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Explanation:
(III) खानपान के मामले में स्थानीयता का अर्थ है कि वे व्यंजन जो स्थानीय आधार पर बनते थे। जैसे मुम्बई की पाव-भाजी, दिल्ली के छोले-कुलचे,
(Iv) लेखिका को नीलकंठ का गरदन ऊँची कर देखना, मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर नाचना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना और पानी-पीना तथा गरदन टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि चेष्टाएँ बहुत भाती थीं।
(v) (1) वीर कुंवर सिंह में देशभक्ति और प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी। (2) मातृभूमि को अंग्रेजों से आजाद कराने की प्रबल इच्छा थी। (4) वह साहसी होने अलावा छापामार युद्धकला में भी निपुण थे। (5) वह निर्धनों की सहायता के लिए हमेशा आगे रहते थे।
Q. खानपान के मामले में स्थानीयता का क्या अर्थ है?
खानपान के मामले में स्थानीयता का अर्थ है कि वे व्यंजन जो स्थानीय आधार पर बनते थे। जैसे मुम्बई की पाव-भाजी, दिल्ली के छोले-कुलचे, मथुरा के पेड़े व आगरे के पेठे-नमकीन तो कहीं किसी प्रदेश की जलेबियाँ, पूड़ी और कचौड़ी आदि स्थानीय व्यंजनों का अत्यधिक चलन था और अपना अलग महत्त्व भी था।
Q. लेखिका को नीलकंठ की कौन सी चेष्टाएं बहुत भाती थी?
लेखिका को नीलकंठ का गरदन ऊँची कर देखना, मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर नाचना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना और पानी-पीना तथा गरदन टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि चेष्टाएँ बहुत भाती थीं।
Q. वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं में आपको प्रभावित किया?
(1) वीर कुंवर सिंह में देशभक्ति और प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी।
(2) मातृभूमि को अंग्रेजों से आजाद कराने की प्रबल इच्छा थी।
(4) वह साहसी होने अलावा छापामार युद्धकला में भी निपुण थे।
(5) वह निर्धनों की सहायता के लिए हमेशा आगे रहते थे।