अनुच्छेद ऑन एक नदी की व्यथा
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दिल्ली और यमुना का नाता बहुत पुराना है। पौराणिक नदी यमुना ने जिस दिल्ली को जन्म दिया, उसके ही बाशिंदों ने यमुना को बदहाली की कगार पर पहुँचा दिया है। पूजा मेहरोत्रा की यह पुस्तक यमुना के दर्द को शिद्दत से बयाँ करती है…
जिस नदी के किनारे श्रीकृष्ण ने बाल गोपालों के साथ बाललीला की, गोपियों के संग रासलीला की, जिस नदी के प्रति लोगों के मन में श्रद्धा है, वही पौराणिक नदी यमुना आज सिसक रही है। इसके प्रदूषण का स्तर खतरनाक तरीके से बढ़ गया है। जिस नदी में कालिया नाग के होने की मिथकीय कथा है, उसमें मछलियों समेत तमाम जल-जीवों का अस्तित्व संकट में है। पौराणिक मान्यताओं में जिस नदी में आचमन मात्र कर लेने से सारे पाप धुल जाने का उल्लेख है, अब आलम यह है कि उसी नदी की गन्दगी को धोने की आवश्यकता है। नाले में तब्दील होती जा रही यमुना के दर्द को शिद्दत से महसूस किया है पत्रकार पूजा मेहरोत्रा ने। उन्होंने पर्याप्त शोध करके यमुना की गाथा को प्रस्तुत किया है पुस्तक ‘मैं यमुना हूँ मैं जीना चाहती हूँ’ में। श्रद्धालुओं की अन्ध-आस्था को भी पूजा ने निशाना बनाया है। उन्होंने कहा है कि यमुना से गुजरते हुए हम उसकी तरफ सिक्के उछाल देते हैं, उसमें फूल और अन्य कचरा डाल देते हैं, जबकि यमुना को पैसों या अन्ध-श्रद्धा की जरूरत नहीं, उसे स्वच्छ रखने की इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
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