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- प्रो. महावीर सरन जै न
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विश्व शान्ति की सार्थकता एक नए विश्व के निर्माण में है जिसके लिए विश्व के सभी देशों में परस्पर सद्भावना का विकास आवश्यक है।
शांतिपूर्ण, सह-अस्तित्व एवं विकास के लिए घटकों द्वारा आग्रहपूर्ण नीति का त्याग तथा सहयोगपूर्ण नीति का वरण आवश्यक है। सह-अस्तित्व की परिपुष्टि के लिए आत्मतुल्यता एवं समभाव की विचारणा का पल्लवन आवश्यक है।
संसार के सभी देशों के नागरिकों में संसार के समस्त जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखने तथा समस्त जीवों को समभाव से देखने की विचारधारा का पल्लवन आवश्यक है। इस मान्यता की स्वीकृति आवश्यक है कि किसी देश, धर्म, नस्ल, जाति, क्षेत्र में अन्य देश, धर्म, नस्ल, जाति, क्षेत्र की अपेक्षा कोई असाधारण विशेषताएँ नहीं होतीं। जाति और कुल से त्राण नहीं होता। प्राणी-मात्र आत्मतुल्य है। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति को संसार के सभी प्राणियों को आत्मतुल्य मानना चाहिए, सबको आत्मतुल्य समझना चाहिए, सबके प्रति मैत्री भाव रखना चाहिए।
व्यक्ति के स्तर पर जिस प्रकार मैत्रीभाव एवं समभाव की स्वीकृति आवश्यक है उसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय सद्भावना के लिए पृथ्वीलोक के विभिन्न सामाजिक संवर्गों एवं राजनीतिक इकाइयों के बीच सद्भाव, समझदारी एवं सहयोग आवश्यक है। यह आवश्यक है कि सामाजिक धरातल पर आत्मतुल्यता एवं समता की भावना विकसित हो, राजनीतिक धरातल पर सभी देश परस्पर एक-दूसरे की स्वतन्त्रता तथा प्रभुसत्ता का आदर करें एवं एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें तथा आर्थिक धरातल पर देशों के बीच व्याप्त आर्थिक असन्तुलन एवं वैमस्य समाप्त हो।
विभिन्न देशों के बीच सद्भावना के उदय के लिए 'पंचशील' के सिद्धान्तों की स्वीकृति एवं स्थिति आज भी प्रासंगिक है। वे हैं-
(1) एक-दूसरे देश की क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान।
(2) परस्पर आक्रमण न करना।
(3) एक-दूसरे देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
(4) समानता तथा परस्पर लाभ पहुँचाना।
(5) शांतिपूर्ण सहअस्तित्व।
जिस प्रकार सामाजिक जीवन में सद्भावना के विकास के लिए दूसरे व्यक्ति, धर्म, नस्ल, जाति, क्षेत्र आदि के प्रति सहिष्णुता की भावना आवश्यक है उसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय सद्भावना के लिए सभी देशों में इस बात पर आम सहमति होनी चाहिए कि हर देश को अपने रचनात्मक विकास का रास्ता स्वयं चुनने का अधिकार है। हर देश को यह अधिकार है कि वह अपने देश की जनता की आकांक्षाओं एवं इच्छाओं के अनुरूप अपने भविष्य के मार्ग का निर्धारण कर सके तथा उस रास्ते पर अपना सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास कर सके।
अंतर्राष्ट्रीय सदभावना का अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय सदभावना का अर्थ है-विश्व-नागरिकता। यह भावना इस बात पर बल देती है कि संसार के प्रत्येक मानव में भाई-चारे के सम्बन्ध हों तथा वसुधा एक कुटुम्ब के सामान प्रतीत हो। इस दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय सदभावना, विश्व मैत्री तथा विश्व-बन्धुत्त्व की भावना पर आधारित होते हुए मानव के कल्याण पर बल देती है। दूसरे शब्दों में, अंतर्राष्ट्रीय सदभावना विश्व के समस्त राष्ट्रों तथा उनके नागरिकों के प्रति प्रेम, सहानभूति तथा सहयोग की ओर संकेत करती है।
अंतर्राष्ट्रीय सदभावना की परिभाषा
अंतर्राष्ट्रीय सदभावना के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम निम्नलिखित परिभाषायें दे रहे हैं –
(1) डॉक्टर वाल्टर एच० सी० लेव्स- अंतर्राष्ट्रीय सदभावना इस ओर ध्यान दिये बिना कि व्यक्ति किस राष्ट्रीयता या संस्कृति के हैं, एक-दूसरे के प्रति सब जगह उनके व्यवहार का आलोचनात्मक और निष्पक्ष रूप से निरिक्षण करने और आंकने की योग्यता है। ऐसा करने के लिए व्यक्ति को इस योग्य होना चाहिये कि वह सब राष्ट्रीयताओं, संस्कृतियों तथा प्रजातियों को इस भूमंडल पर रहने वाले लोगों की समान रूप से महत्वपूर्ण विभिन्नताओं के रूप में निरिक्षण कर सके।
(2) ओलिवर गोल्डस्मिथ- अंतर्राष्ट्रीयता एक भावना है, जो व्यक्ति को यह बताती है कि वह अपने राज्य का ही सदस्य नहीं है वरन विश्व का नागरिक भी है।
अंतर्राष्ट्रीय सदभावना की आवश्यकता
गत सौ वर्षों के इतिहास पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि संसार के अनके महत्वाकांक्षी राष्ट्रों ने अपने नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना को विकसति करने के लिए शिक्षा की व्यवस्था अपने-अपने निजी ढंगों से की है। इन राष्ट्रों में बालकों को आरम्भ से ही इस बात की शिक्षा दी जाती थी कि- हमारा देश अच्छा अथवा बुरा। अथवा हमारा देश अन्य देशों में श्रेष्टतम है।- इस प्रकार ही शिक्षा प्राप्त करके बालकों में संकुचित राष्ट्रीयता की भावना विकसित हो गई जिसके परिणामस्वरुप विश्व में दो महायुद्ध हुए और आज भी तीसरे महायुद्ध के बदल आकाश में मंडरा रहे हैं। चूँकि युक्त दोनों महायुद्धों के कारण मानव के मानवीय तथा राजनितिक अधिकारों का हनन ही नहीं हुआ अपितु उसे विभिन्न अत्याचारों को भी सहना पड़ा, इसलिए अब संसार के सभी कर्णाधार इस बात का अनुभव करने लगे है कि संकुचती राष्ट्रीयता की अपेक्षा अंतर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास किया जाये जिससे संसार में समस्त नागरिकों में परस्पर दोष, घ्रणा ईर्ष्या तथा लम्पटता के स्थान पर प्रेम सहानुभूति , उदारता तथा सदभावना विकसित हो जायें और संसार में सुख शान्ति तथा स्वतंत्रता एवं समानता बनी रहे। रोमा रोला ने इस तथ्य की पुष्टि करते हुए लिखा है – भयंकर विनाशकारी परिणाम वाले दो विश्व-युद्धों ने कम से कम यह सिद्ध कर दिया है की क्षुद्र और आक्रमणकारी राष्ट्रीयता के संकीर्ण बंधनों को तोड़ डालना चाहिये तथा प्रेम, दया एवं सहानभूति पर आधारित मानव सम्बन्धों का विकास करने के लिए मानव जाति के स्वतंत्रता संघ का निर्माण किया जाना चाहिये।