अनुच्छेद on मुडो प्रकृति की ओर
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Explanation:
‘प्रकृति’ को अगर एक जुमले में परिभाषित करना हो तो क्या होगा वो एक जुमला. . .मैं अगर अपने लफ्जों में कहुँ तो ‘ प्रकृति. . . एक प्रेरणा ‘… शायद ये सबके अपने -अपने तजुर्बे पर निर्भर करता है कि आप क्या सोचते हैं, पर मेरा तजुर्बा तो यही कहता हैं कि प्रकृति सदियों से ही एक प्रेरणा साबित हुई है मनुष्य के आध्यात्मिक, दुनियावी जीवन के लिए। हमारी विचारधारा, हमारी जीवन-शैली में बदलाव हो या एक कदम बेहतरता की ओर, प्रकृति का हमेशा से ही हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण किरदार रहा हैं….जहाँ एक तरफ प्रकृति ने महान लेखकों, कवियों, चित्रकारों, संगीतकारों को प्रेरित किया हैं, वहीं वैज्ञानिकों के लिए भी प्रेरणा साबित हुई है, प्रकृति ने हर क्षेत्र में मनुष्य को नई ऊंचाइयों को छुने में मदद की है…. पर इस कहानी का एक पहलु और भी है कि जैसे -जैसे हम विकसित होते जा रहे हैं, सुख-सुविधाओं की तरफ अग्रसर होते जा रहे हैं, हम प्रकृति से भी और खुद से भी दूर होते जा रहे हैं। जहाँ मनुष्य ने आधुनिकता और टेक्नोलॉजी की ऊंचाइयों को छुआ है वहीं दुसरी ओर प्रकृति को नज़र अंदाज़ कर दिया है। शायद आज फिर हमें ज़रूरत है प्रकृति की प्रेरणाओं और प्रकृति के मूल्यों को फिर से समझने की।
प्रकृति हमेशा से ही इंसान की दोस्त रही है, हर कदम पर हमने प्रकृति से कुछ नया ही सीखा है, प्रकृति अलग-अलग रूपों में हमें ज़िन्दगी जीने के सही तरीको से वाखिफ़ कराती आई है जैसे;
”ज़िन्दगी मतलब आगे बढ़ना”, बिल्कुल वैसे ही जैसे नदी अपने रास्ते में आने वाली हर बाधा को पार करके आगे बढ़ती रहती है वैसे ही हमें भी किसी मुश्किल से हार कर डर कर रुकना नहीं चाहिए, बल्कि अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए।”