'अन्याय के विरोध आप क्या कहते है।' बडा उत्तर
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मेरे साथ अन्याय हुआ है’, यह बात जेब में रखकर चलना आसान है, मगर इसे हथियार बनाकर लड़ना कठिन है। हममें से ऐसा कोई नहीं, जिसके साथ कभी अन्याय न हुआ हो, लेकिन असल बात इसे लेकर हमारी प्रतिक्रिया की है। इस बात की है कि हम विरोध करते हैं या नहीं? करते भी हैं, तो किस तरह और कितना? अन्याय का विरोध तभी सफल होता है, जब वह आंतरिक तौर पर आए। विरोध का मतलब सामने वाले को खरी-खोटी सुना देने तक सीमित नहीं होना चाहिए।
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मेरे साथ अन्याय हुआ है’, यह बात जेब में रखकर चलना आसान है, मगर इसे हथियार बनाकर लड़ना कठिन है। हममें से ऐसा कोई नहीं, जिसके साथ कभी अन्याय न हुआ हो, लेकिन असल बात इसे लेकर हमारी प्रतिक्रिया की है। इस बात की है कि हम विरोध करते हैं या नहीं? करते भी हैं, तो किस तरह और कितना? अन्याय का विरोध तभी सफल होता है, जब वह आंतरिक तौर पर आए। विरोध का मतलब सामने वाले को खरी-खोटी सुना देने तक सीमित नहीं होना चाहिए।ईरान के बेहद चर्चित और विवादास्पद फिल्मकार मोहसिन मखमलबाफ का कहना है कि विरोध वैचारिक और रचनात्मक हो, तभी सही मायने में वह अन्यायी के प्रति निर्मम होता है। ईरान के कट्टरपंथी समाज में खुलेपन के घोर समर्थक मोहसिन की अधिकांश फिल्मों पर वहां पाबंदी लगी, लेकिन वह फिल्में बनाते रहे। आखिर पाबंदियों से उकताकर वह अमेरिका चले गए, लेकिन फिल्मों के जरिए ईरानी समाज की विसंगतियों को सामने लाना जारी रखा। नाइंसाफी लगातार चलने वाली प्रक्रिया हो सकती है, इसलिए इसका विरोध भी निरंतर होना चाहिए। मार्टिन लूथर किंग जूनियर अपने अस्तित्व को पूरी तरह अन्याय के प्रतिरोध की नींव पर टिका मानते थे।शायद यही कारण है कि बरसों बीतने के बाद आज भी उनकी बातें हम सभी को सम्मोहित करती हैं। यहां महान दार्शनिक और फ्रांसीसी क्रांति के प्रणेताओं में से एक रहे जीन जैक्स रूसो कहते थे- अन्याय बड़ी शक्ति देता है। संगीत पर लिखे अपने एक आलेख को पेरिस अकादमी की कमेटी द्वारा खारिज करने के बाद उन्होंने कहा- ‘मैं अपने साथ हुए अन्याय को बर्दाश्त नहीं करूंगा। मैं दुनिया के शिकारियों के शिकार पर हाथ डालकर देखूंगा। मैं शिकारियों को बता दूंगा कि दुनिया उनकी नहीं।’ वह अपना आलेख खारिज होने से आहत नहीं थे। इस बात से आहत थे कि पेरिस अकादमी की उस कमेटी में कोई संगीतकार नहीं था।