Hindi, asked by Ankit8451, 11 months ago

antriksh me bharat ki pahuch par nibandh likhiye

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Answered by adityaranjan5002
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अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम पर लघु निबंध (Hindi Essay on Antariksh mein Bharat Ke Badhte Kadam)

आज भारत विश्व का एक ऐसा विकासशील राष्ट्र बन चुका है, जो विश्व के सर्वाधिक विकसित राष्ट्र रूस और अमेरिका की वैज्ञानिक शक्तियों एव महत्वों से प्रतिस्पर्धा करते जा रहा है। संसार में आज अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में जो होड़ लगी हुई है, उससे भारत तनिक भी पीछ नहीं है। वास्तव में भारत की अंतरिक्ष वैज्ञानिक प्रगति देखने योग्य है।

भारत से समय समय पर अंतरिक्ष में विज्ञान के अविष्कार के लिए छोड़े गए उपग्रह विश्व को चकित करने वाले रहे हैं। 19 मई, 1974 को राजस्थान के पोखरन क्षेत्र में भारत ने पहला परमाणु विस्फोट किया था। 19 अप्रैल 1995 को भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए सोवियत भूमि से आर्यभटृ नामक प्रथम उपग्रह को छोड़ा था। इसकी सफलता पर सारे संसार ने भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान की महिमा स्वीकार की थी। यह आर्यभटृ नामक प्रथम उपग्रह 800 कि.ग्रा. वजन का था। 19 जून सन् 1981 में फ्रांस की भूमि से भारत ने पहला एप्पल छोड़ा था। इसी तरह 1। को भारत ने अमेरिका के अंतरिक्ष केन्द्र से छोड़ा था। इन सभी उपग्रहों के फलस्वरूप में भारतीय अंतरिक्ष सम्बन्धित अनुसंधान का महत्व एक स्वर से विश्व ने स्वीकार किया था।

भारत का अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अत्यन्त सराहनीय प्रया है, क्योंकि यह एक उपग्रह या विस्फोट से संतुष्ट न होकर एक साथ या लगातार कई उपग्रहों और विस्फोटों के द्वारा अंतरिक्ष के गंभीर तथ्यों की खोज में आज और बड़ी जिज्ञासा और पक्की धुन के साथ लगा हुआ है। इस संदर्भ में 19 जून 1981 में भातर द्वारा छोड़ा गया एप्पल नामक उपग्रह अब भी अंतरिक्ष की परिक्रमा कर रहा है। 1 नवम्बर 1981 में छोड़ा गया भास्कर द्वितीय भी इसी क्रम में अनुसंधान कर रहा है। अहमदाबाद, मंगलूर, कोटा, तिरूवन और अन्तपुरम में अनेक भारतीय वैज्ञानिक अंतरिक्ष विज्ञान से सम्बन्धित अनुसंधान कार्य में संलग्न हैं। 16 अप्रैल 1983 को रोहिणी श्रृंखला का तीसरा उपग्रह 11 बजकर 13 मिनट और 7 सैकंड में पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया। उपग्रह-प्रक्षेषण वाहन एल.एल.बी.-3 के रोहिणी उपग्रह बी. 211 बजकर 6 मिनट पर श्री हरिकोटा से अंतरिक्ष में भेजा गया। 23 मीटर ऊँचा चार चरणों का यह राकेट नारंगी और सफेद रंग का धुआँ छोड़ते हुए ऊपर उठकर 1 मिनट 15 सैकण्ड बाद आँखों से ओझल हो गया। यह उपग्रह 17 टन वजन का था। इसका पता इलैक्ट्रोनिक्स के उपकरणों से तिरूवतन्तपुरम, श्री हरिकोटा और अहमदाबाद के केन्द्रों से लगाया जाने लगा। इस प्रकार भारत अंतरिक्ष विज्ञान की अनुसंधान प्रक्रिया में लगा हुआ है।

सन् 1978 में भारत ने अमेरिकी फोर्ड एस्पेस एण्ड क्म्यूनिकेशन कारपोरेशन के साथ इन्सेट का निर्माण के लिए समझौता किया था। उसके परिणामस्वरूप 10 अप्रैल, 1982 मे अमेरिकी अंतरिक्ष केन्द्र से ‘इन्सेट-1ए’ अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। इसका आधारभूत निर्माण और निरूपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने किया था, लेकिन 150 दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद जब यह समाप्त हो गया, तब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के वैज्ञानिक इससे निराश नहीं हुए और पुनः उत्साहित होकर अमेरिकी अंतरिक्ष यान चैलेंजर से बहुदेशीय और बहु आयामी उपग्रह इन्सेट 1बी को अंतरिक्ष में भेजने में सफल हो गए। इसी तरह 3 अप्रैल 1984 को सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक राकेश शर्मा ने रूस के अंतरिक्ष यान में जाकर अंतरिक्ष में अभूतपूर्व अनुसंधान सम्बन्धित विज्ञान प्राप्त किए और प्रयोग भी किए। 29 अप्रैल 1983 को अमेरिका स्वेससीज-3 पर स्थित भारतीय उपग्रह अंतरिक्ष प्रयोगशाला ‘अनुराधा’ भी अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में विशेष विज्ञान प्राप्त किया। इससे वायुमंडल सम्बन्धी ऊर्जा, प्रकाश आदि का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रिय होता जा रहा है।

