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- उसकी जाल बुनने की प्रक्रिया की विशेषता यह है कि यह शुरू में एक गोल 'फ्रेम' बना लेती है। फिर उसके चारों ओर साइकिल के पहियों में लगे 'स्पोक्स' की तरह, धागे के तारों (वायर) का समूह बनाती रहती है जो परस्पर लिपटता जाता है। मकड़ी अपने जाले के बीचोबीच से बाहर की ओर निकलने वाला एक 'स्पाइरल' भी बनाती है।
- मकड़ी इस तरह से अपना शिकार फंसाने के लिए जाल का इस्तेमाल करती है. जिसमें फांसकर वह ज्यादातर छोटे कीड़े, मक्खी और छिपकलियों को खा जाती हैं. ' वीडियो में देखा जा सकता है कि एक स्थान पर एक ड्रम और कुछ सामान पड़ा हुआ है यहां मकड़ी ने अपना जाल बुन रखा है. जिसमें एक सांप फंस गया है जो निकलने के लिए बुरी तरह से तड़प रहा है.
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मैंने जो पहले का आंसर दिया है उसी से आप तीसरे कभी आंसर बना सकते हो
please mark me brainliest please
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- उसकी जाल बुनने की प्रक्रिया की विशेषता यह है कि यह शुरू में एक गोल 'फ्रेम' बना लेती है। फिर उसके चारों ओर साइकिल के पहियों में लगे 'स्पोक्स' की तरह, धागे के तारों (वायर) का समूह बनाती रहती है जो परस्पर लिपटता जाता है। मकड़ी अपने जाले के बीचोबीच से बाहर की ओर निकलने वाला एक 'स्पाइरल' भी बनाती है
- दरअसल मकड़ी अपना जाल अपना शिकार फंसाने के लिए करती है और इस जाल में कीड़े मकोड़े फंस जाते हैं और इनके सेवन से मकड़ी अपना पेट भर लेती है। दरअसल मकड़ी के शरीर से एक रेशमी धागे जैसा द्रव्य पदार्थ निकलता है जिसे स्पाइडर सिल्क भी कहा जाता है और इसी पदार्थ का इस्तेमाल मकड़ी अपना जाल बुनने में करती है।
Explanation:
- मकड़ी अपना जाल बुनने के लिए एक विशेष प्रकार का रेशमी धागा अपने शरीर से निकलती है, जिसे spider silk कहते है। यह रेशमी सदृश्य धागा प्रोटीन से बना होता है और इसका निमार्ण मकड़ी के रेशम ग्रंथियों में होता है। मकड़ी वर्ग में सात प्रकार की रेशम ग्रंथिया होती है। सभी सामान्य मकड़ियों में कम से कम तीन प्रकार की ग्रंथिया तो होती ही है। प्रत्येक प्रकार की ग्रंथि में अलग-अलग प्रकार का रेशम होता है। कुछ ग्रंथियों से तरल रेशम निकलना है जो मकड़ी के शरीर से बाहर आने पर वायु के सम्पर्क से सुख जाता है और कुछ में चिपचिपा रेशम बनता है जो चिपचिपा ही बना रहता है। spider रेशम पानी में नहीं घुलता है और ज्ञात प्राकृतिक रेशों में यह सर्वाधिक मजबूत होता है।
मकड़ी के शरीर के अंदर स्पिनरेट होते हैं जो रेशा ही बुनते हैं और हाथ की अंगुलियों की भांती कार्य करते हैं। मकड़ी स्पिनरेट को अंदर बाहर खिंच सकती है यहां तक कि सभी स्पिनरेटों को एक साथ बाहर ठेल भी सकती है। मकड़ियां अलग-अलग स्पिनरेटों की सहायता से विभिन्न रेशम गंथियों से निकले रेशम को मिलाकर एक बहुत पतला या मोटा और चौड़ी पट्टी वाला रेशम या कहे तो मकड़जाल बना सकती हैं।
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