अनुच्छेद लेखन गांव में बसता भारत इन हिंदी
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सभी यह बात स्वीकारते हैं कि भारत गांवों का देश है। यह इसलिए कि इसकी 80% जनता गांव में ही रहती है। वह कृषि पर निर्भर रहती है। वह कृषि के लिए दिन रात खून पसीना एक करती रहती है। उस पर गर्मी सर्दी और बरसात का कुछ भी असर नहीं पड़ता है। इन विशेषताओं के कारण भी भारत को गांवों का देश कहा जाता है। गांवों को ही भारत की आत्मा भी कहा जाता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर किसी कवि ने ठीक ही कहा है।
“ हे अपना हिंदुस्तान कहा
यह बसा हमारे गांवों में।”
उपयुक्त बातों को ध्यान में रखकर महात्मा गांधी ने भी कहा था। भारत का ह्रदय गांवों में बसता है गाँवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते है। एक किसान ही नगर वासियों के अन्नदाता है, सृस्टि के पालक है।
अपनी उपयुक्त विचारधारा के अनुसार उन्होंने किसानों को बहुत करीब से देखा है। उनकी दशा को सुधारने के लिए ग्रामीण योजनाओं को कार्यान्वित करने पर विशेष बल दिया। इस प्रकार उन्होंने ग्रामीणों की दशा को सुधारने के लिए निरंतर अथक प्रयास भी किए थे।
देश को स्वतंत्र होने के बाद भी गांव की दशा दयनीय है। हम देख रहे हैं कि देश को आजाद हुए हैं 73 वर्ष हो रहे है। फिर भी गांव के लोगों की दशा अत्यंत दयनीय दिखाई दे रही है। आज भी गाँवो में आजादी के पहले की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है आज भी गांवों में जमींदारी प्रथा विधमान है। छुआछूत, ऊंच -नीच, जाति प्रथा, आदि ज्यो की त्यों बनी हुई है। गांव का शासन व्यपारी, धन्नासेठ, जमीदार आदी आज भी ब्रिटिश शासन काल की तरह चला रहे हैं। फलतः शोषण, लूट-खसोट, बेरहमी, अन्याय, दवाब ओर भुखमरी का वातावरण है। यह भी कह सकते है पूर्व की अपेक्षा वातावरण और अधिक बढ़ गया है। ग्रामीणों पर शोषण चक्र आजकल व्यापारी जमीदार और गांव के मुखिया ने पहले से अधिक कर दिया। उनके हितों को अनदेखा करके उनका जीना दूभर कर दिया है।
Hope it helps
“ हे अपना हिंदुस्तान कहा
यह बसा हमारे गांवों में।”
उपयुक्त बातों को ध्यान में रखकर महात्मा गांधी ने भी कहा था। भारत का ह्रदय गांवों में बसता है गाँवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते है। एक किसान ही नगर वासियों के अन्नदाता है, सृस्टि के पालक है।
अपनी उपयुक्त विचारधारा के अनुसार उन्होंने किसानों को बहुत करीब से देखा है। उनकी दशा को सुधारने के लिए ग्रामीण योजनाओं को कार्यान्वित करने पर विशेष बल दिया। इस प्रकार उन्होंने ग्रामीणों की दशा को सुधारने के लिए निरंतर अथक प्रयास भी किए थे।
देश को स्वतंत्र होने के बाद भी गांव की दशा दयनीय है। हम देख रहे हैं कि देश को आजाद हुए हैं 73 वर्ष हो रहे है। फिर भी गांव के लोगों की दशा अत्यंत दयनीय दिखाई दे रही है। आज भी गाँवो में आजादी के पहले की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है आज भी गांवों में जमींदारी प्रथा विधमान है। छुआछूत, ऊंच -नीच, जाति प्रथा, आदि ज्यो की त्यों बनी हुई है। गांव का शासन व्यपारी, धन्नासेठ, जमीदार आदी आज भी ब्रिटिश शासन काल की तरह चला रहे हैं। फलतः शोषण, लूट-खसोट, बेरहमी, अन्याय, दवाब ओर भुखमरी का वातावरण है। यह भी कह सकते है पूर्व की अपेक्षा वातावरण और अधिक बढ़ गया है। ग्रामीणों पर शोषण चक्र आजकल व्यापारी जमीदार और गांव के मुखिया ने पहले से अधिक कर दिया। उनके हितों को अनदेखा करके उनका जीना दूभर कर दिया है।
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