Hindi, asked by avi86579, 7 months ago

अनुच्छेद-लेखन आजकल गिरते नैतिक मूल्य में मैंहगाई की भूमिका

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Answered by Arpita1678
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क्यों आज हमारी युवा पीड़ी खोती जा रही है अपने नैतिक मूल्य? इस विषय पर अक्सर बहुत बार चर्चा सुनने को मिलती है, टी वी न्यूज़ चैनल्स के माध्यम से औरसमाचार पत्रों के माध्यम से. अगर हम अपने परिवार को लेकर आगे बढें, अपनेआस पड़ोस को लेकर आगे बढ़ें तो हम भी इस बात से जरूर इतेफाक रखेंगे कि आज कीजो हमारी युवा पीड़ी है और जो युवा पीड़ी आ रही है, उसमे जरूर कही न कहींनैतिक मूल्यों की कमी नजर आती है, जैसे नैतिक मूल्य हमारे पूर्वजों के थे,हमारे माता पिता के थे. ये जो आज की पीड़ी है जिसमे मैं भी आता हूँ जरूरकही न कही हम अपना नैतिक मूल्य खोते जा रहे है और ये दर नित प्रतिदिन बढतीजा रही है. जो संस्कार हमारे पूर्वजों के थे वो संस्कार हम अपनी नई पीड़ीको देने में कामयाब नही हो पा रहे है और मेरी नजर में इसके दोषी भी हमख़ुद है, हमारा परिवार है, हमारे माँ बाप है.

अगर मैं अपनी उम्रकी युवा पीड़ी को उद्दहरण के तोर पर लेकर आगे बड़ों तो बचपन मैं दादा-दादियों द्वारा हमको अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनने को मिलती थी. कहतेहै कि जब बच्चा छोटा होता है तो उस समय उसका मस्तिष्क बिल्कुल शून्य होताहै, आप उसको जैसे संस्कार और शिक्षा देंगे वो उसी राह पर आगे बढता है. अगर बाल्यकाल में बच्चे को ये शिक्षा दी जाती है कि बेटा चोरी करना बुरा कामहै तो वो चोरी करने से पहले सो बार सोचेगा, क्योंकि उसको शिक्षा मिली हुईहै कि चोरी करना बुरी बात है. बाल्यकाल में बच्चे को संस्कारित करने मेंघर के बुजुर्गों का, माता पिता का बहुत बड़ा हाथ होता है. जैसे मैंने कहाकि जब छोटे थे और गाँव के बुजुर्ग दादा-दादियों की संगत में कुछ पल ब्यतीतकरते थे, तो वो हमको बहुत कुछ अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनाया करते थे जिसका कुछ न कुछ प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क पर पड़ता था, उनमे से कुछ कहानिया प्रेरणादायी होती थी, कुछ परोपकारी होती थी, कुछ जीवों पर दया करने वालीहोती थी, कुछ देवी देवितोँ की होती थी और कुछ क्षेत्रीय कहानिया होती थी और सबका उद्देश्य हमारे अन्दर अच्छे संस्कारों को डालने का होता था और जोकि हमें संस्कारित बनाए रखने में आज भी बहुत मदद करते है. आज भी यदि हमारेकदम अपने पथ से विचलित होने का प्रयास करते है तो वो पुरानी कही हुई बातेंयाद आज जाती है और जो हमें फ़िर से सही पथ पर ले जाने का प्रयास करती है.शायद ही अब किसी बच्चे को वो दादा दादी की कहानियासुनने को मिलती होंगी, वो लोरी वो गीत सुनने को मिलते होंगे और शायद न हीकोई माँ बाप के पास इतना समय है कि वो अपने बच्चे को संस्कारित होने केसंस्कार दे सकें. आज महात्मा गांधी, भगत सिंह, विवेकनन्द, लाल बहादुरशास्त्री केवल या तो उनके जन्म दिवस के मोके पर ही याद किए जाते है याउनके निर्वाण दिवस पर, आज वो हमारे घरों से नदारद है, हमारे दादा-दादियोंकी कहानियो से नदारद है, हमारे माँ बाप की जुबान से बहुत दूर है, हमारेआस से दूर है और हमारे पड़ोस से दूर है. तो कैसे हम ये आशा कर सकते है किहमारे बच्चों से अच्छे संस्कार आयें? अच्छे संस्कार देने के लिए हमारे पासतो समय नही है, जो उनको अच्छे संस्कार दे सकते थे उनको तो उपेक्षित कियाजाता है, जिन पुस्तकों को पढने से उनको संस्कारित किया जा सकता है उनकास्थान कोमिक्स, खिलोने और कोम्प्टर गेम्स ने ले लिया है, तो कैसे हम ये आशकर सकते है.

इसके बारे में हमको ख़ुद सोचना चाहिए क्योंकि कल हमेंभी किसी का माँ / बाप और दादा/दादी बनना है. हम ये निश्चय करते है किहमारी संतान किस दिशा में जा रही है और हम उनको क्या संस्कार दे रहे है.इसका और कोई जिम्मेदार नही है, केवल हम ही है.

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Answered by amanmahato847
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Answer:

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Explanation:

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