Hindi, asked by rijujaman123, 17 days ago

answer my q.
Paropakar ka parinam par ek lagu ktha likhe ... ??? answer me ...​

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Answered by amanpatel15
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Answer:

व्यक्ति की बात सुनकर संत एकनाथ ने कहा – तुम लोग सांप को बेवजह मरोगे तो वह भी तुम्हे कटेगा ही, अगर तुम सांप को नहीं मरोगे तो वह भी तुम्हें क्यों काटेगा|ग्रामीण संत एकनाथ का काफी आदर सम्मान करते थे इसलिए संत की बात सुनकर लोगों ने सांप को छोड़ दिया!

कुछ दिनों बाद एकनाथ शाम के वक़्त घाट पर स्नान करने जा रहे थे| तभी उन्हें रास्ते में सामने फेन फैलाए एक सांप दिखाई दिया| संत एकनाथ ने सांप को रास्ते से हटाने की काफी कोशिश की लेकिन वह टस से मस न हुआ| आखिर में एकनाथ मुड़कर दुसरे घाट पर स्नान करने चले गए| उजाला होने पर लौटे तो देखा, बरसात के कारण वहां एक गड्डा हो गया था, अगर सांप ने ना बचाया होता तो संत एकनाथ उस गड्ढे में कबके समां चुके होते| कहानी का सारांश यह है कि यदि आप कही भी भलाई करते है तो उसका फल आपको भला ही मिलता है इसके उलट यदि आप कही भी गलत करते हो किसी का नुकसान या दिल दुखाने जैसा कर्म करते हो तो उसके बदले आपको भी कहीं कही कभी न कभी वैसा ही फल भुगतना पड़ता है |

Explanation:

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Answered by ayushsinghgolu123
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Explanation:

लघुकथा - परोपकार

मैं कांपते कदमों से उसके पास गया। उसके मुंह के पास ही एक कागज पड़ा था, जिस पर मेरी लिखावट में लिखा था, 'परोपका

पापा, कितनी देर से कह रहा हूं कि सड़क पर एक छोटा सा पिल्ला बहुत देर से कूं कूं कर रहा है।'

'ओह! तो मैं क्या करूं?' मैंने झाुंझालाते हुए कहा। 'उसे सर्दी लग रही होगी।' बेटे ने चिंतित स्वर में कहा।

'अभी इतनी ठंड कहां है?' कहते हुए मैंने कुर्सी पर पड़ा शॉल अपने ऊनी स्वेटर के ऊपर लपेट लिया और हीटर को पैरों के पास थोड़ा और सरका लिया।

बेटा बोला-'पापा, बाहर बहुत ठंड है। शायद वह अपनी मां से बिछड़ गया है। हम उसको ब्रेड दे देते है और उसके ऊपर एक कपड़ा डाल आते हैं।'

'मुझो परेशान मत करो। मैं परोपकार पर कहानी लिख रहा हूं। कहते हुए मैं वापस लिखने में जुट गया।

बेटा सामने ही कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि वह कुर्सी पर ही सो चुका था। मैंने उसे प्यार से गोदी में उठाया और बिस्तर पर जाकर लेटा दिया।

थोड़ी देर बाद मोबाइल पर मैसेज आया कि संपादक ने कहानी स्वीकृत कर ली थी और कहानी पढ़कर उनकी भी आंखें भर आई थीं।

मेरा चेहरा ख़ुशी से खिल उठा और मैं भी नरम मुलायम कंबल में सिकुड़ कर सो गया। दूसरे दिन सुबह जब मैं अपना गर्म ओवरकोट पहनकर दूध लाने के लिए निकला तो गेट पर ही काले रंग का छोटा सा पिल्ला मरा हुआ पड़ा था और एक काले रंग का कुत्ता उसके चारों तरफ चक्कर लगाकर बार- बार उसके पास बैठ रहा था। पिल्ले के ऊपर मेरी कहानी के कुछ पन्ने भी पड़े थे, जो मैंने रात में खिड़की से बाहर फेंक दिए थे। मैं कांपते कदमों से उसके पास गया। उसके मुंह के पास ही एक कागज पड़ा था, जिस पर मेरी लिखावट में लिखा था, 'परोपकार'।

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खुर्राट

रश्मि को अपनी बेटी की शादी से अधिक भात की चिंता सता रही थी। ससुराल तो बहुत सम्पन्न था लेकिन उसके भाई की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। कई बार मन किया पति से बात करे लेकिन उसके खुर्राट स्वभाव के कारण कुछ कहने की हिम्मत जुटा नहीं पाई। पता नहीं क्या लाया होगा क्या नहीं, कैसे उसने अपनी व्यवस्था की होगी, उस गरीब का पैसा भी खर्च होगा फिर भी सब उसके दिए कपड़ों का मजाक ही बनाएंगे।

भात शुरू हुआ। गीतों में उसका ध्यान बार-बार साधारण कपड़े पहने भाई भाभी के चेहरे की ओर जा रहा था। भाई खड़ा हुआ। सबसे पहले सास ससुर को कपड़े दिए गए। ससुर का सूट और सास के लिए महंगी जरी की साड़ी दी गई। सास बहुत खुश हो गयी। अगला नंबर जेठ जेठानी का था। भाई ने ऐसी साड़ी दी कि जेठानी देखती रह गई। दुल्हन, रश्मि और उनके परिवार का नंबर आया। सभी को उनकी मनपसंद ड्रेस मिली। रश्मि के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। सभी ओर उसके भाई की प्रशंसा होने लगी। अंत में भाई के गले मिलते समय रश्मि को रोना आ गया।

'कैसे किया रे ये सब?' पूछ लिया।

'अकेले में बताऊंगा दीदी। सब जीजा जी का किया है मैं तो माध्यम हूं।'

रश्मि ने पति के लिए नजर दौड़ाई। मन ही मन कहा 'खुर्राट हमेशा दिल जीत ले जाता है।'

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