Economy, asked by kunal102938, 8 months ago

अनैछिक बेरोजगारी को दूर करने के लिए कौन से उपाय सुझाएंगे​

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Answered by aadil1290
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Answer:

यह सही है कि बेरोजगारी देश में बहुत बढ गई है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि रोजगार की कोई कमी भी नहीं है। आपकी चाहे जो योग्यता हो, रोजगार करने और उसमें सफल होने के लिए केवल दो चीजें चाहिए - लीक से हटकर थोडा अलग नजरिया और हौसला। आइए चलते हैं विकल्पों के एक सफर पर।

जहां तक समस्याओं का प्रश्न है, हमारा देश इस नेमत से बुरी तरह मालामाल है। इस मामले में हम पर परमपिता परमात्मा की फुल कृपा है। उसने हमें बनाया ही ऐसा है कि जहां समस्या हो ही नहीं, हम वहां भी अच्छी-ख्ाासी समस्या खडी कर लेते हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र, वर्ग, भाषा आदि की भूमि पर हमने भ्रष्ट आचरण के उन्नत बीज बोए हैं, जो हर वर्ष समस्याओं की लहलहाती फसलें प्रदान करते चले आ रहे हैं। समस्या सृजन के मामले में हमारा मस्तिष्क इतना उर्वर है कि कुछ न हो तो हम इसी बात पर समस्या पैदा कर सकते हैं कि कोई समस्या क्यों नहीं है।

समस्याएं भले अनगिनत हों, परंतु जिस प्रकार समस्त दुखों का मूल 'माया' को बताया जाता है, उसी प्रकार समस्त समस्याओं का मूल भी एक ही समस्या में निहित है और वह एकमात्र विलक्षण समस्या है - बेरोजगारी।

अस्तु जीवन की समस्त समस्याओं से छुटकारा पाने का एक ही तरीका है और वह है बेरोजगारी से छुटकारा पाना। यदि बेरोजगारी को काबू कर लिया जाए तो हमारी अधिकांश समस्याएं उत्पन्न होने से पहले ही समाप्त हो जाएं।

जहां तक रोजग़ार का प्रश्न है, हमारा देश रोजगार उन्मूलन के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में संपूर्ण विश्व में अग्रणी है। हमने कई उत्पादक क्षेत्रों का तो ऐसा बेडा गर्क कर दिया है कि आगामी कई श्रावणों तक यहां रोजगार की नन्ही कोपलें फूटने की कोई संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती। हमारे सभी कर्ता-धर्ता इनका जीवन रस चूस-चूस कर उसे स्विस बैंकों तक पहुंचाने की परियोजनाओं में आकंठ निमग्न हैं।

ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों न अपने बेरोजगारी परक अनुभवों के आधार पर बेरोजगार भाइयों की बेरोजगारी दूर करने के कुछ कारगर उपाय सुझा कर अपना जीवन सफल कर लिया जाए

बेरोजगारी देखने में एक छोटी सी समस्या जरूर लगती है, लेकिन जिस प्रकार संस्कृत को समस्त भाषाओं की जननी माना जाता है, उसी प्रकार बेरोजगारी समस्त समस्याओं की माता है। सभी समस्याओं का मूल 'स्वार्थ में निहित है और बेरोजगारी मनुष्य को न चाहते हुए भी स्वार्थी बना देती है, जिससे नाना प्रकार की समस्याओं का जन्म पर जन्म होता चला जाता है।

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