Antriksh Yatra par nibandh small easy
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वर्तमान युग अंतरिक्ष और कम्प्यूटर का युग है। लेकिन अंतरिक्ष क्या है ? हम किसे अंतरिक्ष कह कर पुकारते हैं ? वस्तुत: यह सारा आकाश और इसका असीम, अबाध विस्तार ही अंतरिक्ष है ।
न इसका कहीं आरंभ है और न अंत । यह एक ऐसा विशाल शून्य है जिसका निरंतर विस्तार हो रहा है । सभी चीजों- आकाश गंगाओं, ग्रहों, नक्षत्रों, धूमकेतुओं, ब्लैक हाल्स आदि का इस में समावेश है । कुछ भी इससे बाहर नहीं है । हमारी पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र आदि जो भी हैं और जिनकी हम कल्पना कर सकते हैं, वे सभी इसी में हैं ।
यह एक बड़ा विशाल रहस्यमय और अलौकिक ब्रह्मांड है । मानव प्रारंभ से ही अंतरिक्ष में यात्रा करने का स्वप्न देखता रहा है । आकाश-यात्रा की काल्पनिक कहानियां और कथाएं हमारे साहित्य में प्रारंभ से ही रही हैं । रॉकेट का आविष्कार अंतरिक्ष-यात्रा की ओर पहला महत्वपूर्ण कदम था । इनकी सहायता से कृत्रिम उपग्रह छोड़ने का क्रम प्रारंभ हुआ । रूस ने पहले स्युतनिक आकाश में छोड़े । उसने सर्वप्रथम लायका नामक एक कुतिया को रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा ।
फिर युरी गगारिन सबसे पहले अंतरिक्ष में गये । इसके पश्चात् तो अनेक अंतरिक्ष-यान सफलतापूर्वक छोड़े गये । पहले यान मानवरहित थे । परन्तु फिर मानव सहित अंतरिक्ष यान छोड़े गये । चंद्रमा पर मानव की विजय एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी जिसका श्रेय अमेरिका को जाता है । उसके दो एस्ट्रॉनॉट्स सबसे पहले चन्द्रमा की धरती पर उतरे ।
चन्द्रमा से आगे अन्य आकाशीय ग्रहों जैसे बृहस्पति शनि शुक्र मंगल आदि पर मानव को उतारने के भागीरथ प्रयत्न चल रहे हैं । इस संबंध में कई मानवरहित अंतरिक्ष यान रूस और अमेरिका ने अब तक आकाश में भेजें हैं । उनके बहुत अच्छे और सफल परिणाम निकले हैं । मानवं की ज्ञान-पिपासा का कोई अंत नहीं । जैसे-जैसे उसका अंतरिक्ष-ज्ञान आगे बढ़ता है, उसकी जिज्ञासा और भी बढ़ती जाती है ।
भारत भी अंतरिक्ष अनुसंधान और अन्वेषण में लगा हुआ है । लेकिन रूस और अमेरिका की तुलना में अभी बहुत पीछे हैं । 3 अप्रैल, 1984 के ऐतिहासिक दिन भारत का पहला व्यक्ति अंतरिक्ष में गया था । वह व्यक्ति राकेश शर्मा थे । यह रूस और भारत के बीच एक लम्बे सहयोग का परिणाम था ।
इसके साथ ही अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नये अध्याय का आरंभ हुआ राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में जाने का यह सौभाग्य अंतरिक्ष यान 80 सूयोज टी-II के द्वारा संभव हुआ । यह यान रूस के अंतरिक्ष स्टेशन बैकोनोर से छोड़ा गया था । राकेश शर्मा के साथ दो रूसी कॉस्मोनॉट्स भी थे ।
Answer:वर्तमान युग अंतरिक्ष और कम्प्यूटर का युग है। लेकिन अंतरिक्ष क्या है ? हम किसे अंतरिक्ष कह कर पुकारते हैं ? वस्तुत: यह सारा आकाश और इसका असीम, अबाध विस्तार ही अंतरिक्ष है ।
न इसका कहीं आरंभ है और न अंत । यह एक ऐसा विशाल शून्य है जिसका निरंतर विस्तार हो रहा है । सभी चीजों- आकाश गंगाओं, ग्रहों, नक्षत्रों, धूमकेतुओं, ब्लैक हाल्स आदि का इस में समावेश है । कुछ भी इससे बाहर नहीं है । हमारी पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र आदि जो भी हैं और जिनकी हम कल्पना कर सकते हैं, वे सभी इसी में हैं ।
यह एक बड़ा विशाल रहस्यमय और अलौकिक ब्रह्मांड है । मानव प्रारंभ से ही अंतरिक्ष में यात्रा करने का स्वप्न देखता रहा है । आकाश-यात्रा की काल्पनिक कहानियां और कथाएं हमारे साहित्य में प्रारंभ से ही रही हैं । रॉकेट का आविष्कार अंतरिक्ष-यात्रा की ओर पहला महत्वपूर्ण कदम था । इनकी सहायता से कृत्रिम उपग्रह छोड़ने का क्रम प्रारंभ हुआ । रूस ने पहले स्युतनिक आकाश में छोड़े । उसने सर्वप्रथम लायका नामक एक कुतिया को रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा ।
फिर युरी गगारिन सबसे पहले अंतरिक्ष में गये । इसके पश्चात् तो अनेक अंतरिक्ष-यान सफलतापूर्वक छोड़े गये । पहले यान मानवरहित थे । परन्तु फिर मानव सहित अंतरिक्ष यान छोड़े गये । चंद्रमा पर मानव की विजय एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी जिसका श्रेय अमेरिका को जाता है । उसके दो एस्ट्रॉनॉट्स सबसे पहले चन्द्रमा की धरती पर उतरे ।
चन्द्रमा से आगे अन्य आकाशीय ग्रहों जैसे बृहस्पति शनि शुक्र मंगल आदि पर मानव को उतारने के भागीरथ प्रयत्न चल रहे हैं । इस संबंध में कई मानवरहित अंतरिक्ष यान रूस और अमेरिका ने अब तक आकाश में भेजें हैं । उनके बहुत अच्छे और सफल परिणाम निकले हैं । मानवं की ज्ञान-पिपासा का कोई अंत नहीं । जैसे-जैसे उसका अंतरिक्ष-ज्ञान आगे बढ़ता है, उसकी जिज्ञासा और भी बढ़ती जाती है ।
भारत भी अंतरिक्ष अनुसंधान और अन्वेषण में लगा हुआ है । लेकिन रूस और अमेरिका की तुलना में अभी बहुत पीछे हैं । 3 अप्रैल, 1984 के ऐतिहासिक दिन भारत का पहला व्यक्ति अंतरिक्ष में गया था । वह व्यक्ति राकेश शर्मा थे । यह रूस और भारत के बीच एक लम्बे सहयोग का परिणाम था ।
इसके साथ ही अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नये अध्याय का आरंभ हुआ राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में जाने का यह सौभाग्य अंतरिक्ष यान 80 सूयोज टी-II के द्वारा संभव हुआ । यह यान रूस के अंतरिक्ष स्टेशन बैकोनोर से छोड़ा गया था । राकेश शर्मा के साथ दो रूसी कॉस्मोनॉट्स भी थे ।
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