजना के अन्त में सर्वाधिक निर्धनता अनुपात अविभाजित बिहार में होगा । 1999-2000 में उड़ीसा में सर्वाधिक 47.14 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे थे, जबकि अविभाजित बिहार में यह 42.6 प्रतिशत थी ।
योजना आयोग के आकलन में दसवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक देश में निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या जहाँ 19.34 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, वहीं ग्रामीण व शहरी क्षेत्रा में अलग-अलग यह क्रमश: 21.07 प्रतिशत व 15.05 प्रतिशत सम्भावित है । निरपेक्ष रूप में वर्ष 2007 में देश की कुल 22 करोड़ निर्धन जनसंख्या में 17 करोड़ ग्रामीण क्षेत्रो की व 5 करोड़ से कुछ कम शहरी क्षेत्रो की होगी ।
सन् 2020 तक 9 प्रतिशत की वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करने के साथ-साथ बेरोजगारी, निरक्षरता व निर्धनता उन्मूलन तथा प्रति व्यक्ति आय को चार गुना हो जाने की आशा इसमें व्यक्त की गई है । दस्तावेज के अनुसार सन् 2020 तक देश की 1.35 अरब जनसंख्या बेहतर पोषित, अच्छे रहन-सहन के स्तर वाली, अधिक शिक्षित व स्वस्थ तथा अधिक औसत आयु वाली होगी ।
विशेषज्ञों की राय के आधार पर तैयार इस दस्तावेज में आशा व्यक्त की गई है कि 2 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि की दर से रोजगार के 20 करोड़ अतिरिक्त अवसर सन 2020 तक सृजित किए जा सकेंगे । इसके साथ ही कृषि में रोजगार 56 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से घटकर 40 प्रतिशत ही रह जाएगा । दस्तावेज के अनुसार देश की कुल जनसंख्या में शहरी जनसंख्या 25.5 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से बढ़कर 2020 तक 40 प्रतिशत हो जाने की सम्भावना है ।