Angel Tax क्या हैं? एंजेल टैक्स यह किस तरह बिज़नेस पर लगता हैं?
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यदि कोई अनलिस्टेड कंपनी फेयर मार्केट वैल्यू से ज्यादा रेट पर शेयर इशू करती है तो कंपनी को इशू के लिए फेयर मार्केट वैल्यू से जितनी ज्यादा रकम मिलती है, उसे दूसरे सोर्स से हासिल इनकम माना जाएगी और उसी हिसाब से एंजल टैक्स लगता है। इसे 'एंजल टैक्स' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह स्टार्टअप्स में एंजल निवेश को प्रभावित करता है। ये निवेशक उद्यमियों को नए उद्यम के शुरुआती दौर में पूंजी मुहैया कराते हैं।
इस टैक्स का प्रावधान पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 2012 के बजट में लागू किया था ताकि पैसे की हेरफेर पर लगाम कसी जा सके। दरअसल अनलिस्टेड और अनजान सी कंपनियों में निवेश के जरिए काले धन को सफेद करने के खेल की जानकारी मिलने पर यह कदम उठाया गया था।
Angel Tax क्या हैं
एक अनलिस्टेड कंपनी जब अपने शेयर issue करती है तो उसकी फेयर वैल्यू (वास्तविक कीमत) तय की जाती है| लेकिन कुछ कंपनी कभी कभी फेयर वैल्यू से अधिक कीमत पर शेयर इशू कर देती है| ताकि अधिक रकम जुटाई जा सके| ऐसे में सरकार उस अधिक जुटाई हुई रकम को दूसरे माधयम से मिली हुई रकम मान कर उस पर जो टैक्स लगाती है उसे ही एंजल टैक्स (Angel Tax) कहा जाता है|
Angel Tax बिज़नेस किस तरह के बिज़नस पर लगता है?
यह टैक्स स्टार्ट-अप करने वाली कंपनीस पर तब लगाया जाता है जब वह वास्तविक मूल्यांक से अधिक कीमत पर शेयर इशू कर के अतिरिक्त पूंजी जुटाती है| इस प्रकार के टैक्स में छूट की बात करें तो धारा 56 के तहत दस करोड़ रुपियों के कुल इन्वेस्टमेंट वाली कंपनीओं को छूट देने का प्रावधान है|