अनुच्छेद - सच्ची मित्रता
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सच्चे मित्र पर अनुच्छेद लेखन
निज दुःख गिरिसम रज करि जाना, मित्रक दुःख रज मेरु समाना। ... वह मित्र के बहुत छोटे से छोटे कष्ट को भी मेरु पर्वत के सामान भारी मान कार उसकी सहायता करता है। मित्र सुख-दुःख का साथी है। वह केवल दुःख में ही नहीं सुख में भी खुशियां बांटता है
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okkkkkkkkkkk okkkkkkkkkkk
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