अनुच्छेद लेखन :उत्साही जीवन
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मनुष्य को अपना सुखी जीवन जीने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। जीवन में 'रात व दिन' की तरह आशा व निराशा के क्षण आते जाते रहते हैं। आशा जहां जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है वहीं निराशा मनुष्य को पतन की तरफ ले जाती है। निराश मानव जीवन में उदासीन और विरक्त होने लगता है। उसे अपने चारों तरफ अंधकार नजर आता है। निराशा का संबंध एकतरफा सोच भी है। साथ ही मनुष्य के दृष्टिकोण पर भी आधारित है, मनुष्य जिस तरह की भावनाएं रखता है वैसी ही प्रेरणाएं मिलती हैं। जो लोग स्वयं के लाभ के लिए जीवन भर व्यस्त रहते हैं उन्हें जीवन में निराशा, अवसाद, असंतोष ही परिणाम में मिलता है। यह एक बड़ा सत्य है कि जो लोग जीवन में परमार्थ सेवा एवं जनकल्याण का कार्य करते हैं उनमें आशा उत्साह होता है, जिसके आधार पर वह कठिन से कठिन कार्यो में सफलता प्राप्त करता है। मनुष्य दूसरे की सेवा करके निराशा से बचता रहता है। परोपकार करने वाले लोगों पर कभी भी निराशा अपना दबाव नहीं बना पाती। निराशा तो एक ऐसी व्यथा है जो स्वयं को तो परेशान रखती है साथ दूसरों का भी कल्याण नहीं कर पाती। जहां आशा है उत्साह है वहीं सफलता है। मनुष्य विजयश्री तो पाता है, किंतु जीवन में आशा उत्साह से कार्य पूरे होते हैं।
मनुष्य को अपना सुखी जीवन जीने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। जीवन में 'रात व दिन' की तरह आशा व निराशा के क्षण आते जाते रहते हैं। आशा जहां जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है वहीं निराशा मनुष्य को पतन की तरफ ले जाती है। निराश मानव जीवन में उदासीन और विरक्त होने लगता है। उसे अपने चारों तरफ अंधकार नजर आता है। निराशा का संबंध एकतरफा सोच भी है। साथ ही मनुष्य के दृष्टिकोण पर भी आधारित है, मनुष्य जिस तरह की भावनाएं रखता है वैसी ही प्रेरणाएं मिलती हैं। जो लोग स्वयं के लाभ के लिए जीवन भर व्यस्त रहते हैं उन्हें जीवन में निराशा, अवसाद, असंतोष ही परिणाम में मिलता है। यह एक बड़ा सत्य है कि जो लोग जीवन में परमार्थ सेवा एवं जनकल्याण का कार्य करते हैं उनमें आशा उत्साह होता है, जिसके आधार पर वह कठिन से कठिन कार्यो में सफलता प्राप्त करता है। मनुष्य दूसरे की सेवा करके निराशा से बचता रहता है। परोपकार करने वाले लोगों पर कभी भी निराशा अपना दबाव नहीं बना पाती। निराशा तो एक ऐसी व्यथा है जो स्वयं को तो परेशान रखती है साथ दूसरों का भी कल्याण नहीं कर पाती। जहां आशा है उत्साह है वहीं सफलता है। मनुष्य विजयश्री तो पाता है, किंतु जीवन में आशा उत्साह से कार्य पूरे होते हैं।कार्य कैसा भी हो, यदि मनुष्य आशा और उत्साह के साथ करेगा तो पूरा होगा और यदि आशा व उत्साह की कमी है तो असफलता ही हाथ लगेगी। आशा को लेकर जीवन जीने में सफलता व आनंद, दोनों प्राप्त होते हैं। निराश मनुष्य अपने कर्तव्यों को हीनभावना से देखता है और इस तरह से उसका जीवन दुखी रहता है। उसे सफलता की मंजिल नहीं मिलती। जितने भी महापुरुष, वैज्ञानिक हुए हैं वे सब आशा व उत्साह से भरे थे। जो आशावादी उत्साही हैं उन्हें उनके जीवन में कभी भी दुख नहीं मिलता। जीवन संघर्षो से लड़कर जीने में ही मजा है और उसी में आनंद है, क्योंकि संघर्ष मनुष्य आशा को लेकर करता रहता है। आशा ही विजय, सफलता, सुख व आनंद सब कुछ दिलाती है।
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