भारत का नवीनतम अंतरिक्ष यान इन्सेट 1सी 22 जुलाई, 1988 को फ्रेंच गुयाना के स्थान से एक विदेशी कम्पनी फोर्ड ए अरोस्पेष एण्ड क्म्युनिकेशन कारपोरेशन के द्वारा तैयार किया गया। इस यान को यहीं से छोड़ा गया, लेकिन दुर्भाग्य का विषय रहा है कि इसमें कुछ खराबी आ गई। इसकी खराबी को दूर करके उसका उपयोग किया जा सकता है। इस तरह हम देखते हैं कि भारत अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर कदम बढ़ता जा रहा है। भारत की यह प्रगति अब भी जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान की प्रगति से भारतीय वैज्ञानिकों की अद्भुत प्रतिभा, साहस, धैर्य, क्षमता और जिज्ञासा की भावना प्रकट होती ही है। इसके साथ हमारे देश की वैज्ञानिक उपलब्ध्यिों का महत्व प्रकट होता है। इसके साथ ही साथ विश्व में भारत को अंतरिक्ष अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी भूमिका भी प्रस्तुत करती है। हमें अपने देश के इस अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपूर्व योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को पाकर अत्यन्त गर्व और स्वाभिमान होता है।

Answered by dackpower
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Answer:

फरवरी में, भारत ने एक रिकॉर्ड तोड़ा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 2014 में एक रूसी रॉकेट पर पिछले रिकॉर्ड - 37 उपग्रहों को श्रेष्ठ बनाते हुए कक्षा में 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया।

 उपग्रहों की बड़ी संख्या संभव थी क्योंकि सभी उपग्रह एक से 10 किलो (लगभग 50 मिलियन) कम वजन के नैनो थे। बहुमत संयुक्त राज्य अमेरिका से थे, दो भारत से थे, और कजाकिस्तान, इजरायल, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात से एक-एक थे। केवल गैर नैनो सैट इसरो का था, जिसे कल्पना और मैपिंग अनुप्रयोगों के लिए बनाया गया था। यह 1,500 पाउंड से अधिक पर भारी था।

फिर भी, यह करतब निर्विवाद था। इंजीनियरों को सटीक प्रक्षेपवक्र की गणना करनी थी और उपग्रहों को सावधानी से कोरियोग्राफ करना था। कोई दुर्घटना नहीं हुई। मिशन पूरा हुआ।

यह पहली बार है जब इसरो ने अपने प्रेमी इंजीनियरिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं। 2014 में वापस, संगठन ने लाल ग्रह के चारों ओर कक्षा में मार्स ऑर्बिटर मिशन नामक एक अंतरिक्ष यान रखा। भारत ऐसा करने वाला चौथा देश था - संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद, रूस (पहले सोवियत संघ के रूप में), और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी - और अपने पहले प्रयास में ऐसा करने वाला एकमात्र देश। अधिक विश्वास किया, मिशन, जो एक वैज्ञानिक जांच की तुलना में एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन का अधिक था, तुलनात्मक रूप से सस्ता था: केवल $ 73 मिलियन का आश्वासन दिया। (मोदी ने कहा कि एमओएम की लागत फिल्म ग्रेविटी की तुलना में कम है, हालांकि बिल्कुल संतुलित तुलना नहीं है।) इसके विपरीत, नासा के सबसे हालिया मंगल ऑर्बिटर, एमएवीएन को अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लोड किया गया और 2013 में लॉन्च किया गया, जिसकी लागत $ 6 मिलियन डॉलर थी।

इन दिनों, इसरो हर जगह लगता है। भारत सरकार साल-दर-साल अपने बजट को बढ़ावा देती रहती है। संगठन चंद्रमा पर एक ऑर्बिटर-लैंडर-रोवर मिशन की योजना बना रहा है (2008 में यह पहला ऑर्बिटर था) और मंगल ग्रह पर एक और उपग्रह मिशन। ग्रह के गर्म और बादल के वातावरण का अध्ययन करने के लिए शुक्र की एक परिक्रमा पर भी जाना। यह सब अपने विश्वसनीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन रॉकेट के लिए एक तेजी से व्यस्त प्रक्षेपण कार्यक्रम के बीच है, जिसने उन 104 संतों को कक्षा में धकेल दिया। 2008 में, ISRO ने केवल दो PSLV लॉन्च किए; 2016 में, इसने छह लॉन्च किए। संगठन 2020 तक हर साल 12 से 18 प्रक्षेपणों को लक्षित कर रहा है ताकि इमेजिंग और संचार उद्देश्यों के लिए पृथ्वी के चारों ओर अधिक उपग्रहों को रखा जा सके

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