अनुच्छेद सच्चे दोस्त
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एक सच्चा दोस्त गुणों से भरा हुआ पाया जाता है और अपने दोस्त को या तो उसे या दुनिया में सबसे भाग्यशाली व्यक्ति बनाता है। सच्ची मित्रता ईश्वर से सबसे सुंदर आशीर्वाद है जिसे संसार की किसी भी अमूल्य वस्तु की तरह माना जाना और पोषित करना आवश्यक है। एक अच्छा दोस्त किसी के लिए बिना किसी अपेक्षा और कोई मांग के मुश्किल है। एक सच्ची दोस्ती में बहुत सारी भावनाओं के साथ विभिन्न रंगों की गुणवत्ता होती है, कभी-कभी वे खुश हो जाते हैं, कभी-कभी वे भावुक हो जाते हैं और कभी-कभी वे एक-दूसरे से लड़ते हैं लेकिन यह उनकी सच्ची दोस्ती को प्रभावित नहीं करता है।
बचपन के दोस्तों को हमेशा एक व्यक्ति के पूरे जीवन के लिए याद किया जाता है। वे वास्तव में सच्ची मित्रता को निरूपित करते हैं। एक दोस्त के साथ, जीवन इसके प्रत्येक चरण पर आसान हो जाता है और हमेशा बेहतर तरीके से परिणाम देता है। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि निश्चित रूप से दोस्तों के बीच कुछ मुद्दे या झगड़े होंगे, लेकिन यह उनके रिश्ते को अधिक मजबूत बनाता है। एक अच्छा दोस्त होना हमेशा एक असली मोती पाने जैसा होता है।
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भूमिका
– मनुष्य के जीवन में दुख-सुख आते-जाते रहते हैं। सुख के पलों को वह बड़ी आसानी से बिता लेता है, पर दुख के पल बिताना कठिन हो जाता है। ऐसे समय में उसे ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत महसूस होती है जो दुख में उसका साथ दे, उसका दुख बाँट ले। दुख की बेला में साथ निभाने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है।
मित्र एक अनमोल धन
– एक सच्चा मित्र ही व्यक्ति के दुख में काम आता है, अतः वह अनमोल धन से भी बढ़कर होता है। मित्र रूपी यह धन किसी को मिलना कठिन होता है। जो लोग भाग्यशाली होते हैं, उन्हें ही सच्चे मित्र मिल पाते हैं। सच्चा मित्र उस औषधि के समान होता है जो उसे पीड़ा से बचाता है। इतना ही नहीं वह अपने मित्र को कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग की ओर ले जाता है और उसे पथभ्रष्ट होने से बचाता है।
सच्चे मित्र की पहचान
– सच्चे मित्र की पहचान करना बड़ा कठिन काम होता है। किसी व्यक्ति में कुछ गुणों को देखकर लोग उसे मित्र बना बैठते हैं। ऐसे मित्र बुरा समय आने पर उसी तरह साथ छोड़ जाते हैं, जैसे-जाल पर पानी मछलियों का साथ छोड देता है। ऐसे में हमें जल जैसे स्वभाव वाले व्यक्ति को मित्र बनाने की भूल नहीं करनी चाहिए। कवि रहीम ने ठीक ही कहा है –
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छोड़त छोह।
सच्ची मित्रता के उदाहरण
– इतिहास में अनेक उदहारण हैं, जब लोगों ने अपने मित्र के साथ सच्ची मित्रता का निर्वाह किया। उनकी मित्रता दूसरों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बन गई। इस क्रम में कृष्ण और सुदामा की मित्रता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। श्रीकृष्ण और सुदामा की स्थिति में ज़मीन आसमान का अंतर था। कहाँ कृष्ण द्वारिका के राजा और कहाँ सुदामा भीख माँगकर जीवन यापन करने वाले ब्राह्मण। कृष्ण ने ‘कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली’ की लोकोक्ति झुठलाकर सुदामा को इतना कुछ दिया कि उन्हें अपने समान बना दिया और सुदामा को इसका पता भी न लगने दिया।
दूसरा उदाहरण श्रीराम और सुग्रीव का है। श्रीराम ने सुग्रीव की मदद की और सुग्रीव ने अंत समय तक श्रीराम की सहायता की, जबकि राम अयोध्या के राजा और सुग्रीव मामूली से वानर राज।
इसी तरह कर्ण और दुर्योधन की मित्रता का उदाहरण उल्लेखनीय है। कर्ण जानता था कि दुर्योधन का साथ देने के कारण उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा, परंतु अपनी जान की परवाह न करके उसने दुर्योधन का साथ निभाते हुए प्राण दे दिया।
उपसंहार –
जीवन में किसी का मित्र बनना जितना कठिन है, उससे भी अधिक कठिन है मित्रता का निर्वाह करना। हमें मित्र बनकर सच्ची मित्रता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। हमें मित्र के सुख में सुख और उसके दुख को अपना दुख समझना चाहिए। कहा भी गया है