अनुसार कृतिया कीजिए:
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जीवन निर्वाह या धन कमाने के लिए अनेक व्यवसाय चल रहे हैं। इनके
मोटे तौर पर दो वर्ग किए जा सकते हैं। कुछ व्यवसाय ऐसे हैं, जिनमें शरीर श्रम
आवश्यक है और कुछ ऐसे हैं जो बुद्धि के बल पर चलाए जाते हैं। पहले प्रकार
के व्यवसाय को हम श्रमजीवियों के व्यवसाय कहें और दूसरों को बदधिजीवियों
के। राज-काज चलाने वाले मंत्री आदि तथा राज के कर्मचारी ऊँचे-ऊँचे पद से
लेकर नीचे के क्लर्क तक, न्यायाधीश, वकील, डॉक्टर, अध्यापक, व्यापारी आदि
ऐसे हैं जो अपना भरण-पोषण बौद्धिक काम से करते हैं। शरीर श्रम से अपना निर्वाह
करने वाले हैं-किसान, मजदूर, बढ़ई, राज, लुहार आदि। समाज के व्यवहार
के लिए इन बुद्धिजीवियों और श्रमजीवियों, दोनों प्रकार के लोगों की जरूरत
है पर सामाजिक दृष्टि से इन दोनों के व्यवसाय के मूल्यों में बहुत फर्क है।
बद्धिजीवियों का जीवन श्रमजीवियों पर आधारित है। ऐसा होते हुए भी
दुर्भाग्य यह है कि श्रमजीवियों की मजदूरी एवं आमदनी कम है, समाज में उनकी
प्रतिष्ठा नहीं और उनको अपना जीवन प्राय: कष्ट में ही बिताना पड़ता है।
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englis please
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