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एक एक सेठ अपने नौकर का हार चोरी कर लेता है सेठ गुस्से में आकर नौकरों से पूछता है कि मेरा हार किसने चुराया कोई चोरी कबूल नहीं करता फिर से एक युक्ति करता है वह सभी नौकरों को साथ-साथ इसकी लकड़िया देता है वह लकड़ी या तो साधारण होती है मगर सेठ चोर का पता ना लगाने के लिए नौकरों से कहता है कि यह जादुई लक्की लकड़ी है मैं सभी को एक-एक लकड़िया दे रहा हूं जिसके लकड़ी या जिसके लकड़ी 2 दिन में बड़ी हो जाएगी दूरी तक उसने मेरी कीमती चीज चुराई होगी यह कहकर सेठ अपने काम पर लग जाता है 2 दिन के बाद फिर कभी नौकरों को बुलाता है लेकिन उस दिन शाम को वह चोर नौकर ने अपनी लकड़ी लकड़ी थोड़ी काट देता है फिर जब से देखता है तो उन्हें पता चल जाता है कि इसी ने मेरा हाल चुराया है इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि जादू की कोई भी चीज पर यकीन ना करें
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