anekta mai ekta paragraph in hindi
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भारत एक विशाल देश है। यहां अनेक धर्म और जातियों के लोग रहते हैं। सनातन धर्म, वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म, और जैन धर्म, ईसाई, इस्लाम आदि अने धर्म हैं। और हूण, तुर्क, पठान, पुर्तगाली, फे्रंच, मुगल, अंग्रेज, डच, पारसी अनेक जाति के निवासी हैं। वहां मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, मठ, चर्च आदि पूजा-स्थल है। इसी प्रकार यहां विविध पोशाकें पहनने वाले लोग रहते हैं। वे अलग-अलग भाषाएं-बोलियां बोलते हैं। यहां आस्तिक भी। सब अलग-अलग प्रकार के उत्सव, पर्व, त्यौहार आदि अलग-अलग महीनों में मनाते हैं। कभी रथ यात्रांए निकलती है तो कभी शोभायात्रा का मनमोहक दृश्य सामने आता है। कभी परिक्रमा का धूम मचाती है तो कभी ईद की बधाईयां दी जाती हैं। यहां दीपों का पर्व भी है और बैशाखी व हुड़दंग का महोत्सव भी इस प्रकार यहां का प्रत्येक दिन एक त्यौहार है या पर्व अथवा उत्सव।
इस सबसे यह सोचा जा सकता है कि यहां एकता कैसे है? यहां तो धर्म, रीति, पद्धति, पहनावा, बोली, रहन-सहन आदि सबमें भिन्नता है। यह सही है परंतु यह इससे ज्यादा सही है कि इस विविधता के बाद यहां एकता है, परस्पर प्रेम और त्याग की भावना है। जैसे अनेक वाद्य मिलकर अत्यंत मधुर वातावरण बना देते हैं ठीक उसी प्रकार यहां अनेकता एकता में मिलकर प्रयाग के आनंद की अनुभूति कराती है।
यह इस धरती की माटी की अपनी विशेषता है कि आक्रामक उसे जीतने आता है और कू्ररता, घृणा, और आतंक से भरा होता है, कत्लेआम कराता है, फिर भी वह बहुत जल्दी अपनी धरती को भूलकर हमेशा-हमेशा के लिए यहां का हो जाता है। जैसे ऋर्षि आश्रम में पहुंच डाकू, शैतान, शेर, सर्प आदि अपने दु:स्वभाव को भूलकर संत स्वभाव धारय कर लेते हैं। उसी प्रकार आक्रामक कौंमें भी अपने पैने दांतों और नापाक इरादों को छोडक़र इस मिट्टी को अपनी मां मानती रही हैं।
वास्तव में इस धरती ने संस्कृति की ऊंचाईयों को जिया है। तप से यह धरती-पावन हुई है। इस धरती ने मां की ममता को अपने से व्यक्त होने दिया। यहां स्नेहहीन को स्नेह मिला है, घृणा को प्यार मिला है, दस्यु को सन्तता और कू्ररता को दया व सहानुभूति। इस कारण यहां की संस्कृति ओर सभ्यता अन्यतम ऊंचाईयों को अपने से सूर्योदय सी व्यक्त कर सकती है।
भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है अत: उसका स्त्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरंतर अलख जमाती रहती है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आनंद से जोड़ती रहती है। उसकी चेष्टा मानव-जीवन को नव-से-नव ज्योति, बल, संगीत, स्नेह, उल्लास और उत्साह से भरने की है। यही इस संस्कृति की सबसे सशक्त विशेषता है। वस्तुतया पर्व, उत्सव और त्यौहार ही इस संस्कृति की अन्त: अभिव्यक्ति है।
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भारत की सांस्कृतिक एकता
सांस्कृतिक एकता राष्ट्र की एॆकात्मकता तक का का प्रमाण है; मानव की जन्मजात उच्छृंखल प्रवृत्तियों पर प्रतिबंध का परिचायक है; व्यक्ति और राष्ट्र की उन्नति का सोपान है; तीन या चार धार्मिक व्यक्तियों से जुड़ा सांस्कृति का मिलन नहीं, न ही इसका अर्थ एक मिश्रित संस्कृति का उदय है।
इसका इसका सीधा सा अर्थ है कि हिंदू धर्म में विभिन्न तरह के होते हुए भी खान-पान रहन-सहन पूजा उपासना में भेद होते रहते हुए भी विश्व का हिंदू सांस्कृतिक दृष्टि से एक सूत्र में बांधा है वह एक है।
परंपराएं मान्यताएं अस्थाई जीवन मूल्य उसके स्तंभ है। भारत विभेदो का समुद्र है शायद इसलिए इसे उपमहाद्वीप माना जाता है यहां ढाई कोस पर बोली बदलती है।
संविधान स्वीकृत 22 भाषाएं हैं। भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं।
परिधान की विविधता में यहां इंद्रधनुषी रंगों के दर्शन होते हैं।
रुचि की विविधता तथा जलवायु की आवश्यकता के अनुसार खानपान में विभिन्नता है, अरे यह विभिन्नता भारतीय संस्कृति की एकता का पोशाक ही है ,बाधक नहीं है। परवाह पर्व और त्योहार हमारी संस्कृति एकता की आधारशिला है तथा एक आत्मा दर्शन के साक्षी है।
देश में पाए जाने वाले अनेक तीर्थ अभी हमारी अटूट सांस्कृतिक एकता के प्रमाण है। इस सांस्कृतिक एकता के कारण सृष्टि के आदि से चली आ रही भारतीय संस्कृति आज भी गौरव और गर्व से विश्व के प्रारंभ में उन्नत मस्तक किए हैं।
यही कारण है कि हमारी संस्कृति काल के अनेक थपेड़े खाकर भी आज अपने आदि स्वरूप में जीवित है।