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यदि मैं प्रधानाचार्य होता !
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यदि मैं प्रधानाचार्य होता !
सभी मनुष्य जीवन में बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं । उनकी आकांक्षाएँ ही परिणत होकर उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक व व्यवसायी आदि बनाती हैं ।
यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मनुष्य के अंतर्मन में दृढ़ इच्छा का समावेश हो क्योंकि दृढ़ इच्छा ही सफलता हेतु प्रथम सोपान है । हर मनुष्य की भाँति मेरे मन में यह तीव्र इच्छा है कि मैं भी शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दूँ । मेरी सदैव से यही अभिलाषा रही है कि मैं विद्यालय का प्रधानाचार्य बनूँ ।
प्रधानाचार्य के रूप में मेरे कुछ दायित्व हैं जो अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । आधुनिक परिवेश को देखते हुए मेरा मानना है कि विद्यालय में अनुशासन का होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । मैं विद्यालय में अनुशासन बनाए रखने हेतु हर संभव प्रयास करूँगा क्योंकि अनुशासन के बिना कुछ भी महत्वपूर्ण प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।
लेकिन अनुशासन नियम के बल छात्रों पर लागू नहीं होता, अत: आवश्यक है कि सभी शिक्षक, छात्र तथा विद्यालय कर्मचारी आत्मानुशासन का पाठ सीखें । विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से यह कार्य थोड़े से प्रयासों से संभव है ।
राष्ट्रपिता गाँधी जी के अनुसार, ”हम समाज में तब तक अनुशासन स्थापित नहीं कर सकते जब तक हम स्वयं आत्म-अनुशासन में रहना न सीख लें ।” यह निश्चित रूप से यथार्थ है । अत: मैं स्वयं अनुशासन में रहूँगा । इसके अतिरिक्त मैं यह प्रयास करूँगा कि विद्यालय के समस्त अध्यापकगण व कार्यकर्ता विद्यालय में समय से आएँ तथा विद्यालय के नियमों का भली-भाँति अनुसरण करें ।
सभी छात्र एवं शिक्षक पठन-पाठन के साथ-साथ अनुशासन व अन्य नैतिक गुणों से युक्त होकर विद्यालय प्रांगण में उपस्थित रहेंगे क्योंकि जब हम स्वयं नैतिक गुणों व अनुशासन से परिपूरित नहीं होंगे तब हमारा कार्य और भी अधिक दुष्कर हो जाएगा। अत: प्रधानाचार्य के रूप में मेरा सर्वाधिक कार्य यह होगा कि मैं विद्यालय में ऐसी व्यवस्था कायम करूँ ताकि सभी छात्र व अध्यापकगण विद्यालय में समय पर आएँ और सभी अध्यापक समय पर अपनी कक्षाओं में जाकर अध्यापन कार्य संपन्न करें ।
विद्यालय में अनुशासन के पश्चात् मेरी दूसरी प्रमुख प्राथमिकता रहेगी कि छात्रों में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाए, जो उनके उत्तम चरित्र व व्यक्तित्व के निर्माण में अत्यत सहायक होता है । देश में आज चारों ओर नैतिक मूल्यों का हास होने के कारण चारों ओर व्याभिचार, असंतोष, लूटमार आदि की घटनाएँ बढ़ती ही जा रही हैं।
इसके लिए आवश्यक है कि छात्रों में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जा सके । इस संदर्भ में मैं विद्यालय पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को पूर्ण अनिवार्यता प्रदान करूँगा । इतना ही नहीं, इसमें उत्तीर्ण होना भी सभी छात्रों के लिए अनिवार्य होगा ।
विद्यालय में अनुशासन एवं नैतिक शिक्षा के अतिरिक्त मैं पाठ्यक्रम की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दूँगा । मैं उन पुस्तकों को पाठ्यक्रम में शामिल करूँगा जो छात्रों में मौखिक ज्ञान तो दे ही दें, साथ ही साथ उन्हें व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त हो । विह्ययलय में तकनीकी शिक्षा पर विशेष ध्यान देना मेरी प्राथमिकता रहेगी ।
आज का युग कंप्यूटर का युग है । धीरे-धीरे इसकी महला हमारे देश में भी बढ़ती जा रही है । समय के साथ यह विज्ञान वर्ग के ही छात्रों के लिए नहीं अपितु अन्य वर्गों के लिए भी आवश्यक होगा । अत: मैं विद्यालय प्रबंधक कमेटी के सहयोग से अपने विद्यालय में प्राथमिक कक्षाओं से ही कंप्यूटर अनिवार्य रूप से दिलाने की व्यवस्था कराऊंगा ताकि हमारे छात्र भविष्य में प्रगति की दौड़ में पीछे न रह जाएँ ।
खेलकूद एवं व्यायाम किसी भी मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए अति आवश्यक है । स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है, यह सभी जानते हैं । अत: मैं चाहूँगा कि हमारे विद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद तथा व्यायाम आदि को भी समान रूप से महत्व प्रदान किया जाए । बच्चे अपनी पढ़ाई के साथ ही साथ खेलकूद तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यकलापों में भाग लें तथा सुदृढ़ व सुगठित व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें ।
आज हुमारे देश में सभी ओर लूटमार, जातिवाद, सांप्रदायिकता, कालाबाजारी आदि बुराइयों की जड़ें गहराती जा रही हैं । भाई-भाई को ही मारने पर तुला हुआ है । जातिवाद तथा क्षेत्रीयवाद के नाम पर जगह-जगह दंगे-फसाद बढ़ रहे हैं, इन सबका प्रमुख कारण है देश में नागरिकों में राष्ट्रीय भावना का अभाव । लोगों में राष्ट्र, संविधान तथा तिरंगे के प्रति सम्मान घट रहा है ।
देश में बनी वस्तुओं व इसकी संस्कृति को हमारी नई पीढ़ी तुच्छ दृष्टि से देख रही है जो किसी भी राष्ट्र के लिए अति दुर्भाग्यपूर्ण है । इन परिस्थितियों में विद्यालय में कार्यरत सभी अध्यापकों का दायित्व और भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि मनुष्य जो कुछ भी छात्र जीवन में सीखता व ग्रहण करता है वही उसके चरित्र पर स्थाई प्रभाव डालते हैं ।
मैं प्रधानाचार्य के पद पर रहते हुए पूर्ण निष्ठा से अपने दायित्व का निर्वाह करूँगा । अपने विद्यालय में इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था रखूँगा ताकि हमारे समस्त छात्रगण अपनी पढ़ाई के साथ ही समस्त नैतिक मूल्यों को भी ग्रहण कर सकें एवं उनमें राष्ट्र तथा अपनी गौरवशाली संस्कृति व सभ्यता के प्रति प्रेम व गर्व की भावना जागृत हो सके ।
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teachable hai kya kar raha hai kya baat karenge aap ka naam kya hai ye kya ho kya baat hai kya baat hai kya baat hai kya baat hai kya baat hai kya baat hai kya baat hai tera kajal karta ghayal kya baat hai kya baat hai