अनुचछेद लेखन जब मैने साइकिल चलाना सिखा
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मुझे बचपन में साइकिल चलाने का बेहद शौक था, जब मै नौ साल का था तो मेरी जिद्द पर पिताजी ने मुझे हीरो की छोटी वाली साइकिल लाकर दी थी. लगभग एक महीने तक अपने दोस्तों के साथ घर के पार्क और गली में इसके अभ्यास के बाद मैंने इसे चलाना सीखा था. गुलाबी रंग की वो साइकिल आज भी मेरे घर के कबाड़ में पड़ी है. जब भी मैं सड़क पर गुजरता हूँ और कोई साइकिल की घंटी सुनाई देती है तो बचपन के दिनों की यादे पुनः ताजा हो उठती हैं.
मेरे घर से तकरीबन एक किलोमीटर दूर मेरा विद्यालय था. मैं अपने छोटे भाई को बस्ता व टिफिन देकर पीछे की सीट पर बिठाकर साथ स्कूल ले जाता था और शाम को दोनों साथ ही लौट आते थे. एक बार छोटे भाई द्वारा साइकिल चलाने की जिद्द पर हम गिर पड़े थे. सायंकाल को घर के बाहर साइकिल की सवारी का खूब मजा लिया करते थे. आज भी मुझे वो दिन अच्छी तरह याद है जब मैंने पैंडल पर पहली बार पैर रखकर इसे चलाने की चेष्टा की थी. सैकड़ों असफल प्रयत्न के बाद अन्तः मैं सीख पाया था. उस दिन की सीख आज भी मेरे जीवन में काम आती हैं. कोई भी काम यदि हम दिल लगाकर करे तो एक दिन हमें कामयाबी जरुर प्राप्त होगी.