Hindi, asked by aayushirani788, 2 days ago

अनुच्छेद लेखन –( 100-150 शब्द )

"कोरोना महामारी का विद्यार्थी जीवन पर प्रभाव"

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Answered by shalakakothawade123
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Answer:

मनुष्य के जीवन पर कोरोना का बहुत ही व्यापक प्रभाव पड़ा है। विद्यार्थी जीवन भी इससे अछूता नहीं रहा। अब यदि हम बात करें कि यह विद्यार्थी जीवन को मानसिक रूप से कैसे प्रभावित किया तो निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है।

Answered by hraj65794
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Answer:

125 पृष्ठ की रिपोर्ट, "'वक़्त सालों तक उनका इंतजार नहीं करता : कोविड-19 महामारी के कारण बच्चों के शिक्षा के अधिकार में असमानता में वृद्धि," ("'इयर्स डोंट वेट फॉर देम': इंक्रीज्ड इनक्वालिटीज़ इन चिल्ड्रेन्स राइट टू एजुकेशन ड्यू टू द कोविड-19 पैन्डेमिक") में यह साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है कि कोविड के कारण स्कूलों के बंद होने से कैसे बच्चे असमान रूप से प्रभावित हुए क्योंकि महामारी के दौरान तमाम बच्चों के पास सीखने के लिए जरूरी अवसर, साधन या पहुंच नहीं थी. ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा पर अत्यधिक निर्भरता ने शिक्षा संबंधी सहायता के मौजूदा असमान वितरण को बढ़ावा दिया है. अनेक सरकारों के पास ऑनलाइन शिक्षा शुरू करने के लिए ऐसी नीतियां, संसाधन या बुनियादी ढांचा नहीं थे जिससे कि सभी बच्चे समान रूप से शिक्षा हासिल कर सके.

ह्यूमन राइट्स वॉच की सीनियर एजुकेशन रिसर्चर एलिन मार्टिनेज ने कहा, "महामारी के दौरान लाखों बच्चों के शिक्षा से वंचित होने के कारण, अब समय आ गया है कि बेहतर और अधिक न्यायपूर्ण एवं मजबूत शिक्षा प्रणाली का पुनर्निर्माण कर शिक्षा के अधिकार को सुदृढ़ किया जाए. इसका उद्देश्य सिर्फ महामारी से पहले की स्थिति बहाल करना नहीं, बल्कि व्यवस्था की उन खामियों को दूर करना होना चाहिए जिनके कारण लंबे समय से स्कूल के दरवाजे सभी बच्चों के लिए खुले नहीं हैं.”

ह्यूमन राइट्स वॉच ने अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 के बीच 60 देशों में 470 से अधिक छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों का साक्षात्कार किया.

नाइजीरिया के लागोस में सात बच्चों की एक मां, जिनकी आमदनी का स्रोत सूख हो गया क्योंकि जिस विश्वविद्यालय में वह सफाईकर्मी थीं, महामारी में बंद हो गया, ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया, "उनके शिक्षक ने मुझे ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एक बड़ा फोन [स्मार्टफोन] खरीदने के लिए कहा. मेरे पास अपने परिवार का पेट भरने के लिए पैसे नहीं हैं और मैं रोजमर्रे के खर्चे के लिए संघर्ष कर रही हूं. मैं फोन और इंटरनेट का खर्च कैसे उठा सकती हूं?”

मई 2021 तक, 26 देशों में स्कूल पूरी तरह से बंद थे और 55 देशों में स्कूल केवल आंशिक रूप से - या तो कुछ स्थानों में या केवल कुछ कक्षाओं के लिए - खुले थे. यूनेस्को के अनुसार, दुनिया भर में स्कूल जाने वाले करीब 90 फीसदी बच्चों की शिक्षा महामारी में बाधित हुई है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि लाखों छात्रों के लिए स्कूलों का बंद होना उनकी शिक्षा में अस्थायी व्यवधान भर नहीं, बल्कि अचानक से इसका अंत होगा. बच्चों ने काम करना शुरू कर दिया है, शादी कर ली है, माता-पिता बन गए हैं, शिक्षा से उनका मोहभंग हो गया है, यह मान लिया है वे फिर से पढ़ाई शुरू नहीं कर पाएंगे या उम्र अधिक हो जाने के कारण अपने देश के कानूनों के तहत सुनिश्चित मुफ्त या अनिवार्य शिक्षा से बंचित हो जाएंगे.

यहां तक कि जो छात्र अपनी कक्षाओं में लौट आए हैं या लौट आएंगे, साक्ष्य बताते हैं कि आने वाले कई वर्षों तक वे महामारी के दौरान पढ़ाई में हुए नुकसान के प्रभावों को महसूस करते रहेंगे.

बहुत से बच्चों की पढ़ाई में क्षति पहले से मौजूद समस्याओं के कारण हुई है: संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, कोविड-19 के प्रसार से पहले ही पांच में से एक बच्चा स्कूल से बाहर था. कोविड के कारण स्कूलों के बंद होने से खास तौर पर महामारी के पूर्व शिक्षा में भेदभाव और बहिष्करण का सामना करने वाले समूहों के छात्रों को नुकसान पहुंचा है.

इन छात्रों में शामिल हैं: गरीबी में रहने वाले या उसकी दहलीज़ पर खड़े बच्चे; विकलांग बच्चे; किसी देश के नृजातीय और नस्लीय अल्पसंख्यक समूहों के बच्चे; लैंगिक असमानता वाले देशों की लड़कियां; लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) बच्चे; ग्रामीण क्षेत्रों या सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों के बच्चे; और विस्थापित, शरणार्थी, प्रवासी तथा शरण मांगने बच्चे.

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