अन्तराज्यीय प्रवास
को समझाये।
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मनुष्य स्थायी या अस्थायी रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान आवागमन करते है। अक्सर आवागमन लम्बी दूरी का ही होता है। वह अपने देश से दूसरे देश तक ही नही बल्कि आन्तरिक पलायन भी करते हैं क्योंकि ज़्यादातर लोग अपने देश मे रहना पसन्द करते हैं । मानव पलायन पूरे विश्व मे एक समान है। प्रवास एक व्यक्ति के रूप मे, परिवार, विशाल समूह के रूप मे होता है।
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दो हफ्ते पहले, भारत के उत्तरी राज्य गुजरात में प्रवासी श्रमिकों को लक्षित किया गया था जिससे उनके पलायन की प्रक्रिया शुरू हो गई। एक प्रवासी श्रमिक द्वारा एक छोटे बच्चे के साथ कथित रूप से बलात्कार करने के बाद, छह जिलों में से साबरकांठा और मेहसाना में सबसे ज्यादा हिंसा हुई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि गुजरात में काम कर रहे बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के प्रवासियों को पलायन करना पड़ा, इनकी संख्या 20,000 से 50,000 के बीच हो सकती है।
विद्रोह की असल वजह राजनीतिक शासन के खिलाफ प्रेरित राजनीति हो सकती है या बाहरी व्यक्तियों के कारण स्थानीय लोगों को रोजगार न मिल पाने की शिकायत भी इसके पीछे एक कारण हो सकती है। कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकुर दावा करते हैं कि गुजरात ऐसे कानूनों को लागू नहीं कर रहा है जिसमें करीब 80 प्रतिशत नौकरियों में स्थानीय लोगों की भर्ती की जानी चाहिए; इसके लिए सोशल मीडिया को दोषी ठहराया जा सकता है, जो किसी विवादित मुद्दे को उत्प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाती है।
हालांकि, जिस चीज पर तर्क-वितर्क नहीं किया जा सकता है वह है नुकसान, आघात और असुविधा जो न सिर्फ प्रवासी श्रमिकों या उनके परिवारों को हुई है बल्कि फार्मास्यूटिकल्स, इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण सहित कई अन्य कंपनियों, जो इन प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर थीं, को भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो, सानंद में 15,000 में से 4,000 श्रमिकों ने कारखानों में काम करना छोड़ दिया था जिसके बाद कुछ दिनों तक कारखानों को बंद रख गया, भले ही मालिकों ने कानून और सुरक्षा सुनिश्चित करने और उन्हें वापस आने के लिए मनाने हेतु अपनी सर्वश्रेष्ठ कोशिश की हो। पुलिस कार्यवाई की गई, अपराधियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए और उनको गिरफ्तार किया गया तथा औद्योगिक इकाइयों और आवासीय कालोनियों को सुरक्षा देने के लिए राज्य सरकार का हस्तक्षेप हुआ और जनता में विश्वास को कायम रखने के लिए सामुदायिक बैठकों का आयोजन किया गया जिससे काफी मदद मिली। हालांकि लोगों में डर और संदेह अभी भी बना हुआ है, जो लोग वापस आ गए उन्होंने अपना काम करना शुरू कर दिया। जिन्होंने छोड़ दिया, वे अपने सुरक्षित क्षेत्रों – अपनी भूमि पर वापस चले गए।