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प्रिय मित्रों, कुछ रचनाएं हमें अन्दर तक प्रभावित करती हैं. ऐसी ही एक कविता मैं आप सब के साथ बाँटना चाहता. इस कविता के रचना कार का जन्म औग्स्बुर्ग, जर्मनी में १० फ़रवरी, १८९८ को हुआ. १४ अगस्त, १९५६ को पूर्वी बर्लिन में इनका निधन हो गया. उन्हीं की याद को ताजा करती कविता आप के सामने प्रस्तुत है. हमें मालूम है अपनी बीमारी का कारण वह एक छोटा सा शब्द है जिसे सब जानते हैं पर कहता कोई नहीं जब बीमार पड़ते हैं तो बताया जाता है सिर्फ तुम्हीं (डॉक्टर) हमें बचा सकते हो जनता के पैसे से बने बड़े-बड़े मेडिकल कॉलेज में खूब सारा पैसा खर्च कर दस साल तक डॉक्टरी शिक्षा पाई है तुम ने तब तो तुम हमें अवश्य अच्छा कर सकोगे .
क्या तुम सचमुच हमें स्वस्थ कर सकते हो ? तुम्हारे पास आते हैं जब बदन पर बचे चीथड़े खींच कर कान लगाकर सुनते हो तुम हमारे नंगे जिस्मों की आवाज खोजते हो कारण शरीर के भीतर पर अगर एक नजर शरीर के चिथड़ों पर डालो तो वे शायद तुम्हें ज्यादा बता सकेंगे क्यों घिस-पिट जातें हैं हमारे शरीर और कपड़े बस एक ही कारण है दोनों का वह एक छोटा सा शब्द है जिसे सब जानते हैं पर कहता कोई नहीं .
तुम कहते हो कन्धों का दर्द टीसता है नमी और सीलन की वजह से डॉक्टर तुम्हीं बताओ यह सीलन कहाँ से आई ? बहुत ज्यादा काम और बहुत कम भोजन ने कमजोर और दुबला कर दिया है हमें पर्ची पर लिखते हो और वजन बढ़ाओ यह तो वैसा ही है दलदली घास से कहो की वो खुश रहे .
डॉक्टर तुम्हारे पास कितना वक्त है हम जैसों के लिए ? क्या हमें मालूम नहीं तुम्हारे घर के एक कालीन की कीमत पांच हजार मरीजों से मिली फ़ीस के बराबर है बेशक तुम कहोगे इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं . हमारे घर की दीवार पर छाई सीलन भी यही कहानी दोहराती है हमें मालूम है अपनी बीमारी का कारण वह एक छोटा सा शब्द है जिसे जानते सब हैं पर कहता कोई नहीं वह है 'गरीबी' . बर्तोल्त ब्रेख्त (जर्मनी) प्रस्तुतकर्ता - रवीन्द्र कुमार