Hindi, asked by Rupali9065, 1 month ago

अनुच्छेद लेखन कीजिए - गुरु का जीवन में महत्व

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Answered by arpit6542
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प्रस्तावना

गुरु का महत्व उनके शिष्यों को भली भाँती पता होता है। अगर गुरु नहीं तो शिष्य भी नहीं, अर्थात गुरु के बिना शिष्य का कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्राचीन काल से गुरु और उनका आशीर्वाद, भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न अंग है।

प्राचीन समय में गुरु अपनी शिक्षा गुरुकुल में दिया करते थे। गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात शिष्य उनके पैर स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते थे। गुरु का स्थान माता – पिता से अधिक होता है। गुरु के बैगर शिष्यों का वजूद नहीं होता है।

जिन्दगी के सही मार्ग का दर्शन छात्रों को उनके गुरु जी करवाते है। जीवन में छात्र सही गलत का फर्क गुरूजी के शिक्षा के बिना नहीं कर सकते है। शिष्यों के जिन्दगी में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता है। गुरू जो भी फैसला लेते है उनके शिष्य उनका अनुकरण करते है। गुरु शिष्यों के मार्ग दर्शक है और शिष्यों की जिन्दगी में अहम भूमिका निभाते है।

गुरु की इज़्ज़त करना है शिष्यों का परम धर्म

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विद्यार्थियों का उन्नत और सकारात्मक जीवन

गुरु की शिक्षा के कारण ही विद्यार्थी अपने जीवन में उन्नति करते है। गुरु सभी शिष्यों को एक समान समझते है। गुरु हमेशा यही चाहते है कि उनके विद्यार्थी जिन्दगी में एक नया मुकाम हासिल करे।

गुरु यह भी कामना करते है कि उनके शिष्य ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में सफल रहे। गुरु की शिक्षा की वजह से विद्यार्थियों का जीवन सुव्यवस्थित और सकारात्मक बन जाता है।

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा एक पावन दिन होता है। यह एक ऐसा दिन होता है जहाँ शिष्य अपने गुरु का सम्मान करते है। गुरु पूर्णिमा के दिन घरो में पूजा भी होती है। सभी शिष्य इस विशेष दिन पर गुरुओं से आकर मिलते है और गुरुओं से आर्शीवाद लेते है। इस दिन लोग दान इत्यादि जैसे पुण्य कार्य भी करते है।

शिष्य योग्य व्यक्ति बनते है

गुरु की शिक्षा की छत्रछाया में विद्यार्थी एक योग्य और जिम्मेदार व्यक्ति बनता है। कुछ लोग चिकित्सक बनकर लोगो की सेवा करते है। कुछ लोग पुलिस कर्मी बनकर समाज में पनप रहे अपराधो को रोकते है।

कुछ लोग शिक्षक बनते है, कोई वकील बनकर कानूनी काम को संभालते है। गुरु की शिक्षा के बिना यह सब कभी संभव ना हो पाता। गुरु की शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति नौकरी करता है। उसे रोजगार करने का मौका मिलता है।

अच्छे और कपटी गुरु में अंतर

अच्छे गुरु बहुत सीधे और भोले होते है। वह अपने शिष्यों को अपने कला में उस्ताद बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते है। शिष्यों की हर एक कमी को अपनी शिक्षा से दूर कर देते है। वह अपने शिष्यों को उस क्षेत्र से संबंधित हर तरह का ज्ञान देते है।

कपटी गुरु के मन में कपट भरा रहता है। वह अपने शिष्यों के जीवन को संवार नहीं पाते है। कपटी गुरु अपने शिष्यों को सही और उचित ज्ञान नहीं देता है। इसलिए गुरु चुनते समय शिष्यों को सतर्क रहना चाहिए।

कभी भी गुरु को छल कपट का सहारा नहीं लेना चाहिए। शिष्य उन पर बहुत भरोसा करते है और उनका यह कर्त्तव्य है की वह उन्हें सही राह दिखाए। भारतीय संस्कृति में गुरु -शिष्य की परम्परा सदियों से चली आ रही है।

