Hindi, asked by aleenalipson, 6 months ago

अनुच्छेद लेखन
मानव धर्म सर्वोणार
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Answers

Answered by nanditapsingh77
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‘नहिं मानवात् श्रेष्ठतरं हि किंचित’- सृष्टि में मानव से अधिक श्रेष्ठ और कोई नहीं। मनुष्य जीवन सृष्टि की सर्वोपरि कलाकृति है। ऐसी सर्वागपूर्ण रचना और किसी प्राणी की नहीं है। यह उपहार असाधारण है। जब एक बार कोई मनुष्य योनि में आ जाता है तो मानवता उससे स्वयं जुड़ जाती है। इस मानवता का सर्वदा ध्यान रखना, उससे विलग न होना ही मानव जीवन की सार्थकता है। मानव की प्रतिष्ठा में ही धर्म की प्रतिष्ठा है। मानव को सन्तप्त, कुण्ठित और प्रताड़ित करके कोई भी धर्म या सम्प्रदाय सम्मान्य नहीं हो सकता। इसीलिए स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- ‘सच्ची ईशोपासना यह है कि हम अपने मानव-बन्धुओं की सेवा में अपने आप को लगा दें। जब पड़ोसी भूखा मरता हो, तब मन्दिर में भोग चढ़ाना पुण्य नहीं पाप है। जब मनुष्य दुर्बल और क्षीण हो, तब हवन में घृत जलाना अमानुषिक कर्म है। जो जाति रोटी को तरस रही है, उसके हाथ में दर्शन और धर्म ग्रन्थ रखना उसका मजाक उड़ाना है।’ मनुष्य जाति का विस्तार किसी विशेष परिधि तक सीमित न होकर विश्वव्यापी है। अत: इसका विकास चाहे किसी भूखण्ड पर ही, किन्तु विश्वभर की मानव जाति एक ही है। समानता की इसी भावना को आत्मसात करते हुए हमारे मनीषियों न कहा- ‘ईशावास्यमिदं र्सव यत्किंचित जगत्यांजगत्’ अर्थात् यह सब जा कुछ पृथ्वी पर चराचर वस्तु है, ईश्वर से आच्छादित है। मानव धर्म वह व्यवहार है, जो मानव जगत् में परस्पर प्रेम, सहानुभूति, एक दूसरे का सम्मान करना आदि सिखा कर हमें उच्च आदर्शो की ओर ले जाता है। धर्म वह मानवीय आचरण है, जो अलौकिक कल्पना पर आधारित है और जिनका आचरण श्रेयस्कर माना जाता है। संसार के लगभग सभी धर्मो की मान्यता है कि विश्व एक नैतिक राज्य है और धर्म उस नैतिक राज्य का कानून है। दूसरों की भावनाओं को न समझना, उनके साथ अन्याय करना और अपनी जिद पर अड़े रहना धर्म नहीं है। एकता, औदार्य, सौमनस्य और सब का आदर ही धर्म का मार्ग है और सच्ची मानवता का परिचय है।

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