anuchd on "mitra ho to aesa ..."
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मित्रता एक पवित्र वस्तु है। संसार में सब कुछ मिल सकता है, परंतु सच्चा और स्वार्थहीन मित्र मिलना अत्यंत दुर्लभ है। जिस व्यक्ति को संसार में मित्र-रत्न मिल गया, समझो उसने अपने जीवन में एक बहुत ही बड़ी निधि पा ली। मनुष्य जब संसार में जीवन-यात्रा प्रारंभ करता है तो उसे सबसे अधिक कठिनाई मित्र खोजने में ही होती है। यदि उसका स्वभाव कुछ विचित्र नहींे तो लोगों से उसका परिचय बढ़ता जाता है और कुछ दिनों मंे यह परिचय ही गहरा होकर मित्रता का रूप धारण कर लेता है।
एक सच्चा मित्र इस संसार में हमारा सबसे बड़ा आश्रय होता है। वह विपत्ति में हमारी रक्षा करता है, निराशा में उत्साह देता है, जीवन को पवित्र बनाने वाला, दोषों को दूर करने वाला और माता के समान प्यार करने वाला होता है
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