Anuched lekhan on the topic " Adarash jeevan " in hindi no useless answers.
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विद्यार्थी जीवन मनुष्य के सबसे स्वर्णिंम काल होता है। इसी काल में अपनी शक्तिओं का विकास कर वह परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त करता है। इस जीवन काल में कुछ आदर्श विद्यार्थी होते हैं जो नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमेशा ही उत्सुक रहते हैं। रोज़ कुछ नया करने या कुछ सीखने की धुन और जिज्ञासा हे उनके जीवन का केंद्रबिंदु बन जाती है। अपनी सच्ची लगन और मेहनत से हर संभव स्रोत से ज्ञान वृद्धि करने का निरंतर प्रयास करता रहे। स्कूल में अध्यापक जो पढ़ाएं उस पर विशेष ध्यान देता हो और उसी का दुबारा घर पर भी अभ्यास करे। असली आदर्श विद्यार्थी वही होता है जो अपनी दिनचर्या को इस तरह से अनुशासित करे कि पढाई के समय पढाई और मौज-मस्ती के समय मौज। पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ खेल-कूद और अन्य मनोरंजक गतिविधिओं में भी तालमेल बनाए। इधर-उधर की बातों में व्यर्थ में समय न गवाएं। अपने मानसिक विकास के लिए सिर्फ पुस्तकों सम्बन्धी ज्ञान के साथ-साथ उसे अपने विद्यालय में होने वाली विचार-विमर्श, खेलों, नाटकों, भ्रमण इत्यादि में भी बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए। जिस प्रकार एक भवन की मजबूती उसकी नींव पर टिकी होती है, उसी प्रकार जीवन की आधारशिला विद्या के ज्ञान पर टिकी होती है। इन सब गुणों के साथ अनुशासन, विनम्रता और चरित्र का पालन भी आवश्यक है।
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एक समय आता है जब बालक या युवक किसी शिक्षा-संस्था में अध्ययन करता है, वह जीवन ही विद्यार्थी जीवन (Student Life) है । कमाई की चिंता से मुक्त अध्ययन का समय ही विद्यार्थी-जीवन है। भारत की प्राचीन विद्या-विधि में पचीस वर्ष की आयु तक विद्यार्थी घर से दूर आश्रमों में रहकर विविध विद्याओं में निपुणता प्राप्त करता था, किन्तु देश की परिस्थिति-परिवर्तन से यह प्रथा गायब हो गई। इसका स्थान विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने ले लिया। इन तीनों संस्थाओं में जब तक बालक या युवक पढ़ते है, वह विद्यार्थी कहलाते है। उसकी अध्ययन पद में उसका जीवन “विद्यार्थी-जीवन (Vidyarthi Jeevan); नाम से नामांकित किया जाता है। आधुनिक भारत में गुरुकुल तथा छात्रावास नियम प्राचीन ऋषि- आश्रमों का बदला हुआ समय है।
विद्यार्थी का जीवन के प्रकार
आज का विद्यार्थी-जीवन दो प्रकार का है, पहला वह जो परिवार में रहते हुए विद्यार्थी - जीवन पूरा करता है। दूसरा जो छात्रवास में रहकर अपना विद्यार्थी जीवन समाप्त करता है | परिवार में रहते विद्यार्थी -जीवन में विद्यार्थी परिवार में रहकर ठसकी समस्याओं, आवश्यकताओं, माँगों को पूरा करते हुए भी अध्ययन करता है। नियमित रूप से विद्यालय जाना और पारिवारिक कामों को करते हुए भी घर पर रहकर ही पढ़ाई करना, उसके विद्यार्थी-जीवन की पहचान है। दूसरी ओर, छात्रावास में जो विद्यार्थी रहते है वह पारिवारिक समस्याओं से मुक्त शैक्षिक वातावरण में रहता हुआ विद्यार्थी-जीवन का निर्वाह कर अपना शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास करता है।एक विद्यार्थी का कर्तव्य
विद्यार्थी-जीवन उन विद्याओं, कलाओं के शिक्षण का काल है, जिनके द्वारा वह छात्र-जीवन में ही कमाई कर अपने परिवार का देखभाल कर सके यही एक विद्यार्थी का कर्तव्य है। यह काल संघर्षमय संसार में सम्मानपूर्वक जीने तथा निर्माण करने का समय है। इन सबके निमित्त सीखना, शारीरिक और मानसिक विकास करने, नैतिकता द्वारा आत्मा को विकसित करने की स्वर्णिम समय है यह विद्यार्थी जीवन। निश्चित-पादयक्रम के अध्ययन से छात्र सीखता है। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों के अध्ययन तथा आचार्यों के प्रवचनों से वह मानसिक विकास करता है। शैक्षणिक-प्रवास और भारत-दर्शन कार्यक्रम उसके मानसिक-विकास में विकास करता हैं। हर रोज सुबह उठकर व्यायाम कर अपना शारीरिक विकास करता है