'अनुस्वार' और 'विसर्ग' व्यंजन के भेद हैं।
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विसर्ग ( ः ) महाप्राण सूचक एक स्वर है। ब्राह्मी से उत्पन्न अधिकांश लिपियों में इसके लिये संकेत हैं। उदाहरण के लिये, रामः, प्रातः, अतः, सम्भवतः, आदि में अन्त में विसर्ग आया है।
गायत्री मंत्र में तीन बार विसर्ग आया है।
जैसे आगे बताया गया है, विसर्ग यह अपने आप में कोई अलग वर्ण नहीं है; वह केवल स्वराश्रित है। विसर्ग का उच्चारण विशिष्ट होने से उसे पूर्णतया शुद्ध लिखा नहीं जा सकता, क्योंकि विसर्ग अपने आप में ही किसी उच्चारण का प्रतीक मात्र है ! किसी भाषातज्ज्ञ के द्वारा उसे प्रत्यक्ष सीख लेना ही जादा उपयुक्त होगा।
सामान्यतः
विसर्ग के पहले हृस्व स्वर/व्यंजन हो तो उसका उच्चारण त्वरित ‘ह’ जैसा करना चाहिए; और यदि विसर्ग के पहले दीर्घ स्वर/व्यंजन हो तो विसर्ग का उच्चारण त्वरित ‘हा’ जैसा करना चाहिए।
विसर्ग के पूर्व ‘अ’कार हो तो विसर्ग का उच्चारण ‘ह’ जैसा; ‘आ’ हो तो ‘हा’ जैसा; ‘ओ’ हो तो ‘हो’ जैसा, ‘इ’ हो तो ‘हि’ जैसा... इत्यादि होता है। पर विसर्ग के पूर्व अगर ‘ऐ’कार हो तो विसर्ग का उच्चारण ‘हि’ जैसा होता है।
विसर्ग के दो सहस्वनिक होते हैं-
केशवः = केशव (ह)
बालाः = बाला (हा)
भोः = भो (हो)
मतिः = मति (हि)
चक्षुः = चक्षु (हु)
देवैः = देवै (हि)
भूमेः = भूमे (हे)
पंक्ति के मध्य में विसर्ग हो तो उसका उच्चारण आघात देकर ‘ह’ जैसा करना चाहिए।
Answer:
चीटिंग मत कर संस्कृत के पेपर में