Hindi, asked by singhtushar8630, 6 months ago

अनुच्छेद लेखन
घर में शौचालय
संकेत बिन्दु :शौचालय की जरूरत
,अच्छे स्वास्थ्य
का प्रतीक
शोचालय से लाभ सरकारी
अभियान के तौर पर​

Answers

Answered by ravindranain45621
2

Answer:

सेप्टिक टैंक वाले अस्वच्छकर शौचालय

1. यह अधिक खर्चीला एवं इसमें दीवाल और सतह पर प्लास्टिक करना पड़ता है जिससे लागत अधिक आती है।

2. इसमें तीन चैम्बर बनते हैं और इसमें ज्यादा जगह की आवश्यकता होती है।

3. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में प्रति व्यक्ति के उपयोग के हिसाब से ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है।

4. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में मल में कोई परिवर्तन नहीं होता है साथ ही पानी सोखने का कोई सिस्टम नही होने से एवं मूत्र और पानी के मल में लगातार मिलते रहने से यह और अधिक हानिकारक हो जाता है।

5. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में टैंक के भरने पर ओवर फ्लो की समस्या हो जाती है।

6. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में टैंक के भरने पर इसे खाली करना महंगा पड़ता है और बीमारी फैलाने की संभावना बनी रहती है। साथ ही जब तक ना खाली हो वह बहते मल की सफाई/निस्तारण की समस्या बनी रहती है जिससे ना केवल, स्वयं बल्कि दूसरों को भी परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं।

7. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में टैंक के भरने पर इकट्ठा हुए मल का उपयोग घरेलू स्तर पर संभव नहीं है।

8. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में मल एवं मल के किसी भी अवयव का निष्पादन/विसर्जन नहीं होता है।

9. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में गैस पाईप लगाना अनिवार्य है।

10. इसमें गैस पाईप अनिवार्य होने के कारण बदबू निकलती है।

11. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय को भरने के पश्चात् टैंक को साफ करने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, इसमें बहुत अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। खाली करने के लिए मशीन की जरूरत पड़ती है।

12. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय को भरने के पश्चात् गृह मलिक को स्वयं परेशानियों का सामना करना पड़ता है एवं आस-पास के लोगों को भी परेशानी औरे बदबू का सामना करना पड़ता है।

13. सेप्टिक टैंक वाले शौचालय में कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होती है।

Explanation:

इसमें केवल सुपरस्ट्रक्चर में यदि लाभार्थी चाहे तो यह प्लास्टर की जरुरत होती है। लिचपिट की चुनाई में सीमेंट कम लगता है इसलिए यह कम खर्चीला एवं एस्मेंक्म लागत आती है।

2.इसमें लिचपिट लाभार्थी की सुविधा एवं जमीन की उपलब्धता के अनुसार बनाये जा सकते हैं अतएव अपेक्षाकृत कम जगह के आवश्यकता होती है ।

3.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में रूरल पैन में लगता जिससे इसमें कम पानी की आवश्यकता होती है।

4.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में मूत्र, पानी का सुरिक्षत निपटान है तथा मल को खाद में परिवर्तित करने की प्रक्रिया सम्पादित होती है।

5.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में लिचपिट तकनीक का प्रयोग होता है तथा इसमें जंक्शन बॉक्स के द्वारा दूसरे पीट का प्रावधान निर्माण के दौरान ही रखा जाता है। जिसे लाभार्थी चाहे तो शुरुआत में या सुविधा अनुसार कभी भी बना सकता है।

6.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में लिचपिट तकनीक का प्रयोग होता है तथा इसमें जंक्शन बॉक्स के द्वारा दूसरे पीट का प्रावधान निर्माण के दौरान ही रखा जाता है तथा पीट के भरने पर खाली करना आसान।

7.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में लिचपिट के भरें के बाद एक वर्ष तक बंद रखने से यह सोना खाद के रूप में परिवर्तित हो जाता है। सोना खाद उत्तम किस्म की कार्बनिक खाद होती है।

8.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में मल के सभी अवयवों का निष्पादन/विसर्जन होता है।

9.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में गैस पाईप लगाना नहीं अनिवार्य है। गैस मिट्टी द्वारा सोख ली जाती है।

10.स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में लिचपिट तकनीक का उपयोग होने से किसी तरह की बदबू नहीं निकलती है।

11. स्वच्छकर जल-बंध शौचालय में लिचपिट भरने के पश्चात् yजंक्शन से जोड़कर दुसरे पीट को उपयोग में लिया जा सकता है तथा भरने जाने पर एक वर्ष तक सूखने के पश्चात उसे खाली करने में कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ती है।

12. स्वच्छकर जल-बंध शौचालय y जंक्शन होने से लिचपिट के भरने के बाद किसी प्रकार का समस्या ना तो खुद को और न दूसरों को समस्या का सामना करना पड़ता है।

13. स्वच्छकर जल-बंध शौचालय y जंक्शन होने से वैकल्पिक व्यवस्था की आवश्यकता ही नहीं होती है।

Answered by shreyhs2007
1

Answer:

Check explaination

Explanation:

शौचालय की जरूरत— स्वच्छता से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती घरों में शौचालयों का ना होना है। गांव में अक्सर ऐसा देखने को मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर लोग शौच के लिए खुले में जाते हैं और इसके कारण वहाँ का वातावरण में अस्वच्छता फैलती है| लोगों खुले में शौच करने की प्रथा को समाप्त करना बेहद जरूरी है। मानव मल में भारी संख्या में गंभीर बीमारियाँ फैलाने वाले कीटाणु होते हैं जिससे बीमारियाँ फैलती हैं| ये बीमारियाँ बहुत गंभीर प्रकार की होती हैं लेकिन अगर थोडा सा प्रेस किया जाए तो इनसे छुटकारा पाया जा सकता है|

शौचालय की जरूरत— स्वच्छता से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती घरों में शौचालयों का ना होना है। गांव में अक्सर ऐसा देखने को मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर लोग शौच के लिए खुले में जाते हैं और इसके कारण वहाँ का वातावरण में अस्वच्छता फैलती है| लोगों खुले में शौच करने की प्रथा को समाप्त करना बेहद जरूरी है। मानव मल में भारी संख्या में गंभीर बीमारियाँ फैलाने वाले कीटाणु होते हैं जिससे बीमारियाँ फैलती हैं| ये बीमारियाँ बहुत गंभीर प्रकार की होती हैं लेकिन अगर थोडा सा प्रेस किया जाए तो इनसे छुटकारा पाया जा सकता है|अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक— खुले में शौच से जल स्त्रोत प्रदूषित होते है और फिर उन जल स्त्रोतों का जल पीने के लायक नहीं रहता| इन स्त्रोतों के जल को पीने से गंभीर बीमारियां होने की भी संभावनाएं होती है। जल गुणवत्ता में एक खास पहलू है कि इसमें मल की मौजूदगी नहीं होनी चाहिए, इसलिए जब पेयजल की बैक्टीरियोलॉजिकल जांच की जाती है तो उसमें सबसे पहला उद्देश्य मल प्रदूषण की उपस्थिति की जांच करना होता है। एक खास तरह का बैक्टीरिया मानव मल की जल में उपस्थिति के संकेत देता है, जिसे ई-कोलाई कहते हैं। अगर जल में ई-कोलाई की मात्रा बहुत अधिक है तो यह जल मानव के पीने लायक नहीं है और अगर इस जल को पीया जाता है तो यह मानव के स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है| इसी कारण साफ़ एवं स्वच्छ पेयजल मानव के स्वास्थ्य एवं विकास के लिए बहुत आवश्यक है और जल स्त्रोतों को स्वच्छ रखने के लिए स्वच्छता एवं सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है|

शौचालय की जरूरत— स्वच्छता से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती घरों में शौचालयों का ना होना है। गांव में अक्सर ऐसा देखने को मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर लोग शौच के लिए खुले में जाते हैं और इसके कारण वहाँ का वातावरण में अस्वच्छता फैलती है| लोगों खुले में शौच करने की प्रथा को समाप्त करना बेहद जरूरी है। मानव मल में भारी संख्या में गंभीर बीमारियाँ फैलाने वाले कीटाणु होते हैं जिससे बीमारियाँ फैलती हैं| ये बीमारियाँ बहुत गंभीर प्रकार की होती हैं लेकिन अगर थोडा सा प्रेस किया जाए तो इनसे छुटकारा पाया जा सकता है|अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक— खुले में शौच से जल स्त्रोत प्रदूषित होते है और फिर उन जल स्त्रोतों का जल पीने के लायक नहीं रहता| इन स्त्रोतों के जल को पीने से गंभीर बीमारियां होने की भी संभावनाएं होती है। जल गुणवत्ता में एक खास पहलू है कि इसमें मल की मौजूदगी नहीं होनी चाहिए, इसलिए जब पेयजल की बैक्टीरियोलॉजिकल जांच की जाती है तो उसमें सबसे पहला उद्देश्य मल प्रदूषण की उपस्थिति की जांच करना होता है। एक खास तरह का बैक्टीरिया मानव मल की जल में उपस्थिति के संकेत देता है, जिसे ई-कोलाई कहते हैं। अगर जल में ई-कोलाई की मात्रा बहुत अधिक है तो यह जल मानव के पीने लायक नहीं है और अगर इस जल को पीया जाता है तो यह मानव के स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है| इसी कारण साफ़ एवं स्वच्छ पेयजल मानव के स्वास्थ्य एवं विकास के लिए बहुत आवश्यक है और जल स्त्रोतों को स्वच्छ रखने के लिए स्वच्छता एवं सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है|शौचालय बनाने से लाभ— देश की सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से ग्रामीण एवं शहरी भारत में प्रत्येक व्यक्ति की शौचालय तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु यह योजना लागू की है| अगर स्वच्छ भारत मिशन को ठीक तरीके से लागू किया जाता है यह भारत के लोगों के जीवन पर बहुत लाभदायक प्रभाव डालेगा

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