Hindi, asked by jass12310, 11 months ago

अनुच्छेद महात्मा गांधी​

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Answered by aryaAM82
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Answer:

गांधी जी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । वे सच्चाई का स्वयं पालन करते थे और सभी को सच्ची राह पर चलने की सलाह देते थे । वे बड़ा सादा जीवन बिताते थे । वे निर्धन, बेसहारों और बीमारों का बड़ा ख्याल रखते थे । उनका व्यक्तित्व अनोखा था । उन्होंने सदैव सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया ।

उन्होंने अहिंसा के माध्यम से भारत को आजादी दिलाकर दुनिया को चकित कर दिया । वे एक महान् संत थे । वे शान्ति के पुजारी थे । उन्होंने अछूतों और पिछड़ी जातियों के लोगों को समाज में सम्मान दिलाने के लिए बहुत कार्य किया ।

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Answered by pankajtiwaristudent
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Answer:

Explanation:देशप्रेम, त्याग, तपस्या, सत्य और अहिंसा के कारण अपनी पहचान बनाने वाले मोहन दास करमचंद गांधी को देश राष्ट्रपिता के रूप में अंगीकार कर चुका है । बिना अस्त्र-शस्त्र से लड़ने वाला यह योद्धा देश को सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन जैसे प्रभावकारी तरीकों से अंग्रेजों के कब्जे से छुड़ाने में सफलता अर्जित की ।

ऐसे महान विभूति का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को काठियावाड़ के पोरबन्दर नामक स्थान में हुआ था । पिता करमचन्द गांधी पोरबन्दर रियासत के दीवान थे । 13 वर्ष की आयु में मोहनदास करमचंद गांधी का विवाह गोकुलजी माकनजी की पुत्री कस्तूरबाबाई से हुआ । माता-पिता की भक्ति-भावना तथा नौकरानी की सीख का गांधी जी पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह जीवनभर राम-नाम पर अटूट श्रद्धा रखते रहे ।

इतना ही नहीं उनकी अंतिम सांस भी ‘हे राम’ कहते हुए ही निकली । देशभक्त गांधी जी ने इंग्लैण्ड से बैरिस्टरी की पढ़ाई की तथा दक्षिण अफ्रीका में वकालत भी की लेकिन आजादी की पुकार ने सब कुछ भुला कर उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने पर विवश कर दिया ।

बालगंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, फीरोजशाह मेहता जैसे नेताओं के साथ मिलकर स्वतंत्रता का आहवान किया । जगह-जगह भाषण दिए जिसने लोगों में एकता और भाईचारा का संचार किया । दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर किए गए अत्याचार का विरोध करते हुए भोले-भाले भारतीयों को सावधान किया कि वे किसी सब्ज बाग में पड़कर दक्षिण अफ्रीका न जाएं ।

गांधी जी ने आंदोलन की शुरूआत दक्षिण अफ्रीका से की । दक्षिण अफ्रीका में रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी से उन्हें धक्का देना और उनका सामान फेंक देना एक चर्चित घटना है । भारत लौटने पर उन्होंने स्वदेशी आंदोलन चलाया ।

कुटीर उद्योग धंधों का उत्थान करने के लिए वह हाथ का कता-बुना कपड़ा पहनने के लिए लोगों को प्रेरित करते तथा खुद भी ऐसा करके एक उदाहरण प्रस्तुत करते । देश की आजादी के लिए संघर्ष के साथ-साथ समाज-सेवा में भी वह पीछे नहीं रहे । अछूतोद्धार, महाजनों के चंगुल से गरीबों की रक्षा, पुलिस तथा जमींदारों कीं बेगार से किसानों, मजदूरों को बचाना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गए ।

सन् 1920 में शुरू किए गए असहयोग आंदोलन जालियांवाला बाग में जनरल डायर और उसके सिपाहियों द्वारा निदोर्षों पर की गई गोली-बारी की प्रतिक्रिया थी । जहाँ लड़कों ने सरकारी स्कूल जाना छोड़ दिया वहीं वकीलों ने वकालत छोड़ दी, विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई और लोगों ने खद्‌दर पहनना शुरू किया ।

गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 को डांडी के लिए कूच किया और नमक बनाकर सरकारी कानून का उल्लंघन किया । जेल भरो अभियान व असहयोग आंदोलन से त्रस्त अंग्रेजी हुकूमत ने 4 मार्च, 1931 को गांधी-इर्विन पैक्ट किया जिसमें भारतीयों को कई सुविधाएं देने की बात कही लेकिन यह समझौता ज्यादा दिनों तक कायम न रह सका ।

अंग्रेजी सरकार ने इसका उल्लंघन करना शुरू कर दिया । पुन: 26 अगस्त, 1931 में गोल मेज सम्मेलन का आयोजन लंदन में किया गया जिसमें गांधी जी को आमंत्रित किया गया । कोई सर्वमान्य परिणाम न निकलने की वजह से भारतवासियों ने पुन: आंदोलन की राह पकड़ ली ।

गांधी जी के सभापतित्व में इंदौर में सन् 1935 में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ का आयोजन, 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन आदि के कारण अंतवोगत्वा सन् 1947 की अगस्त की 15 तारीख को भारत स्वाधीन

हुआ । स्वतंत्रता आंदोलन के नायक गांधी जब दिल्ली के बिड़ला मंदिर में सायंकालीन प्रार्थना में जा रहे थे तभी नाथू राम गॉडसे ने गोली चला दी और एक महान युग ‘गांधी युग’ के प्रणेता का अंत हो गया ।

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