Anuched Lekhan-एकल उपयोग प्लास्टिक का संहार, प्रकृति का उद्धार
Shabad Seema-100-150 words
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पर्यावरण का संकट हमारे लिए एक चुनौती के रुप में उभर रहा है. संरक्षण के लिए अब तक बने सारे कानून और नियम सिर्फ किताबी साबित हो रहे हैं. पारस्थितिकी असंतुलन को हम आज भी नहीं समझ पा रहे हैं. पूरा देश जल संकट से जूझ रहा है. जंगल आग की भेंट चढ़ रहे हैं. प्राकृतिक असंतुलन की वजह से पहाड़ में तबाही आ रही है. पहाड़ों की रानी कही जाने वाले शिमला में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग तरस रहे हैं. आर्थिक उदारीकरण और उपभोक्तावाद की संस्कृति गांव से लेकर शहरों तक को निगल रही है. प्लास्टिक कचरे का बढ़ता अंबार मानवीय सभ्यता के लिए सबसे बड़े संकट के रुप में उभर रहा है.
आज संकट बन गया है प्लास्टिक
आर्थिक उदारीकरण है मूल वजह
भारत में प्लास्टिक का प्रवेश लगभग 60 के दशक में हुआ. आज स्थिति यह हो गई है कि 60 साल में यह पहाड़ के शक्ल में बदल गया है. दो से तीन साल पहले भारत में अकेले आटोमोबाइल क्षेत्र में इसका उपयोग पांच हजार टन वार्षिक था संभावना यह जताई गयी भी कि इसी तरफ उपयोग बढ़ता रहा तो जल्द ही यह 22 हजार टन तक पहुंच जाएगा. भारत में जिन इकाईयों के पास यह दोबारा रिसाइकिल के लिए जाता है वहां प्रतिदिन 1,000 टन प्लास्टिक कचरा जमा होता है. जिसका 75 फीसदी भाग कम मूल्य की चप्पलों के निर्माण में खपता है. 1991 में भारत में इसका उत्पादन नौ लाख टन था. आर्थिक उदारीकरण की वजह से प्लास्टिक को अधिक बढ़ावा मिल रहा है. 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में प्लास्टि कचरे के रुप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं. अधिक वक्त बीतने के बाद यह टुकड़े माइक्रो प्लास्टिक में तब्दील हो गए हैं. जीव विज्ञानियों के अनुसार समुद्र तल पर तैरने वाला यह भाग कुल प्लास्टिक का सिर्फ एक फीसदी है. जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में है या फिर समुद्र तल में छुपा है.
Answer:
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह विवरण दिया गया था कि एकल-उपयोग प्लास्टिक (single-use plastic) को कौन निर्मित करता है और इससे आय अर्जित करता है तथा पिछली गणना के अनुसार प्रतिवर्ष 130 मिलियन टन उत्पादन किया जाता है।
इस रिपोर्ट का प्रकाशन ऑस्ट्रेलिया में स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन मिंडेरू (Minderoo) ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान के शैक्षणिक (Academics) विभागों के साथ किया था।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख उत्पादक:
विश्व में उत्पादित एकल-उपयोग प्लास्टिक का 50% 20 बड़ी कंपनियों द्वारा बनाया जाता है।
इसके उत्पादन में दो अमेरिकी कंपनियों के पश्चात् एक चीनी स्वामित्व वाली पेट्रोकेमिकल्स कंपनी और दूसरी बैंकॉक-स्थित कंपनी का स्थान है।
प्रमुख निवेशक:
उत्पादन को बैंकों सहित वित्तीय सेवा कंपनियों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
इस उद्योग में सरकारें भी बड़ी हितधारक हैं। सबसे बड़े एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक निर्माताओं में से लगभग 40% आंशिक रूप से सरकारों (चीन और सऊदी अरब सहित) के स्वामित्व में किया जाता है।
वृद्धि :
एकल-उपयोग वाला प्लास्टिक एक कुशल व्यवसाय के रूप में प्रस्थापित है तथा इसके जारी रहने का अनुमान है। अगले पाँच वर्षों में इसकी उत्पादन क्षमता में 30% वृद्धि होने का अनुमान है।
उपयोग:
इस मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच सर्वाधिक असमानता है:
प्रत्येक वर्ष औसतन एक अमेरिकी द्वारा 50 किलोग्राम सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का उपयोग करके फेंक दिया जाता है, जबकि औसतन एक भारतीय एक अमेरिकी के बारहवें हिस्से से भी कम का उपयोग करता है।
चिंताएँ:
न्यून पुनर्चक्रण:
अमेरिका में प्लास्टिक के केवल लगभग 8% हिस्से का पुनर्चक्रण किया जाता है। पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक की तुलना में नए उत्पादित प्लास्टिक से वस्तुओं को निर्मित करना अधिक किफायती है।
सीमित प्रयास:
राज्य सरकार और नगरपालिकाओं को प्लास्टिक किराना बैग, फोम कप और पीने के पाइप (straws) जैसी कुछ वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने में सफलता मिली है लेकिन अब तक इसके उत्पादन को कम करने के प्रयास सीमित रहे हैं।
उपभोक्ताओं द्वारा प्लास्टिक के न्यूनतम उपयोग हेतु किये गए प्रयास विफल रहे हैं।
वैश्विक पहल:
यूरोपीय संघ ने वर्ष 2025 तक उपभोक्ता ब्रांडों को प्लास्टिक की बोतलों में कम-से-कम 30% पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग करने का निर्देश जारी किया।
भारतीय पहल:
वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत को एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक से मुक्त करने हेतु देश भर में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिये एक बहु-मंत्रालयी योजना तैयार की थी।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, उत्पादों से उत्पन्न कचरे को उनके उत्पादकों और ब्रांड मालिकों को इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है