Hindi, asked by shobhamahant97, 5 hours ago

अनुवाद के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ​

Answers

Answered by mitrakshim
6

Answer:

I hope help at all

please like brother and sister

Attachments:
Answered by gursharanjali
4

Answer:

प्रयोजन होने लगा था। यहाँ अनुवाद के उस व्‍यापक अर्थ की बात की जा रही है, जि‍समें मनुष्‍य मौलि‍क समझकर जो कुछ रचता, करता, बोलता, या लि‍खता है; उनमें से कुछ भी मौलि‍क नहीं होता; सारा कुछ उनके पूर्व-पाठ का अनुवाद होता है, अनुकरण होता है। प्राथमि‍क स्‍तर पर कर्ता द्वारा जो कुछ सोचा गया, वह मौलि‍क होता है; और उसे भौति‍क स्‍वरूप देने के लि‍ए जो कुछ कि‍या जाता है, वह उसके सोच-समझ का अनुवाद होता है। भारत में, और वि‍श्‍व की सभी भाषाओं में अनुवाद की प्रारम्‍भि‍क स्‍थि‍ति यही ‍रही है।

इस तरह प्राचीन-काल में ही वस्‍तु एवं वि‍चार के वि‍नि‍मय हेतु समाजहि‍त में आवि‍ष्‍कृत अनुवाद का भरपूर उपयोग ज्ञान एवं धर्म के सहज संचार जैसे पुनीत कार्य में हुआ। आगे चलकर यह कि‍सी खास भाषा के स्‍थगि‍त को पाठ को दूसरी भाषा में पुनरुज्‍जीवन देने लगा और वृहत्तर पाठक समुदाय में उसका प्रवेश कराने लगा। फि‍र समाज-व्‍यवस्‍था और शासन-तन्‍त्र के सफल संचालन में इसने अपनी अनि‍वार्य भूमि‍का अदा की। इति‍हास गवाह है कि‍ अतीत-काल के समस्‍त मनीषी अपने नैष्‍ठि‍क योगदान से इसकी उक्‍त गरि‍मा का अनुरक्षण करते रहे। हर दौर के भाष्‍यकारों, टीकाकारों, अनुवादकों ने अपने नैति‍क दायि‍त्‍व और सामाजि‍क सरोकार के अधीन ही इस नि‍ष्‍ठा का परि‍चय दि‍या है। लक्षि‍त भाषा के प्रयोक्‍ताओं के बीच अनूदि‍त पाठ की सम्‍प्रेषणीयता अनुवाद की प्राथमि‍क और सर्वाधि‍क प्रयोजनीयता मानी गई है। पाठ सम्‍प्रेषणीय न हो, तो वह अनुवाद नि‍ष्‍प्रयोज माना जाएगा। मानव-सभ्‍यता के कि‍सी दौर में नि‍ष्‍प्रयोजन कर्म को कार्य मानने की परम्‍परा नहीं रही है।

Similar questions