anuchchhed lekhan in hindi on chhattisgarh ka itihas in 120-150 words
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छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। इसका गठन १ नवम्बर २००० को हुआ था और यह भारत का २६वां राज्य है। पहले यह मध्य प्रदेश के अन्तर्गत था। डॉ॰ हीरालाल के मतानुसार छत्तीसगढ़ 'चेदीशगढ़' का अपभ्रंश हो सकता है। कहते हैं किसी समय इस क्षेत्र में 36 गढ़ थे, इसीलिये इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। किंतु गढ़ों की संख्या में वृद्धि हो जाने पर भी नाम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ,छत्तीसगढ़ भारत का ऐसा राज्य है जिसे 'महतारी'(मां) का दर्जा दिया गया है।[2]भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। एक संसाधन संपन्न राज्य, यह देश के लिए बिजली और इस्पात का एक स्रोत है, जिसका उत्पादन कुल स्टील का 15% है।[3]छत्तीसगढ़ भारत में सबसे तेजी से विकसित राज्यों में से एक है।
छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास और जानकारी – chhattisgarh history information
प्राचीन समय में यह क्षेत्र दक्षिण कोसला के नाम से जाना जाता था। छठी और 12 वी शताब्दी के बीच शरभपुरी, पांडूवंशी, सोमवंशी, कालाचुरी और नागवंशी शासको ने क्षेत्र पर राज किया। 11 वी शताब्दी में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र पर चोला साम्राज्य के राजेन्द्र चोला प्रथम और कुलोथुंगा चोला प्रथम ने आक्रमण किया था।
1741 से 1845 तक छत्तीसगढ़ मराठा साम्राज्य के नियंत्रण में था। 1845 से 1947 तक छत्तीसगढ़ पर ब्रिटिशो का नियंत्रण था। 1845 में ब्रिटिश के आगमन के साथ ही रतनपुर की जगह पर रायपुर ने शोहरत हासिल कर ली। 1905 में संबलपुर जिले को ओडिशा में स्थानांतरित किया गया और सुरगुजा राज्य को बंगाल से छत्तीसगढ़ स्थानांतरित किया गया।
क्षेत्र में नए क्षेत्र को मिलाकर 1 नवम्बर 1956 को नये राज्य की स्थापना की गयी और बाद में यह आज़ादी के 44 वर्षो तक राज्य का ही भाग रहा। नव राज्य मध्यप्रदेश का हिसा बनने से पहले यह क्षेत्र प्राचीन मध्यप्रदेश राज्य का हिस्सा था, जिसकी राजधानी भी भोपाल ही थी। इससे पहले ब्रिटिश राज में यह क्षेत्र केंद्रीय प्रांत और बरार का हिस्सा था। छत्तीसगढ़ राज्य के कुछ क्षेत्र ब्रिटिश शासन के समय केंद्रित प्रान्त हुआ करते थे, लेकिन बाद इन्हें मध्यप्रदेश में शामिल कर दिया गया।
सबसे पहले 1920 में स्वतंत्र राज्य की मांग की गयी थी। इसके बाद थोड़े समय के अंतराल में बार-बार यह मांग होती रही, लेकिन कभी भी इसके लिए किसी अभियान की स्थापना नही की गयी। हमेशा सभी राजनितिक पार्टियाँ आपस में आती थी, सामाजिक सभाए, सेमिनार, रैली और हड़ताले होती थी।
1924 में रायपुर कांग्रेस यूनिट ने स्वतंत्र राज्य की मांग की और साथ ही त्रिपुरा में भारतीय कांग्रेस की वार्षिक सभा में भी इस बात पर चर्चा की गयी। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय कांग्रेस संस्था को स्थापित करने की बार पर भी चर्चा की गयी थी।
1954 में जब राज्य पुनर्गठन कमीशन की स्थापना की गयी तो स्वतंत्र छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को सामने लाया गया, लेकिन इस बात की तब भी मंजूरी नही मिली। 1955 में नागपुर असेंबली में स्वतंत्र राज्य की मांग की गयी, जो उस समय मध्य भारत में आता था।
1990 में विरोध की और भी गतिविधियाँ देखने मिली। जिसमे राज्य में राजनितिक फोरम की स्थापना करना और विशेषतः राज्य निर्माण मंच की स्थापना करना भी शामिल था। चंदुलाल चद्रकर ने फोरम का नेतृत्व किया और फोरम में बहुत से सफल क्षेत्रीय आंदोलनों का आयोजन किया गया। फोरम के इन आंदोलनों को सभी संस्थाओ से सहायता मिल रही थी, जिसमे भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस भी शामिल थी।
नये राष्ट्रिय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने पुनः तैयार किये हुए छत्तीसगढ़ बील को अनुमोदन के लिए मध्यप्रदेश असेंबली भेजा, जहाँ एक बार फिर इसे सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया और लोक सभा में पेश किया गया। स्वतंत्र छत्तीसगढ़ का बील लोकसभा और राज्यसभा में पारित किया गया और स्वतंत्र छत्तीसगढ़ राज्य बनाने का रास्ता भी साफ़ हो गया।
25 अगस्त 2000 को भारत के राष्ट्रपति ने मध्य प्रदेश पुनर्गठन एक्ट 2000 के तहत अपनी सहमति भी दे दी। भारत सरकार ने 1 नवम्बर 2000 को ही मध्य प्रदेश राज्य को छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश नामक दो राज्यों में विभाजित किया।