ankho dekha mela essay in hindi
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मेले का प्रवेश द्वार बिजली के रंग-बिरंगे प्रकाश की सजावट से जगमगा रहा था | सम्पूर्ण दृश्य बड़ा ही भव्य मोहक और आकर्षक था | हम सब भाई-बहन उल्लास और उत्सुकता से उस मनोहर वातावरण को निहार रहे थे मानो उसके एक-एक दृश्य की छवि अपने हृदय पटल पर अंकित कर लेना चाहते हो | मेले में हमने देखा कि एक ओर पुरी पंक्ति में 20-25 दुकाने लडकी से बनी नाना प्रकार की कलात्मक वस्तुओ की थी | उसके बाद रंग-बिरंगे बहुमूल्य वस्त्रो की दुकानों की पंक्ति थी |
कही एक साथ बर्तनों की क्रोकरी की दुकाने थी तो कही चूडियो तथा महिलाओं की शृंगार सामग्री की दुकाने शोभा पा रही थी | हर दूकान पर भीड़ थी | दुकानदारों की चाँदी हो रही थी | हम लोगो को कुछ खरीदना तो था नही , मेले की शोभा का आनन्द लेने के उद्देश्य से ही आये थे | अत: आराम से घूमते हुए सब कुछ देख रहे थे | दुकानों की मुख्य पंक्तियों से अलग-अलग तरह मैदानों में तरह तरह के खिलौने , गुब्बारे , फिरकनी , बाजे , बांसुरी ,चाट-पकौड़े वाले बच्चो से घिरे हुए थे | कोई बच्चा प्रसन्नता से हंस रहा था कोई कुछ लेने के लिए अपने माँ-बाप से जिद करता हुआ मचल रहा था | कोई थक जाने के कारण गोद में चलने को रो रहा था | हर तरफ शोर-शराबे और चहल-पहल का वातावरण था |
मेले में घूम चुकने के बाद हम लोग पश्चिमी द्वार से बाहर निकले जहां तरह तरह के खेल तमाशे थे | झूले ,चरख , सर्कस , नाच-गाने , यमपुरी नाटक , नौटंकी आदि में लोग टिकट ले लेकर जा रहे थे | हम लोग एक जलपान गृह में पहुचे औए सबने तरह तरह की चीजे खाकर पेट की मांग पुरी की | मन भी तृप्त हो उठा था | इसके बाद हम सभी रात को 9 बजे से आरम्भ होने वाले संगीत सम्मेलन में पहुचे | देश के प्रख्यात संगीतज्ञो ने जो रसमयी स्वर धारा प्रवाहित की उसमे हम प्रात: चार बजे तक ऐसे डूबे रहे कि समय का ज्ञान ही नही रहा