Hindi, asked by student5a, 1 year ago

anuched lekhan vyayam ke labh in hindi

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Answered by sanjeevkush71
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शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम्’ शरीर को धर्म साधना का एक मात्र माध्यम स्वीकार किया गया है। शरीर ही कर्म का साधक है और धर्म का आराधक। मानव शरीर में ही आत्मा का निवास भी होता है। ‘पहला सुख निरोगी काया’ यह कथन अक्षरश सत्य है, क्योंकि जिस व्यक्ति का शरीर रोगी है, उसका जीवन ही निरर्थक है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष जीवन के इन लक्ष्यों को स्वस्थ शरीर द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

अच्छा स्वास्थ्य महावरदान है। अच्छे स्वास्थ्य से ही अनेक प्रकार की सुख सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। जो व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य तथा स्वस्थ शरीर के महत्व को नकारता है तथा ईश्वर के इस वरदान का निरादर करता है, वह अपना ही नहीं, समाज तथा राष्ट्र का भी आहित करता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास हो सकता है। जिस व्यक्ति का शरीर ही स्वस्थ नहीं, फिर उसका मस्तिष्क भला कैसे स्वस्थ रह सकता है? स्वस्थ मस्तिष्क के अभाव में व्यक्ति कितना पंगु है – इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।

मनुष्य की दशा उस घड़ी के समान है, जो यदि ठीक तरह से रखी जाए तो सौ वर्ष तक समा दे सकती है और यदि लापरवाही से बरती जाए तो शीघ्र बिगड़ जाती है। व्यक्ति को अपने शरीर को स्वस्थ तथा काम करने योग्य बनाए रखने के लिए व्यायाम आवश्यक है। व्यायाम और स्वास्थ्य का चोली दामन का साथ है। व्यायाम से न केवल हमारा शरीर पुष्ट होता है अपितु मानसिक रूप से भी व्यक्ति स्वस्थ रहता है। रोगी शरीर में स्वस्थ मन निवास नहीं कर सकता। यदि मन स्वस्थ न हो, तो विचार भी स्वस्थ नहीं हो सकते। जब विचार स्वस्थ नहीं होंगे, तो कर्म की साधना कैसी होगी और कर्त्तव्यों का पालन कैसे होगा? शरीर को पुष्ट, चुस्त एवं बलिष्ठ बनाने के लिए व्यायाम आवश्यक है।

व्यायाम न करने वाले मनुष्य आलसी तथा अकर्मण्य बन जाते हैं। आलस्य को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। आलसी व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में असफल होते हैं तथा निराशा में डूबे रहते हैं। व्यायाम के अभाव में शरीर बोझ सा प्रतीत होता है, क्योंकि यह बेडौल होकर तरह तरह के रोगों को निमंत्रण देने लगता है। ‘मोटापा’ अपने आप में एक ऐसी बीमारी है, जो हदय रोग, डायबिटीज, तनाव तथा रक्त चाप जैसी बीमारियों को जन्म देती है।

व्यायाम अनेक प्रकार के हो सकते हैं- प्रातः भ्रमण, दौड़ना, खेल कूद, तैराकी, घुड़सवारी, दंड बैठक लगाना, योगासन आदि प्रमुख व्यायाम हैं। इनमें प्रातः भ्रमण अत्यन्त उपयोगी है। जिस प्रकार किसी मशीन को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसमें तेल आदि डालना अनिवार्य है, उसी प्रकार शरीर में ताजगी तथा गतिशीलता बनाए रखने के लिए प्रात भ्रमण तथा यौगिक क्रियाएँ अत्यन्त उपयोगी हैं। तैराकी, खेल कूद तथा घुड़सवारी भी उत्तम व्यायाम है।

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