अनुवाद की आवश्यकता क्यों होती है
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अनुवाद की आवश्यकता
बीसवीं शताब्दी में देशों के बीच की दूरियाँ कम होने के परिणामस्वरूप विभिन्न वैचारिक धरातलों और आर्थिक, औद्योगिक स्तरों पर पारस्परिक भाषिक विनिमय बढ़ा है और इस विनिमय के साथ-साथ अनुवाद का प्रयोग और अधिक किया जाने लगा है। आज के वैज्ञानिक युग में अनुवाद बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। यदि हमें दूसरे देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना है तो हमें उनके यहाँ विज्ञान के क्षेत्र में, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में हुई प्रगति की जानकारी होनी चाहिए और यह जानकारी हमें अनुवाद के माध्यम से मिलती है। विश्व की कुछ श्रेष्ठ कृतियों को अनुवाद के कारण ही सम्मान मिला। रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ को नोबेल पुरस्कार उनके द्वारा किए गए अनुवाद कार्य पर ही मिला। शेक्सपियर, बर्नाड शा, अरस्तू, माक्र्स, गोर्की आदि जैसे विश्व के महान् साहित्यकारों एवं दर्शनशास्त्रियों को हम अनुवाद के माध्यम से ही जानते हैं। बहुत पहले हमारे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘अनुवाद की आवश्यकता’ पर बल देते हुए स्पष्ट कर दिया था-
‘‘सज्जनो, भगीरथ प्रयत्न फलें आपके
ले जा सकते हैं यहाँ गंगा से प्रवाह को।
आप अनुवाद की ही योजनाएँ कर दें
तो कह सकें हम सगर्व विश्व-भर के
वाड़्मय में जो है वह चुन लिया हमने
और जो हमारा अपना है, अतिरिक्त है।’’
आधुनिक युग में जैसे-जैसे स्थान और समय की दूरियाँ कम होती गर्इं वैसे-वैसे द्विभाषिकता की स्थितियों और मात्रा में वृद्धि हुई और इसके साथ-साथ अनुवाद में भी। अन्य भाषा-शिक्षण में अनुवाद विधि का प्रयोग न केवल पश्चिमी देशों में वरन् पूर्वी देशों में भी निरन्तर किया जाता रहा है। हम यहाँ जीवन और समाज के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में अनुवाद की आवश्यकता की चर्चा करेंगे।