अनुच्छेद लेखन : शिक्षा प्रणाली में बदलाव (120 शब्दों में )
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किसी भी राष्ट्र अथवा समाज में शिक्षा सामाजिक नियंत्रण, व्यक्तित्व निर्माण तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति का मापदंड होती है । भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है जिसे सन् 1835 ई॰ में लागू किया गया ।
जिस तीव्र गति से भारत के सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक परिदृश्य में बदलाव आ रहा है उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि हम देश की शिक्षा प्रणाली की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, चुनौतियों तथा संकट पर गहन अवलोकन करें ।
सन् 1835 ई॰ में जब वर्तमान शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई थी तब लार्ड मैकाले ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य भारत में प्रशासन के लिए बिचौलियों की भूमिका निभाने तथा सरकारी कार्य के लिए भारत के विशिष्ट लोगों को तैयार करना है ।
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Explanation:
आज की शिक्षा हमें साक्षर बनाती है ना कि शिक्षित । हमारी वर्तमान शिक्षण प्रणाली हमें केवल एक क्लर्क बनाती हैं ना कि विषय विशेषज्ञ । अंग्रेजों को नीति निर्धारण करने वाले व्यक्तियों की जरूरत नहीं थी, इसलिये उन्होने इस तरह की शिक्षा प्रणाली विकसित की, जिससे उन्हें देश को गुलाम बनाए रखने में आसानी हो ।
आज हम एक आजाद व विकासषील देश है । हमें विकसित राष्ट्र बनने के लिये हमारें बच्चों को सही दिशा में प्रशिक्षण की आवश्यकता हैं । हमें अपनें बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी । लेकिन राजनीतिक व बुद्धिजीवियों की इच्छाशक्ति की कमी के कारण इस शिक्षा प्रणाली में जरूरत के मुताबिक परिवर्तन नहीं हो पा रहें हैं ।
आज की शिक्षा हमें केवल एक किताबी ज्ञान देती है वह भी कई सदी पुराना । जो कि आज यथार्थवादी परिस्थितियों में अधूरी शिक्षा है । आज ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिससे बच्चें का सम्पूर्ण विकास हो । जो बच्चों में मैं की भावना से निकालकर हम की भावना पैदा करें । वर्तमान में पढाई को रोजगार से जोडना बहुत ही आवश्यक हो गया है, ताकि बच्चें आर्थिक रूप से मजबूत होकर, अपने परिवार, सम्पूर्ण मानवीय समाज व देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें ।
आज की शिक्षा व्यवस्था केवल मोटी कमाई का एक साधन मात्र रह गई हैं । जबकि शिक्षा केवल लाभ कमाने के उदेश्यय से नहीं होना चाहिए । आज अच्छी शिक्षा केवल सीमित वर्ग के लिये रह गई है । जबकि शिक्षा की पहुंच हर व्यक्ति तक होना चाहिए । जो कि वर्तमान हालातों को देखते हुए ना तो आज और ना आने वाले कल में ऐसा संभव प्रतीत होता है ।
बच्चों को शिक्षा बोझ ना लगे । बचपन की स्वभाविकता व कोमलता बनाएं रखते हुए उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाना होगा, तभी उनमें शिक्षा के प्रति समर्पण भाव व रूचि जाग्रत होगी । रूचि जागने पर बच्चों को रटनें की जरूरत नहीं पडेगी, बल्कि वह विषय को समझने की कोशिश करेगें ।
शिक्षण पद्धति में संभवतः बदलाव:-
विघार्थी के रूचि के अनुसार विषय
बच्चों को प्राथमिक शिक्षा खत्म होने के बाद उसके रूचि के अनुसार विषय चुनने की छुट दी जाए । कक्षा पांचवी से उसे उसके विषय से संबंधित आवश्यक जीवंत व प्रायोगिक शिक्षा प्रदान की जाएं । ताकि वह अपनी रूचि के अनुसार अपना कॅरियर बना सकें, तभी सही मायने में शिक्षा का उपयोग हो पाएंगा ।
समाज अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण
शिक्षा केवल पुस्तक ज्ञान से ही संबंधित न हो बल्कि वह विषय भी उनमें शामिल किए जाएं जिससे बच्चों में सामाजिक सोच का भी विकास हो ।
लोचदार पाठ्यक्रम
पाठ्यक्रम को इस तरह परिवर्तनशील बनाया जाए ताकि वह समाज की जरूरत के हिसाब से उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें ।
पाठ्यक्रम में जीविकोपार्जन के उद्देष्य
आज के दौर में शिक्षा में मुख्य कमी ही एक ऐसे विषय की महसुस की जा रही है, जो कि बच्चें को अपनी शिक्षा पुरी करने के बाद, उसे अपना जीवन चलाने में आर्थिक मदद कर सकें । अतः जीवंत व प्रायोगिक प्रशिक्षण एवं कम समयावधि के बाजारोन्मुखी पाठ्यक्रम उन्हें पढायें । जिससे वह अपनी जीविका चला सकें व व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकें ।
छात्रों को सामाजिक जीवन का अध्ययन
बच्चों को सामाजिक जीवन के अध्ययन के लिए समय-समय पर समाज में फैली समस्याओं से भी अवगत कराया जाएं, ताकि वह भी समाज की आवश्यकताओं को समझ सकें व उनका हल निकाल सकें । क्योंकि आज की शिक्षा प्रणाली प्रायोगिक नहीं है । जब बच्चें अपनी शिक्षा पूर्ण कर बाहर आते हैं, तो उसे समाज का दुसरा ही पहलू देखने को मिलता है, जो कि उसे ना तो पढाया गया है और ना ही वो उसे समझ पाता है ।
हमें शिक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव की सख्त-से-सख्त जरूरत महसूस की जा रही हैं । वो भी ऐसी शिक्षा पद्धति जो बच्चों में बचपन से ही दी जाएं । बच्चों को उनके रूचि के विषय पढायें जाएं तथा उनमें मानवीय समाज व देश के महत्व को समझाया जाएं ।