अनुच्छेद: राष्ट्र सेवा और विद्यार्थी
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Nation and Students in Hindi Language!
माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है । वास्तव में यह कथन सत्य है । माता ने तो केवल हमें जन्म दिया, परन्तु मातृभूमि ने तो हमें प्यार भरे अंक में लेकर हमारा लालन-पालन किया, उसकी रजन में लेटकर हम बड़े हुए हैं ।
हमारे जीवन के लिये उसने अन्न दिया, वस्त्र दिया । उसने एक से एक श्रेष्ठ द्रव्यों के द्वारा हमारा पोषण किया । मातृभूमि की अनन्त कृपा से हमने संसार के समस्त सुखों का उपभोग किया । उस अनन्त कृपामयी जन्मभूमि के प्रति हमारा अनन्त कर्तव्य है, चाहे हम विद्यार्थी हों, गृहस्थी हों अथवा संन्यासी हों ।
अत: राष्ट्र का और विद्यार्थी का वही सम्बन्ध है, जो माता और पुत्र का होता है । उनकी मान-मर्यादा की रक्षा करने का सब पर समान उत्तरदायित्व है । विद्यार्थी यह कहकर कि हम तो विद्यार्थी हैं, इससे बच नहीं सकते । आज के विद्यार्थी कल के नागरिक हैं । उन्हें प्रारम्भ से ही अपने राष्ट्र और अपने देश के प्रति कर्तव्यों को जानना चाहिए ।
प्रारम्भ से ही उन्हें अपना दृष्टिकोण विस्तृत और कार्यक्षेत्र विशाल रखना चाहिए । विद्यार्थी का समस्त जीवन केवल अपना ही नहीं, वरन् समाज और राष्ट्र का भी है । विद्यार्थी से राष्ट्र को बहुत कुछ आशा रहती है । देश के सभी व्यक्ति अपने-अपने कार्य व्यापारों से अपने व्यक्तिगत जीवन को उन्नत और समृद्धिशाली बनाने का प्रयत्न करते हैं । वे सभी प्रयत्न अप्रत्यक्ष रूप से देशहित के लिए ही होते हैं ।
विद्यार्थियों का मुख्य ध्येय विद्या प्राप्त करना है । जहां वह विद्या उनके जीवन को समुन्नत और सशक्त बनाती है, वहां देश को भी प्रगति के पथ पर अग्रसर करती है । देश का कल्याण देशवासियों पर ही निर्भर होता है, चाहे वह किसी श्रेणी का हो या किसी योग्यता का हो । इसके लिये यह कोई निश्चित सीमा नहीं कि देश सेवा का अधिकार अमुक व्यक्ति को है, अमुक को नहीं । हम सभी देश के अंग हैं ।
हमारा अपना-अपना पृथक्-पृथक् कार्य क्षेत्र है । कोई व्यापार द्वारा धनोपार्जन करके देश को धन-धान्य पूर्ण और समृद्धिशाली बनाता है, कोई शिक्षा द्वारा, कोई अपने राजनीतिक कार्यकलापों द्वार, तो कोई समाज सुधार के द्वारा ।
उसी प्रकार, विद्याथी भी शिक्षा के द्वारा ज्ञानार्जन करके देश सेवा का पुनीत कार्य करते हैं । निकट भविष्य में देश का भार इन्हीं विद्यार्थियों के बलिष्ठ कन्धों पर आयेगा । ये देश के भावी कर्णधार हैं । विद्यार्थियों में विशुद्ध राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करके उन्हें देश सेवा के पवित्र कार्य में लगाया जा सकता है ।
भारतवर्ष को अपने विद्यार्थी समुदाय पर गर्व है । इस विषय में भी विद्वानों के दो मत हैं । एक कहता है कि विद्यार्थी जीवन भावी मनुष्य का निर्माण काल है । जिस प्रकार नींव निर्बल होने पर भवन के गिर जाने का भय रहता है, उसी प्रकार राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने, सभा सोसाइटियों में आने आदि से चित्त की स्थिरता नष्ट हो जाती है, अत: विद्यार्थी जीवन में एकाग्रचित्त होकर पूर्ण मनोयोग से विद्याध्ययन ही करना चाहिये ।
दूसरों का विचार है कि भावी जीवन के विशाल कर्तव्य क्षेत्र के लिये मनुष्य विद्यार्थी जीवन में ही आवश्यक शक्ति एकत्रित करता है । उसकी बुद्धि और विद्या की परीक्षा इसी में है कि वह दूसरों की सेवा, सहायता और उन्नति के लिये अपने को वहाँ तैयार कर पाया है या नहीं । इन दोनों विवादों से इतना अवश्य स्पष्ट है कि विद्यार्थी का भी राष्ट्र से उतना सम्बन्ध है जितना देश के अन्य वर्गों का ।
एक समय था जबकि देश की प्रत्येक प्रगति, चाहे वह धार्मिक हो या आर्थिक, चाहे वह सामाजिक हो या वैदेशिक, सभी राजनीति के अन्तर्गत आती थी । परन्तु आज के युग में राजनीति शब्द का अर्थ इतना संकुचित हो गया है कि अब इसका अर्थ केवल वर्तमान सरकार का विरोध करना ही समझा जाता है ।