anuched on Corona kaal or online padhai
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anuched on Corona kaal or online padhai?
और अधिक ऑनलाइन कोर्स उपलब्ध कराने की राह में जो प्रमुख चुनौतियां हैं, उनमें से एक ये है कि पढ़ाने वाले अधिकतर फैकल्टी के सदस्यों को इसके लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया है. और इसीलिए वो ऑनलाइन कक्षाएं चलाने के लिए तैयार नहीं हैं. पूरी तरह से ऑनलाइन कोर्स की योजना बनाने और इसकी तैयारी के लिए छह से नौ महीने लग सकते हैं. इन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ हफ़्तों में ही तैयार नहीं किया जा सकता. ऑनलाइन शिक्षा को अपनाने की पहल करने वाले संस्थानों और फैकल्टी के सदस्यों को अपने सहकर्मियों को इसे अपनाने में काफ़ी मदद करने की ज़रूरत होगी. फिर चाहे वो अपने ही संस्थान हों या शिक्षण समुदाय के अन्य सदस्य हों. ओआरएफ (ORF) द्वारा इस विषय में आयोजित वेबिनार में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में नई शिक्षा नीति की ओएसडी (OSD) डॉक्टर शकीला शम्सू ने इस बात पर काफ़ी ज़ोर दिया था. आमतौर पर फैकल्टी के सदस्य, अपने कोर्स के दूसरे या तीसरे सत्र में जाकर ऑनलाइन शिक्षा देने को लेकर सहज हो पाते हैं. ऐसे में उन्हें इसकी शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन्हें तकनीक के महारथी टीचिंग सहायकों के माध्यम से मदद दी जानी चाहिए. अभी तक भारत ने इस विकल्प को नहीं अपनाया है. जबकि विदेशों के विश्वविद्यालयों में टीचिंग असिस्टेंट (TAs) का उपयोग व्यापक स्तर पर हो रहा है. ये शिक्षण सहयोगी, छात्रों के लिए चैट रूम और सहकर्मियों से सीखने के सत्र भी आयोजित करते हैं. जो शिक्षा प्राप्त करने में बहुत लाभप्रद होते हैं.
और अधिक ऑनलाइन कोर्स उपलब्ध कराने की राह में जो प्रमुख चुनौतियां हैं, उनमें से एक ये है कि पढ़ाने वाले अधिकतर फैकल्टी के सदस्यों को इसके लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया है. और इसीलिए वो ऑनलाइन कक्षाएं चलाने के लिए तैयार नहीं हैं. पूरी तरह से ऑनलाइन कोर्स की योजना बनाने और इसकी तैयारी के लिए छह से नौ महीने लग सकते हैं. इन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ हफ़्तों में ही तैयार नहीं किया जा सकता. ऑनलाइन शिक्षा को अपनाने की पहल करने वाले संस्थानों और फैकल्टी के सदस्यों को अपने सहकर्मियों को इसे अपनाने में काफ़ी मदद करने की ज़रूरत होगी. फिर चाहे वो अपने ही संस्थान हों या शिक्षण समुदाय के अन्य सदस्य हों. ओआरएफ (ORF) द्वारा इस विषय में आयोजित वेबिनार में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में नई शिक्षा नीति की ओएसडी (OSD) डॉक्टर शकीला शम्सू ने इस बात पर काफ़ी ज़ोर दिया था. आमतौर पर फैकल्टी के सदस्य, अपने कोर्स के दूसरे या तीसरे सत्र में जाकर ऑनलाइन शिक्षा देने को लेकर सहज हो पाते हैं. ऐसे में उन्हें इसकी शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन्हें तकनीक के महारथी टीचिंग सहायकों के माध्यम से मदद दी जानी चाहिए. अभी तक भारत ने इस विकल्प को नहीं अपनाया है. जबकि विदेशों के विश्वविद्यालयों में टीचिंग असिस्टेंट (TAs) का उपयोग व्यापक स्तर पर हो रहा है. ये शिक्षण सहयोगी, छात्रों के लिए चैट रूम और सहकर्मियों से सीखने के सत्र भी आयोजित करते हैं. जो शिक्षा प्राप्त करने में बहुत लाभप्रद होते हैं.अभी भी ऑनलाइन शिक्षा को बहुत से फैकल्टी सदस्य आमने सामने की तालीम के मुक़ाबले कमतर मानते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि कैम्पस की पढ़ाई को पूरी तरह ऑनलाइन से स्थानांतिरत कर पाना संभव नहीं है. ख़ासतौर से अगर किसी को दोनों में से एक को चुनने का विकल्प दिया जाए तो. लेकिन, अगर ऑनलाइन कोर्स को निर्देश के उच्च माध्यमों जैसे कि ऑडियो-वीडियो क्लिप के आधार पर तैयार किया जाए, तो उससे ऑनलाइन शिक्षा को बहुत उपयोगी बनाया जा सकता है. इससे नियमित यूनिवर्सिटी शिक्षा को काफ़ी मदद मिलेगी. ये बात कोर्सेरा, एडेक्स और अन्य ऑनलाइन पाठ्यक्रमों से साबित की है. नए सत्र की शुरुआत में देरी से उच्च शिक्षण संस्थानों और फैकल्टी को ये अवसर मिला है कि वो उच्च गुणवत्ता के ऑनलाइन कोर्स तैयार कर लें.
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कोरोना काल में शुरू हुई आनलाइन शिक्षा पद्धति ने बच्चों व शिक्षकों की शुरुआती दिनों परेशानी बढ़ा दी थी वहीं अब बच्चे इसे अवसर के रूप में देख रहे हैं। अपने क्लास की पढ़ाई के साथ साथ बच्चे अब इसी माध्यम से अतिरिक्त विषयों यानी कैप्सूल कोर्स के आनलाइन क्लास कर रहे हैं। कई बच्चे तो अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर की परीक्षा भी पास कर चुके हैं। इस बीच बच्चे काफी उत्साहित हैं और उनके माता पिता भी अपने बच्चों की सफलता से खुश दिख रहे हैं।