इस रिश्ते का सम्मान और प्रतिष्ठा दोनों को बनाये रखना ज़रूरी है। गुरु को अपनी उचित शिक्षा देनी चाहिए और शिष्यों को मन लगाकर समर्पित होकर शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। गुरु की शिक्षा में बड़ी ताकत होती है। शिष्य को उनके लक्ष्य तक पहुँचने में कोई भी बाधा रोक नहीं सकती है। अतः गुरु की शिक्षा में बहुत शक्ति होती है।

शिष्यों को अपने गुरु पर नाज़ होता है

शिष्य जिन्दगी में आगे बढ़ते है तो इसका पूरा श्रेय गुरु के शिक्षा और माता पिता को जाता है। जिन्दगी में व्यक्ति जो भी बनता है, वह अपनी गुरु की शिक्षा के कारण बनता है। जहाँ तक हो सके शिष्यों को गुरूजी की सेवा करनी चाहिए।

इतिहास में ऐसे कई घटनाएं है जहाँ शिष्यों ने अपने गुरु के लिए बलिदान दिया था। महाभारत में एकलव्य ने भी गुरु द्रोणाचार्य को ऊँगली काटकर अपनी गुरु दक्षिणा दी थी। इसी से पता चलता है कि शिष्यों के लिए उनके गुरु सर्वोपरि है।

शिष्य को भी अपने गुरु के साथ कभी बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए, इससे कला और शिक्षा का अपमान होता है। जो लोग ऐसा दुर्व्यवहार करते है, उन्हें समाज में कोई सम्मान नहीं मिलता है। गुरु अपने शिष्यों को रिश्ता निभाना सीखाते है। शिष्यों को अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए और आजीवन गुरु का सम्मान करते रहना चाहिए।

एकलव्य की कहानी

एकलव्य छिपकर गुरु द्रोणाचार्य से धनुष विद्या सीखा करते थे। एकलव्य एक बेहतरीन धनुर्धर थे। मगर द्रोणाचार्य पहले से ही अर्जुन को संसार का सबसे अच्छा धनुर्धर बनाने की कसम खा चुके थे। वह जानते थे कि एकलव्य, अर्जुन से धनुष चलाने में बेहतर है। इसलिए उन्होंने एकलव्य को बुलाया और गुरु दक्षिणा के रूप में उसका अंगूठा माँगा।

एकलव्य ने अंगूठा काटकर अपने गुरु जी को दिया। इससे यह साबित हुआ कि एकलव्य ना केवल बेहतरीन धनुर्धर थे, बल्कि एक अच्छे शिष्य भी थे। एकलव्य के लिए गुरु से बढ़कर शिक्षा नहीं थी। उसने यह शिक्षा अपने गुरु के लिए सीखी थी। उसने गुरु के महत्व को समझते हुए अपना अंगूठा गुरु को दे दिया।

निष्कर्ष

शिष्यों को हमेशा जीवन पर्यन्त अपने गुरु का सम्मान करना चाहिए। गुरु से बढ़कर कोई नहीं होता है। गुरु की शिक्षा की वजह से हम अपने जीवन में एक अच्छी जिन्दगी जी सकते है। पैसा कमा सकते है और जीवन के सारे सुखो का उपभोग कर सकते है। इसलिए लोगो को गुरु जी के महत्व को समझने की आवशयकता है।

Answered by amadhav23
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गुरु के बिना ज़िन्दगी संकटपूर्ण
गुरु के बैगर जिन्दगी में अन्धकार छा जाता है। गुरु रूपी प्रकाश सभी के ज़िन्दगी में अनिवार्य होता है। गुरु रूपी प्रकाश के ज़रिये व्यक्ति अपने ज़रूरी चीज़ो और रास्तो को ढूंढ लेता है। जिन्दगी में अगर शिष्य को गुरु नहीं मिला तो शिष्य का जीवन दुखो से भर जाता है।
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