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विद्यार्थियों को भक्तिकाल की व्यापक जन चेतना और उसके अखिल भारतीय स्वरूप से परिचित कराने के उद्देश्य से ललद्यद के कितने वाखों का हिंदी अनुवाद क्षितिज पुस्तक में किया गया है
- क ) तीन
- ख ) चार ✔️
- ग ) दो
- घ ) पांच
विद्यार्थियों को भक्तिकाल की व्यापक जन चेतना और उसके अखिल भारतीय स्वरूप से परिचित कराने के उद्देश्य से ललद्यद के चार वाखों का हिंदी अनुवाद क्षितिज पुस्तक में किया गया है ।
यह वाख निम्नलिखित हैं :-
वाख
1
रस्सी कच्चे धागे की , खींच रही मैं नाव ।
जाने कब सुन मेरी पुकार , करें देव भवसागर पार ।
पानी टपके कच्चे सकोरे , व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे ।
जी में उठती रह-रह हूक , घर जाने की चाह है घेरे ।।
2
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं ,
न खाकर बनेगा अहंकारी ।
सम खा तभी होगा समभावी ,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की ।
3
आई सीधी राह से , गई न सीधी राह ।
सूक्ष्म - सेतु पर खड़ी थी , बीत गया दिन आह !
जेब टटोली , कौड़ी न पाई ।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?
4
थल-थल में बसता है शिव ही ,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां ।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान ,
वही है साहिब से पहचान ।।